एक ग़ज़ल.......
122 122 122 122
नजर है तो पढ़िए गजल झुर्रियों में
ये चेहरा कभी है रहा सुर्खियों में।
वतन को सजाने के वादे किए थे
सदा आप उलझे रहे कुर्सियों में।
मसीहा समझ के था अगुवा बनाया
मगर आप भी ढल गए मूर्तियों में।
चढ़ाया हमीं ने उतारेंगे हम ही
पलक के झपकते, यूँ ही चुटकियों में।
अरुण के इशारे समझ लें समय है
नसीहत को गिनिए नहीं धमकियों में।।
(मौलिक व अप्रकाशित)☺
Added by अरुण कुमार निगम on August 4, 2018 at 8:00pm — 5 Comments
एक सामयिक ग़ज़ल.....
(१२२ १२२ १२२ १२)
समाचार आया नए नोट का
गिरा भाव अंजीर-अखरोट का |
दवा हो गई बंद जिस रात से
हुआ इल्म फौरन उन्हें चोट का |
मुखौटों में नीयत नहीं छुप सकी
सभी को पता चल गया खोट का |
जमानत के लाले उन्हें पड़ गए
भरोसा सदा था जिन्हें वोट का |
नवम्बर महीना बना जनवरी
उड़ा रंग नायाब-से कोट का |
मकां काँच के हो गए हैं अरुण
नहीं आसरा रह गया ओट का…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on November 11, 2016 at 4:30pm — 4 Comments
आम हूँ बौरा रहा हूँ
पीर में मुस्का रहा हूँ
मैं नहीं दिखता बजट में
हर गज़ट पलटा रहा हूँ
फल रसीले बाँट कर बस
चोट को सहला रहा हूँ
गुठलियाँ किसने गिनी हैं
रस मधुर बरसा रहा हूँ
होम में जल कर, सभी की
कामना पहुँचा रहा हूँ
द्वार पर तोरण बना मैं
घर में खुशियाँ ला रहा हूँ
कौन पानी सींचता…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on March 1, 2015 at 2:00pm — 14 Comments
पापा पापा बतलाओ ना , अच्छे दिन कैसे होते हैं
क्या होते हैं चाँद सरीखे, या तारों जैसे होते हैं.
बेटा ! दिन तो दिन होते हैं ,गिनती के पल-छिन होते हैं
अच्छे बीतें तो सुखमय हैं, वरना ये दुर्दिन होते हैं.
पापा पापा बतलाओ ना , अच्छे दिन कैसे होते हैं
क्या होते हैं दूध-मलाई , या माखन जैसे होते हैं.
बरसों से मैं सुनते आया, स्वप्न सजीले बुनते आया
लेकिन देखे नहीं आज तक, अच्छे दिन कैसे होते हैं
पापा पापा बतलाओ…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on November 23, 2014 at 11:00pm — 10 Comments
(१)
पिसते हरदम ही रहे , मन में पाले टीस
तुझको भी मौका मिला, तू भी ले अब पीस
तू भी ले अब पीस , बना कर खा ले रोटी
हम चालों के बीच , सदा चौसर की गोटी
पूछ रहा विश्वास , कहाँ बदला है मौसम
घुन गेहूँ के साथ , रहे हैं पिसते हरदम ||
(२)
बिल्ली है सम्मुख खड़ी , घंटी बाँधे कौन
एक अदद इस प्रश्न पर , सारे चूहे मौन
सारे चूहे मौन , घंटियाँ शंख बजाते
मजबूरी में नित्य , आरती सारे …
Added by अरुण कुमार निगम on June 22, 2014 at 3:00pm — 6 Comments
संस्कारों की कमी से , मनचले होते रहेंगे
कुछ न बदलेगा जहां में , हादसे होते रहेंगे.
दोष इसका दोष उसका मूल बातें गौण सारी
तालियाँ जब तक बजेंगी , चोंचले होते रहेंगे .
मौन धरने उग्र रैली , जल बुझेगी मोमबत्ती
आड़ में कुछ बाड़ में कुछ सामने होते रहेंगे .
आबकारी लाभकारी लाडला सुत है कमाऊ
और भी तो रास्ते हैं , फायदे होते रहेंगे .
ये गवाही वो गवाही, है बहुत ही चाल धीमी
जानता है हर दरिंदा , फैसले होते …
Added by अरुण कुमार निगम on June 7, 2014 at 12:00am — 14 Comments
सोलह की महिमा में सोलह पंक्तियाँ ...............
