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सूनेपन का रंग

  • सूनेपन का रंग

सूनेपन का रंग ...
पतझड़ के सूखे पत्तों -सा पीला,
मेले में खो गए भयभीत
बालक की नब्ज़-सा नीला,
या अमावस के गहन
अंधकार-सा गंभीर और काला,
सूनेपन का रंग
कैसा होता है?

घोर आतंक-सा वातावरण,
मौसम पर मौसम बेचैन,
जँगली हाँफ़ती हवाएँ
दानव-सी हँसी हँसती,
हर मास एक और पन्ना पलट
करता है गए मास का
अंतिम संस्कार।

पर सूनापन पड़ा रहता है,
वहीं का वहीं,
पुराने कपड़ों की गठरी-सा।
इस सूनेपन का रंग
सूनेपन में आज कोई पूछे मुझसे।

-----------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)

  • विजय निकोर

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 16, 2013 at 11:45am
वाह सर जी वाह 
सूनेपन की अनुभूतियों को सहज शब्दों से व्यक्त कर दिया है आपने 
इस सुन्दर रचना हेतु बधाई आपको 
Comment by vijay nikore on February 16, 2013 at 9:47am

आदरणीय सौरभ जी और अजय जी:

 

मेरी इस कविता पर प्रतिक्रिया के लिए  और

उत्साहवर्धन के लिए आपको मेरा हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 15, 2013 at 5:24pm

वेदना का व्योम भले निपट काला हुआ करे, परन्तु वैयक्तिक वृत्तियों का अपरिहार्य स्पर्श उसे अर्थवान कर वर्णिक बनाता है. कविता प्रश्न भी है और स्वयं ही उत्तर भी है, हताशा के भावों को अभिव्यक्त करती.  मानों, इस रचना के माध्यम से एकाकी पीड़ा मुहाने पा गयी है.

शुभ-शुभ

Comment by Dr.Ajay Khare on February 15, 2013 at 1:14pm

पर सूनापन पड़ा रहता है,
वहीं का वहीं,
पुराने कपड़ों की गठरी-सा।
इस सूनेपन का रंग 
सूनेपन में आज कोई पूछे मुझसे। adarniy nikor sahib rachana dil choo gghai he badhai sweekare

-----------------------------------------

Comment by vijay nikore on February 15, 2013 at 7:24am

आदरणीया प्राची जी, वेदिका जी

और आदरणीय नादिर जी:

 

कविता के भाव और बिम्ब सराहने के लिए

आपका हार्दिक धन्यवाद।

 

सादर,

विजय

Comment by नादिर ख़ान on February 15, 2013 at 12:30am

हर मास एक और पन्ना पलट
करता है गए मास का
अंतिम संस्कार।

पर सूनापन पड़ा रहता है,
वहीं का वहीं,
पुराने कपड़ों की गठरी-सा।

सूनापन अच्छी यादों को भी धुंधला कर देता है । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 14, 2013 at 9:10pm

एकाकीपन के दर्द को बहुत मर्मस्पर्शी शब्दों में शब्दबद्ध किया है आदरणीय, 

बहुत सुन्दर शब्द-चित्र

सादर.

Comment by वेदिका on February 14, 2013 at 8:35pm

  मौसम पर मौसम बेचैन.....करता है गए मास का

 अंतिम संस्कार....पुराने कपड़ों की गठरी-सा

करुणता से भरपूर रचना !

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