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ये नज़र किससे मेरी टकरा गई

ये नज़र किससे मेरी टकरा गई

पल में दिल को बारहा धडका गई

 

एक टक उसको लगे हम ताकने

शर्म थी आँखों में हमको भा गई

लब गुलाबों से बदन था संदली

खुशबू जिसकी दिल जिगर महका गई

 

कैद है या खूबसूरत ख्वाब-गाह 

गेसुओं में इस कदर उलझा गई

 

पग जहाँ उसने रखे थे उस जगह

जर्रे जर्रे पे जवानी आ गई

 

“दीप” जो बुझने लगा था इश्क का 

मुस्कुरा के उसको वो भड़का गई

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 2, 2013 at 8:17pm

प्रिय संदीप जी प्रेम में पगी इस ग़ज़ल के लिए दिली बधाई

एक इस्स्लाह --- 

पल में दिल को बारहा धडका गई-----पल में के साथ बारहा ठीक नहीं ,पल में दिल को इस कदर धड़का गई -----बाकी सभी शेर माशाल्लाह क्या कहने  

 

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 2, 2013 at 7:25pm

एक टक उसको लगे हम ताकने

शर्म थी आँखों में हमको भा गई

बहुत ही सुंदर पटेल जी बधाई बधाई


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 5:13pm

क्या बात है भाई, वाह अच्छी ग़ज़ल हुई है । बधाई । 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 2, 2013 at 9:32am

बहुत बढ़िया गजल,हार्दिक बधाई आदरणीय संदीप जी

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 6:55am

वाह! बहुत सुन्दर ग़ज़ल! सभी अशआर खूबसूरत हैं! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by vijay nikore on October 2, 2013 at 5:03am

गज़ल अच्छी लगी... बधाई, संदीप  जी

 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 1, 2013 at 11:04pm

वाह भाई वाह प्रेम पगी ग़ज़ल अत्यंत खूबसूरत अशआर जोरदार भाई जी दिली दाद तो बनती है स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 1, 2013 at 10:53pm

आदरणीय सन्दीप भाई , प्रेयसी की सुन्दरता का सुन्दर वर्णन , भई वाह !! बहुत बधाई !!

Comment by D P Mathur on October 1, 2013 at 9:45pm

आदरणीय संदीप जी, सुन्दर गजल के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।

Comment by वीनस केसरी on October 1, 2013 at 9:02pm

वाब भाई क्या कहने ,,,

लवेरिया युक्त ग़ज़ल के क्या कहने :))))))))))))))))))))))

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