सोलह -सोलह लिये गोटियाँ,खेल चुके शतरंजी चाल
सोलह - मई बताने वाली ,किसने कैसा किया कमाल
सोलह कला सुसज्जित कान्हा ने छेड़ी बंसी की तान
सबका जीवन सफल बनाने,सिखलाया गीता का ज्ञान
मानव जीवन में पावनता , मर्यादा के हैं आधार
ऋषियों मुनियों के बतलाये, जीवन में सोलह संस्कार
सोलह - सोमवार व्रत करके , पाओ मनचाहा भरतार
सोलह आने जब मिल जाते, तब लेता रुपिया आकार
उम्र…
Added by अरुण कुमार निगम on May 15, 2014 at 12:00am — 14 Comments
(1)
मत अपना कर्तव्य है , मत अपना अधिकार
एक - एक मत से बनें , मनचाही सरकार
मनचाही सरकार , चुनें प्रत्याशी मन का
मन जिसका निष्पाप, चहेता हो जन-जन का
क्षणिक लाभ का लोभ, मिटा देता हर सपना
हो कर हम निर्भीक , हमेशा दें मत अपना ||
(2)
झूठे निर्लज लालची , भ्रष्ट और मक्कार
क्या दे सकते हैं कभी, एक भली सरकार
एक भली सरकार, चाहिए - उत्तम चुनिए
हो कितना भी शोर,बात मन की ही सुनिए
मन के निर्णय अरुण , हमेशा रहें अनूठे …
Added by अरुण कुमार निगम on April 23, 2014 at 9:00am — 15 Comments
१. “ मैं ”
मैं-मैं तू करके हुआ, भौतिक सुख में लीन
अहम् भाव और देह की, रहा बजाता बीन
रहा बजाता बीन , नहीं ‘मैं’ को पहचाना
परम तत्व को भूल ,जोड़ता रहा खजाना
क्या दिखलाकर दाँत, करेगा केवल हैं हैं ?
जब पूछें यमराज, कहाँ बतला तेरा मैं ||
२. “ तुम “
तुम-मैं मैं-तुम एक है , परम ब्रम्ह का अंश
जाति- धर्म इसका नहीं , और न कोई वंश
और न कोई वंश ,यही तो अजर - अमर…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on January 7, 2014 at 10:57pm — 12 Comments
ग्यारह - बारह बाद में , है तेरह का साल
अंकों ने कैसा किया , देखो आज कमाल
देखो आज कमाल , दिवस यह अच्छा बीते
आज किसी के स्वप्न , नहीं रह जायें रीते
दिल कहता है अरूण, आज तू कुंडलिया कह
है तेरह का साल , मास- तिथि बारह-ग्यारह ||
अरूण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
मौलिक व अप्रकाशित
Added by अरुण कुमार निगम on December 11, 2013 at 9:30am — 11 Comments
पूर्ण शून्य है,शून्य ब्रह्म है
एक अंश सबको हर्षाये
आधा और अधूरा होवे,
शायद प्रेम वही कहलाये
मिट जाये तन का आकर्षण
मन चाहे बस त्याग-समर्पण
बंद लोचनों से दर्शन हो
उर में तीनों लोक समाये
उधर पुष्प चुनती प्रिय किंचित
ह्रदय-श्वास इस ओर है सुरभित
अनजानी लिपियों को बाँचे
शब्दहीन गीतों को गाये
पूर्ण प्रेम कब किसने साधा
राधा-कृष्ण प्रेम भी आधा
इसीलिये ढाई आखर के
ढाई ही…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on November 19, 2013 at 7:00pm — 20 Comments
मृत्यु सुंदरी ब्याह करोगी ?
गीत मेरे सुन वाह करोगी ?
सुख- दु:ख की आपाधापी ने, रात-दिवस है खूब छकाया
जीवन के संग रहा खेलता , प्रणय निवेदन कर ना पाया
क्या जीवन से डाह करोगी ?
कब आया अपनी इच्छा से,फिर जाने का क्या मनचीता
काल-चक्र कब मेरे बस में , कौन भला है इससे जीता
अब मुझसे क्या चाह करोगी ?
श्वेत श्याम रतनार दृगों में , श्वेत पुतलियाँ हैं एकाकी
काले कुंतल श्वेत हो गए , सिर्फ झुर्रियाँ तन पर…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on November 12, 2013 at 8:00am — 25 Comments
जीवन क्या है ? तुहिन सूक्ष्म कण
क्यों ना तुझ पर करूँ समर्पण....
