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!!! पाठशाला बेमुरव्वत !!!

लोग मन को जांचते हैं,
भांप कर फिर काटते हैं।।

जब किसी का हाथ पकड़ें,
बेबसी तक थामते हैं।

धूप में बरसात में भी,
छांव-छतरी झांकते हैं।

दोस्तों से दुश्मनी जब,
रास्ते ही डांटते हैं।

छोड़ते हैं दर्द विषधर
बालिका को साधते हैं।

आज गरिमा मर चुकी जब,
गीत - कविता भांपते हैं।

जिंदगी में शोर बढ़ता
रिश्ते सारे सालते हैं।

पाठशाला बेमुरव्वत,
प्राण अस्मत चाहते हैं।

मैं सुनाऊं आप सुन लें
मौन दीपक कांपते हैं।

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 10:03pm

आदरणीय केवल भाई , छोटी बह्र मे बड़ी अच्छी ग़ज़ल कही !! सभी शे र क़ाबिले तारीफ है! ! बधाई !!

Comment by MAHIMA SHREE on September 11, 2013 at 9:11pm

वाह बहुत सुंदर... गजब की प्रस्तुति .. बधाई आपको आदरणीय केवल जी

Comment by ram shiromani pathak on September 11, 2013 at 8:38pm

वाह आदरणीय केवल भाई जी चमक धीरे -२ बढ़ रही है  //हार्दिक बधाई आपको

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 11, 2013 at 8:19pm

वाह वाह केवल भाई जी वाह छोटी बहर की ग़ज़ल में क्या खूब रंग जमाया है कुछ शेर तो सीधे दिल में उतर गए वीनस भाई जी की बातों पर गौर फरमाएं. इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई स्वीकारें.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 11, 2013 at 7:17pm

आ0 अखिलेश भाई जी,    आपके स्नेह व गजल पसंद करने के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत  आभार।  सादर,

Comment by Anil Chauhan '' Veer" on September 11, 2013 at 7:15pm

पाठशाला बेमुरव्वत,
प्राण अस्मत चाहते .... क्या बात है भाई जी ... गहराई उतार दी आपने .... बधाई स्वीकार करें .... 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 11, 2013 at 7:08pm

आ0 अन्नपूर्णा जी, आपके स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 11, 2013 at 7:06pm

आ0 वीनस भाई जी, जी भाई, इता दोष को समझकर अवश्य दूर करूंगा। आपके स्नेह, उत्साहवर्धन व सुझाव के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,

Comment by annapurna bajpai on September 11, 2013 at 12:47pm


जब किसी का हाथ पकड़ें,
बेबसी तक थामते हैं। ........... बहुत बढ़िया पंक्तियाँ बधाई आपको आ0 केवल भाई जी । 

Comment by वीनस केसरी on September 11, 2013 at 1:25am

जब किसी का हाथ पकड़ें,
बेबसी तक थामते हैं।


मैं सुनाऊं आप सुन लें

मौन दीपक कांपते हैं।

वाह आदरणीय इस दो शेर ने तो कुछ पलों के लिए लाजवाब ही कर दिया ...
हार्दिक बधाई
इता दोष हालाकि आगे की बात है मगर मंच पर इस बिंदु पर काफी बात हो चुकी है इसलिए इससे बच जाए तो मतला दोष मुक्त हो जायेगा .....

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