कारगिल के बाद
वीरों ने दिया प्राणों का, बलिदान व्यर्थ न हो जाए।
हर बार घात को मात भी दी। टेढ़ी चालें कर दी सीधी।
पर हारें कूटनीतिक बाजी। करते युद्धविराम राजी राजी।।
आगे बढ़ते विजयी-कदम, वापिस कभी न हो पाएं।
वीरों ने दिया प्राणों का, बलिदान व्यर्थ न हो जाए।।
लालों के खून की जो लाली। करती सीमाओं की रखवाली।।
उस लाली से ना खेलो होली। रोको अपनी निर्लज्ज बोली।।
गोली खाते सीनों का गौरव, वाचाल सियार न छलने पाएं।
वीरों ने दिया प्राणों का, बलिदान व्यर्थ न हो जाए।।
जानें ना जो राष्ट्र का गौरव। तकते द्रुपद-सुता बन कर कौरव।
जाफर जयचन्दों को दफन करो । घर भेदियों का दमन करो ।।
भीतरघाती किसी सांप का, फन ना कभी उठने पाए।
वीरों ने दिया प्राणों का, बलिदान व्यर्थ न हो जाए।।
क्यों शौर्य धैर्य का बोझ सहे? रिपु रक्त आज क्यों नहीं बहे?
आर पार की बस बातें करते? समझेगा लात, न क्यों धरते?
गौरी की औलाद ना, मात-न जब तक हो जाए।
वीरों दिया ने प्राणों का, बलिदान व्यर्थ न हो जाए।।
धारण भुजाएं मां अष्ट करो। शुभ शक्ति विवेक प्रकृष्ट करो।।
आचार भ्रष्टों को नष्ट करो। छोड़ो करुणा मत मष्ट करो।।
विद्वेष देश से रखने वाला, द्रोही न कोई बचने पाए।
वीरों ने दिया प्राणों का, बलिदान व्यर्थ न हो जाए।।
जागो शतकोटि तुम रुद्र रूप। पहचानो शाश्वत निज स्वरूप।।
रणचण्डी रूप हो हर बाला। धधकाओ ताण्डव की ज्वाला।।
हों स्वस्थ सजग प्रज्ञा प्रहरी, चैतन्य कहीं न सो जाएं।
वीरों ने दिया प्राणों का, बलिदान व्यर्थ न हो जाए।।
-मौलिक, अप्रकाशित
Comment
जागो शतकोटि तुम रुद्र रूप। पहचानो शाश्वत निज स्वरूप।।
रणचण्डी रूप हो हर बाला। धधकाओ ताण्डव की ज्वाला।।
हों स्वस्थ सजग प्रज्ञा प्रहरी, चैतन्य कहीं न सो जाएं।
वीरों ने दिया प्राणों का, बलिदान व्यर्थ न हो जाए।।..................वाह! बहुत ही सुन्दर पद्य.
आदरणीय सुरेन्द्र वर्मा साहब बहुत ही सुन्दर रचना हर पद्य सुन्दर है हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आ0 सुरेन्द्र जी, ’’जागो शतकोटि तुम रुद्र रूप। पहचानो शाश्वत निज स्वरूप।।
रणचण्डी रूप हो हर बाला। धधकाओ ताण्डव की ज्वाला।।’’ एक सशक्त रचना। बधाई स्वीकारें। सादर,
बहुत सुंदर वीरों का बलिदान व्यर्थ न जाएँ . / सादर / कुंती .
आदरणीय सुरेन्द्र वर्मा जी एक जोश जगाती हुई ,देश भक्ति भाव से सराबोर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई जय हिन्द !
aadarniy महोदय
सादर
अपनी अवाल में मेरी भी आवाज जाने
बधाई
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