For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अधजल गगरी छलकत जाए

आधा सुन के खूब सुनाये 
अधजल गगरी छलकत जाए

धैर्य नहीं इक पल भी रखना
चाहे मूरख सब कुछ चखना
क्या है मीठा क्या है खारा
नहीं भा रहा उसे परखना

अंतर में रख घोर अन्धेरा
बाहर बाहर दीप जलाए....................

सुने नहीं वो बात बड़ों की
आंके बस औकात बड़ों की
दिन को देख के नहीं सोचता 
गुजरे कैसे रात बड़ों की 

बिन अनुभव के बड़ा न कोई 
कौन भला इसको समझाए ........................

जो चाहूँ मैं अभी बनालूं
कच्ची माटी ऐसे ढालूं
लेकिन जो अधपक्की हो गयी 
उसको कैसे कहो सम्हालूं

इससे न कुछ भी है बनना 
कहे कुम्हार खडा असहाय  ...................................

सीख नहीं लेना जब भाता
मन में दंभ तभी भर जाता
क्या है अच्छी और बुरी क्या 
कुछ भी ग्रहण नहीं कर पाता 

नहीं गुरु का कोई भी चेला
गुरु बिन ज्ञान कहाँ से आये .........................................
 
संदीप पटेल "दीप"



Views: 1831

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 6, 2013 at 1:40pm

आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम
सही कहा आपने
मैं स्वयं भी इस कार्य में लग जाता हूँ कभी कभी
और यहीं से इसका रचना का जन्म हुआ है
पहले स्वयं अपनी गागर भर लो
फिर दूसरों की गागर पर नज़र डालो
ताकि आपको फिर सर्मिंदगी न हो के हे प्रभु ये क्या हो गया
जल्दबाजी में अक्सर ऐसा हो जाता है
और उसे स्वीकार कर तुरंत ही सुधार लेना ठीक है
किन्तु कभी कभी बिगड़ी बात नहीं बनती है 
जैसे फटा हुआ दूध
किसी काम का नहीं रह जाता 
आपका बहुत बहुत शुक्रिया इस रचना को सराहने हेतु
अब देखिये मेरी जल्दबाजी के चलते
आदरणीय गुरुदेव ने बताया भी है के गलती कहाँ हुई है

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 6, 2013 at 10:44am

आदरणीय संदीप जी वाह! क्या ही सुन्दर प्रेरणादायी रचना लिखी है. आधी समझ कर पूरी समझाने की आदत बेडा गर्क कर देती है. इसे अवश्य समझना चाहिए.मगर होता इसके विपरीत ही है इसलिए कई बार नदी और समुद्र के उदाहरण दिये जाते रहे हैं. बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 4, 2013 at 3:56pm

आदरणीय विजय निकोर सर जी , आदरणीय राजेश झा जी , आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी , आदरणीया डॉ प्राची जी , आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, आदरणीय लक्षमण सर जी आप सभी को सादर प्रणाम ....
आपको मेरा ये लेखन का प्रयास पसंद आया और आप सभी से बधाई मिली इसके लिए मैं आप सभी का ह्रदय से आभारी हूँ
ये स्नेह मुझ पर यूँ ही बनाये रखिये

आदरणीय गुरुदेव  सौरभ सर जी उसमे जल्द ही सुधार करूँगा   आशीर्वाद यूँ बना रहे इस चेले पर
सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 4, 2013 at 3:46pm
स्कूल नहीं बहुतसे जाते 
कुछ जाते, बीच आ जाते 
उनको फिर क्या समझाते 
अधजल गगरी छलकत लेजाते
 
प्रगति अवरुद्ध देख यही है
नेता को क्या भान नहीं है । 
गिलास भरा आधा न दिखता 
आधा खाली खूब चमकता ।
 
संदीप इसे सापेक्ष ही लेता 
गुलाबी नगर से पाती देता 
ओबीओ में फिर पढ़ लेते 
धन्यवाद तब उसे है देते ।

 

Comment by Shyam Narain Verma on January 4, 2013 at 2:35pm

सुंदर लय का निर्वहन किया है, बहुत बधाई      !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 3, 2013 at 8:09pm

सोच के आकाश में उड़ता रचनाशील पंछी सच्चाई परखता कितना सुन्दर सृजन करता है यह कविता उसका एक सुन्दर उदाहरण है, इस कविता के लिए बहुत बहुत बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 3, 2013 at 6:05pm

भाई संदीपजी, मंच पर आपकी अत्यंत सधी हुई उपस्थिति, आपका सुगढ़ प्रयास, आपकी रचनाओं के तथ्य और शिल्प में लगातार होती हुई कसावट, आपका शिष्ट व्यवहार और साहित्यिक आचरण, सारा कुछ किसी भी प्रयासरत रचनाकार के लिए अनुकरणीय है.

अब आपके स्पष्ट उद्गार साहित्याकाश ही नहीं किसी क्षेत्राकाश में ानुशासनीन और स्वच्छंद उड़ते कर्मियों को जिस हिसाब से आपकी रचना द्वारा नसीहत मिली है वह आपके उत्तरदायित्व भान का परिचय करा रहा है. इस हेतु आप हार्दिक बधाई के पात्र हैं.

शिल्प के क्रम में आपने थोड़ा और समय दिया होता. समझाये  के साथ असहाय  का साथ न होता.

आपकी इस रचना के लिए मैं आपको पुनः हृदय से बधाई देता हूँ.

Comment by राजेश 'मृदु' on January 3, 2013 at 5:44pm

वाह संदीप जी, सुंदर लय का निर्वहन किया है, बहुत बधाई

Comment by vijay nikore on January 3, 2013 at 5:09pm

संदीप जी,

बहुत अच्छी सीख दी है इस कविता के माध्यम।

भाव भी पसन्द आए।

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
28 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
30 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
33 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम चंद गुप्ता जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
35 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
37 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
39 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
41 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
42 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, सबसे पहले ग़ज़ल पोस्ट करने व सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
47 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल 2122 1212 22..इश्क क्या चीज है दुआ क्या हैंहम नहीं जानते अदा क्या है..पूछ मत हाल क्यों छिपाता…"
55 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।"
57 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन  के लिए आभार।"
57 minutes ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service