For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून: क्या हम आप इसमें कहीं शामिल हैं? इस वर्ष खाद्यान्न की झूठन छोड़ने और संरक्षण न करने से होती बर्बादी को रोकने पर दृष्टि है.ध्येय नारा है: सोचो, खाओ, बचाओ. 



भारत में शादी समरोहों में वीभत्स बर्बादी के अलावा भी संपन्न घरों में मेहमान तो मेहमान, पारिवारिक सदस्यों द्वारा भी भोजन की बर्बादी एक गरिमा माना जाता है. इस दिन को मानाने का हमारे यहाँ सम्प्रति चलनः मस्तिष्क उद्वेलन सत्रों द्वारा सरकारी संस्थाओं में आयोजन.  पर क्या जन साधारण की कोई सार्थक भागीदारी सुनिश्चित हो सकती है? तकनीकी वाग्जाल से बाहर क्या ये दिन आ पायेगा? इस विपदा को वि.प.दि. (विश्व पर्यावरण दिवस) तक की प्रक्रिया की अभिव्यक्ति की चेष्टा प्रस्तुतु है.

पर्यावरण की विस्फोटक स्थिति पर

एक विशेषज्ञ का विश्लेषण सुना.

और अपना माथा धुना.

 

प्रदूषण की विषमता जान

बढ़ गई मेरी धुकधुकी.

बुद्धिजीवी ले रहे थाह

जन जन की सुध बुध की

 

चेष्टाएं प्रबल, प्रलापी

विभीषिकाओं की सीमा नापी.

प्रदूषण पर 10 मिनिट भाषण दे

मिटाने थकान अपने मुंह की

एक विशेषज्ञ ने तुरंत हो सजग

पूरे 20 मिनिट सिगरेटें फूंकी

 

पढ़ा लिखा प्रतिभा सम्पन्न समाज

एक पर्यावरण बनाचुका

उसी की जहरीली हवा में ले सांस

प्रदूषित जल

अनपढ़ ग्रामीण पी रहा है।

चेतावनी के तीर विस्मित हो झेलता,

नारकीय जीवन जी रहा है।

 

बुद्धिजीवी दायित्व बोध

मस्तिष्क उद्वेलन तक सीमित।

निस्सहाय निर्बोधों के

दायित्व अपरिमित।

 

वो अपने ही नहीं, हमारे भी बोझ ढो रहे हैं।

संसाधन, बीज, मिले न मिले,

पेट काट,अकाल के गाल में फसलें बो रहे हैं।

 

सदियों से मरुधरा उनके श्रमजल से अभिषिक्त है।

और हम संसाधन दोहन, वहनीयता वाक्मोह में लिप्त हैं।।

 

मस्तिष्क उद्वेलन में भिड़ा दें

कितनी ही खोपड़ियां

कोई बताए, संवरेंगी,

या खड़ी रह पाएंगी

कितने गरीबों की झोंपड़ियां?

 

प्रकृतिचक्र, नियति, खतरा हम बखान रहे

अवह्रास-वर्णन-अनुसंधान,

बन चुका धंधा

ढूंढे से कितने मिलेंगे बताए कोई

किसान के साथ जो मिलाए

कंधे से कंधा?

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 6, 2013 at 5:05pm

उद्वेलित करती रचना!पर्यावरण दिवश पर बहुत ही उपयुक्त!सादर बधाई!

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on June 6, 2013 at 2:46pm

सभी सुधी टिप्पणीकर्ताओं को उनकी सारगर्भित प्रितिक्रियाओं हेतु आभार. कुछ समय के लिए नियमित online रहना सम्भव न होगा अतः सभी को अभिज्ञापित नहीं कर पाउँगा. कसक हर बार नहीं उठती, पर जब उठती है तो तार तार कर देती है, तभी कुछ टूटा फूटा निर्झरित होता है.....

Comment by ram shiromani pathak on June 6, 2013 at 12:46am

बहुत ही सुन्दर आदरणीय///  व्यंग के साथ साथ उपदेस देती रचना ///हार्दिक बधाई

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 5, 2013 at 9:25pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय सर जी वाह 

बधाई हो आपको इस सार्थक सृजन हेतु सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 5, 2013 at 7:37pm
आदरणीय..सुरेन्द्र जी, आज के समय में जो पर्यावरण में प्रदूषण हो रहा है..उसको मद्देनजर रखते हुए ,आपने बिल्कुल सही बिषय पर सभी का ध्यान केन्द्रित कराया है...इस प्रदुषण से कहीं बहुत वर्षा, तो कहीं बिल्कुल भी नहीं! अत्यधिक ठंड, अति गर्मी ..जो हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है...!जिससे आने वाले समय में बहुत बुरी स्थिति हो सकती है । "आदरणीय आपका बहुत शुक्रिया, जो आपने हम सभी को इस मंच पर सामने आकर इस बात से अवगत् कराया....."
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 5, 2013 at 6:01pm

बहुत महत्वपूर्ण सन्देश देती सुन्दर अभ्व्यक्ति के लिए बधाई श्री सुरेन्द्र  वर्मा जी 

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 5, 2013 at 5:50pm

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

Comment by वेदिका on June 5, 2013 at 12:03pm

पर्यावरण दिवस पर बढ़िया विश्लेष्ण किया आपने आदरणीय सुरेन्द्र जी!

आप सही कह रहे है ..भोजन बच जाता है तो कतिपय घर उसको ये कहके फेंक देते है कि ...किस काम का। जबकि ऐसा तो नही, किसी न किसी के काम का तो है। कुछ बड़े घरों के बच्चे, जो मुंह में चाँदी का चम्मच लेके पैदा होते है वे भी भोजन को देख के नाक मुंह बनाते है। अगर उनको समझाओ भी "की बेटा आपको जो भोजन मिल रहा है, वह दुर्लभ है इसलिए ईश्वर को धन्यवाद दे कर उसे ग्रहण करो। तो उनके माता पिता खुद ही जबाव देते है ...खाते पीते बच्चे है बचपन से इसलिए ...अच्छे बुरे खाने की समझ जानते है। हद हो गयी ये तो। 
शुभकामनायें        
Comment by Ashok Kumar Raktale on June 5, 2013 at 8:43am

पढ़ा लिखा प्रतिभा सम्पन्न समाज

एक पर्यावरण बनाचुका

उसी की जहरीली हवा में ले सांस

प्रदूषित जल

अनपढ़ ग्रामीण पी रहा है।

चेतावनी के तीर विस्मित हो झेलता,

नारकीय जीवन जी रहा है।................वाह! आदरणीय सुरेंदर वर्मा जी विश्व पर्यावरण दिवस पर बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. सभी को जागरूक होना जरूरी है.सादर बधाई स्वीकारें. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service