For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हक़ीकत की सफेद दीवार पर
तजुर्बों की भीड़ ने,
अहसास नाम की
नन्हीं सी कील ठोक दी थी.
मैं,
अरमानो की इस टेढ़ी-मेढ़ी गली से
यूँ ही गुजर रहा था –
अटपटा सा लगा
तो सोचा,
क्यों न काँच से मढ़े हुए
इस “ मैं “ को
उस पर टाँग दूँ –
गली में भटकने वालों का
इसे तोड़ने और जोड़ने में
शायद मन बहल जाए.
न जाने उस तसवीर के
कितने ही टुकड़े हो गये होंगे,
कितने ही असावधानी तमाशबीन
उन टुकड़ों की नुकीली धार से,
लहू-लुहान हुए होंगे !
मुझे तो अब उनके टूटने की
आवाज़ भी नहीं सुनाई देती –
गलियों से निकलकर,
राजपथ होते हुए
बहुत दूर निकल आया हूँ –
सामने जंगल है,
अब तलाश है
नयी पगडंडियों की.
(मौलिक एवं अप्रकाशित रचना)

Views: 518

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 23, 2013 at 4:05am

आदरणीया ऊषा जी व आदरणीय श्री रक्ताले, उत्साह्वर्धन के लिये हृदय से आभारी हूँ.

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 22, 2013 at 8:03pm

मैं का अहम् खुद के लिए और दूसरो के लिए दोनों के लिए कष्टकर साबित होता है. सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें.

Comment by Usha Taneja on April 22, 2013 at 5:50pm

बहुत बढ़िया! 'मैं' को छोड़कर नई पगडंडियों की तलाश में. काश! ज़माना भी ऐसे ही सोचे व व्यवहार करे.

बधाई!

सादर

उषा 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 19, 2013 at 3:07am

प्रिय बृजेश जी,हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 19, 2013 at 2:58am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी टिप्पणी हृदय से निकला हुआ स्वच्छ उच्छ्वास है जिसका स्पर्श मेरे लिये अमूल्य निधि समान है. हार्दिक आभार आदरणीया.

Comment by बृजेश नीरज on April 18, 2013 at 4:24pm

बहुत ही खूबसूरत रचना। आपको ढेरों बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 18, 2013 at 1:52pm

श्रद्धेय श्री विजय निकोर जी, मैं धन्य हो गया, प्रेरणा मिली और लिखने की. सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 18, 2013 at 1:34pm

प्रिय श्री पाठक जी व वेर्मा जी, उत्साह्वर्धन के लिये हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 17, 2013 at 8:24pm

क्यों न काँच से मढ़े हुए
इस “ मैं “ को
उस पर टाँग दूँ –
गली में भटकने वालों का
इसे तोड़ने और जोड़ने में
शायद मन बहल जाए.------क्या बात कही है शरदेन्दु जी जबाब नहीं इन पंक्तियों का बहुत ही उम्दा प्रस्तुति है हार्दिक बधाई आपको । 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 17, 2013 at 5:24pm

आदरणीय शरदेन्दु जी सादर 

बहुत ही सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिए बधाई हो आपको 

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service