दूर्वादल के क्षणिक पाहुने
संग लिये आती है ऊषा
प्राची के आँचल में रश्मि
बिखरा देती है मंजूषा
बीन-बीन ले जातीं किरणें
तुहिन बिंदु सम जीवन के क्षण......
ना द्युति मेरी,ना छवि मेरी
है सारा सौंदर्य पराया
बल गुरुत्व का, देह सँवारे
मन को लुभा रही है माया
तृषा बढ़ाती मृग-तृष्णायें
फैलाकर अपना आकर्षण......
उतरा था कल शून्य व्योम से
कुछ…
Added by अरुण कुमार निगम on October 19, 2013 at 4:00pm — 19 Comments
सांत्वना
अस्पताल से जाँच की रिपोर्ट लेकर घर लौटे द्वारिका दास जी अपनी पुरानी आराम कुर्सी पर निढाल होकर लेट से गये. छत को ताकती हुई सूनी निगाहों में कुछ प्रश्न तैर रहे थे . रिपोर्ट के बारे में बेटे को बताता हूँ तो वह परेशान हो जायेगा.यहाँ आने के लिये उतावला हो जायेगा. पता नहीं उसे छुट्टियाँ मिल पायेंगी या नहीं. बेटे के साथ ही बहू भी परेशान हो जायेगी. त्यौहार भी नजदीक ही है.…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on October 7, 2013 at 12:30am — 25 Comments
[अंतराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर लघु कथा]
लगभग एक माह पूर्व बेटे का विदेश से फोन आया था कि वह मिलने आ रहा है. मन्नू लाल जी खुशी से झूम उठे. पाँच वर्ष पूर्व बेटा नौकरी करने विदेश निकला था. वहीं शादी भी कर ली थी. अब एक साल की बिटिया भी है.शादी करने की बात बेटे ने बताई थी. पहले तो माँ–बाप जरा नाराज हुये थे, फिर यह सोच कर कि बेटे को विदेश में अकेले रहने में कितनी तकलीफ होती होगी, फिर बहू भी तो भारतीय ही थी, अपने-आप को मना ही लिया था.
मन्नू लाल जी और उनकी पत्नी दोनों ही साठ…
Added by अरुण कुमार निगम on October 1, 2013 at 10:00am — 26 Comments
प्याजी दोहे.....
मंडी की छत पर चढ़ा, मंद-मंद मुस्काय
ढाई आखर प्याज का, सबको रहा रुलाय ||
प्यार जताना बाद में , ओ मेरे सरताज
पहले लेकर आइये, मेरी खातिर प्याज ||
बदल गये हैं देखिये , गोरी के अंदाज
भाव दिखाये इस तरह,ज्यों दिखलाये प्याज ||
तरकारी बिन प्याज की,ज्यों विधवा की मांग
दीवाली बिन दीप की या होली बिन भांग…
Added by अरुण कुमार निगम on August 26, 2013 at 11:14pm — 18 Comments
ये माना चाल में धीमा रहा हूँ
मगर जीता वही कछुवा रहा हूँ ||
बुझाई प्यास कंकर डाल मैंने
तेरे बचपन का वो कौवा रहा हूँ ||
कभी बख्शी थी मेरी जान उसने
छुड़ाया शेर को,चूहा रहा हूँ ||
कुँये में शेर को फुसला के लाया
बचाई जान वो खरहा रहा हूँ ||
मेरे बचपन न फिर तू आ सकेगा
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ||
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर…
Added by अरुण कुमार निगम on August 1, 2013 at 8:48am — 12 Comments
कजरे गजरे झाँझर झूमर , चूनर ने उकसाया था
हार गले के टूट गये सब , ऐसा प्यार जताया था
हरी चूड़ियाँ टूट गईं , क्यों सुबह-सुबह तुम रूठ गईं
कल शब तुमने ही तो मुझको , अपने पास बुलाया था
जितनी करवट उतनी सलवट, इस पर काहे का झगड़ा
रेशम की चादर को बोलो , किसने यहाँ बिछाया था
हाथों की मेंहदी ना बिगड़ी और महावर ज्यों की त्यों
होठों की लाली को तुमने , खुद ही कहाँ बचाया था
झूठ कहूँ तो कौवा काटे…
Added by अरुण कुमार निगम on July 14, 2013 at 7:30pm — 13 Comments
Added by अरुण कुमार निगम on June 6, 2013 at 9:30am — 16 Comments
Added by अरुण कुमार निगम on June 3, 2013 at 8:00pm — 12 Comments
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