For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये......

 

कैसे – कैसे मंजर आये प्राणप्रिये
अपने सारे हुये पराये प्राणप्रिये |


सच्चे की किस्मत में तम ही आया है
अब तो झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |


ज्ञान भरे घट जाने कितने दफ्न हुये
अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |


भूखे - प्यासे हंसों ने दम तोड़ दिया
अब कौआ ही मोती खाये प्राणप्रिये |


यहाँ राग - दीपक की बातें करता था
वहाँ राग – दरबारी गाये प्राणप्रिये |


सोने – चाँदी की मुद्रायें लुप्त हुईं
खोटे सिक्के चलन में आये प्राणप्रिये |


सच्चाई के पाँव पड़ी हैं जंजीरें
अब तो बस भगवान बचाये प्राणप्रिये |


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

Views: 990

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 8, 2012 at 11:46am

आदरणीय अरुन जी क्या बात है बेहद खुबसूरत बधाई स्वीकार कीजिये.....

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 6, 2012 at 11:06am

आदरणीय अरुण जी,

सुन्दर अश'आर के फूलों से सजा आपका यह ग़ज़ल रुपी गुलदस्ता बड़ा ही मनभावन है! सहज सरल शब्दों में एक से बढ़ कर एक गूढ़ बातें कह गए आप! ख़ास तौर से तीसरा शे'र -- अधजल गगरी छलकत जाए... और पांचवां -- यहाँ राग दीपक की बातें करता था.. वाह आपने समां बाँध दिया! आपको और आपकी लेखनी दोनों को ही नमन है! सादर,

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 6, 2012 at 9:45am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय सर जी वाह वाह वाह
सादर दाद क़ुबूल कीजिये
हिंदी में ग़ज़ल के प्रचलन को इससे और मजबूती मिलेगी
क्या बात कही है आपने वाह वाह वाह

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 6, 2012 at 8:03am

आदरणीय अरुण जी

                       सादर,आज के चलन को बखूबी बयान किया है आपने

ज्ञान भरे घट जाने कितने दफ्न हुये
अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |

सोने – चाँदी की मुद्रायें लुप्त हुईं
खोटे सिक्के चलन में आये प्राणप्रिये |

खोटे खरे सिक्कों कि बात तो बैंक वाले ही बेहतर जान सकते हैं.

हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

 

 

Comment by वीनस केसरी on August 6, 2012 at 1:27am

अरुण जी आपकी इस ग़ज़ल ने मुग्ध कर दिया
आपने जिस खूबसूरती से, सादा शब्दों में सामाजिक विषमताओं को अशआर में ढाला है उसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है

लगता है ओ बि ओ पर बेहतरीन ग़ज़लों की वर्षा हो रही है

मन प्रसन्न है
जय हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 6, 2012 at 12:20am

शुक्रिया डॉक्टर साहब, आपने इसे पसंद किया, बस मेरी कलम धन्य हो गई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 6, 2012 at 12:18am

आभार माननीय अलबेला जी, आपकी वाह से हौसले बुलंद हुये.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 6, 2012 at 12:17am

वाह उमाशंकर जी, आपने तो हर पंक्ति पर अपने अमूल्य विचार प्रस्तुत करके कृतार्थ कर दिया.

मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on August 5, 2012 at 10:56pm

अरुण भाई बहुत ही उम्दा ग़ज़ल से नवाजा है इस मंच को आपने। ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में एक ग़ज़ल है.....मतले से मकते तक बखूबी निभाई है आपने। खासकर ये शेर तो दिल को छू गया...

सच्चे की किस्मत में तम ही आया है
अब तो झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |

आपको बहुत बहुत मुबारकबाद!

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 5, 2012 at 10:47pm

भूखे - प्यासे हंसों ने दम तोड़ दिया
अब कौआ ही मोती खाये प्राणप्रिये |

sundar panktiyan......vyang se paripurn.......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service