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आदमी को कर रहा है, तंग आदमी,
सभ्यता सीखा गया बे-ढंग आदमी,


कोशिशें कर-2 हुआ है, कामयाब अब,
आसमां में भर रहा है, रंग आदमी,

देख के लो हो गयीं, हैरान अंखियाँ,
ओढ़ बैठा है, बुरा फिर अंग आदमी,

सोंच के ना काम कोई आज तक किया,
जी रहा इन्हीं आदतों के, संग आदमी,

दूसरों के दुःख को हरदिन, बढाता था,
हाल अपना जान अब है, दंग आदमी............

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Comment by अरुन 'अनन्त' on July 27, 2012 at 11:42am

आदरणीय भ्रमर जी बहुत - बहुत शुक्रिया. आप स्नेह मिला आभार.

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 27, 2012 at 11:42am

योग्यता जी शुक्रिया

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 27, 2012 at 11:41am

आदरणीय अशोक जी बिलकुल ठीक कहा है आपने.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 26, 2012 at 4:51pm

दूसरों के दुःख को हरदिन, बढाता था, 
हाल अपना जान अब है, दंग आदमी............

अरुण जी सुविचार ...काश इस का ध्यान रख भी हम सुधरें कल आप के ब्लॉग पर भी पहुंचा बहुत सुन्दर लगा 

जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
Comment by Yogyata Mishra on July 26, 2012 at 2:19pm
very true..
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 25, 2012 at 11:45pm

अरुण जी
         सादर,
                    सोच के ना काम कोई आज तक किया,
                      जी रहा इन्हीं आदतों के, संग आदमी.
                यही  तो वन डे लाइफ स्टाइल है. रन आने से मतलब, शोट सही  था या गलत,क्या करना.सुन्दर रचना. बधाई.

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