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जय जय भारत जय जय भारत

जय जय भारत जय जय भारत
नारद शारद करते आरत
जय जय भारत जय जय भारत

वीरों की जननी है भारत
संतों की धरनी है भारत
अब तो बस ठगनी है भारत
जय जय भारत जय जय भारत

नव नव गुंडे फिरते हैं अब
घोटाले ही करते हैं अब
चोरों की सत्ता है भारत
जय जय भारत जय जय भारत

आतंकी अब मौज मनाते
नक्शल वादी फ़ौज बनाते
दहशत की संज्ञा है भारत
जय जय भारत जय जय भारत

गंगा की धारा है निर्मल
यमुना भी बहती है कल कल
पुस्तक में ऐसा था भारत
जय जय भारत जय जय भारत

सुन्दर हर युवती राधा सी
मर्यादा अब है बाधा सी
तोड़े सारे बंधन भारत
जय जय भारत जय जय भारत

दर दर हैं अब भ्रष्टाचारी
अधिकारी ये हैं सरकारी
जनता का लुटता सा भारत
जय जय भारत जय जय भारत

मंदिर में कान्हा लुटते हैं
मस्जिद मैं मौला लुटते हैं
धर्मों का रेला है भारत
जय जय भारत जय जय भारत

कोई साईं कोई दुर्गा
जन मन लगता है अब मुर्दा
षड्यंत्रों का प्यारा भारत
जय जय भारत जय जय भारत

विस्फोटों की रागें सुनता
तरुणों की नव मांगें सुनता
प्रलयंकारी सुर का भारत
जय जय भारत जय जय भारत

मृत्यु करती नर्तन हर पल
बाज़ारों में फिर भी हलचल
तांडव करता सारा भारत
जय जय भारत जय जय भारत

संदीप पटेल "दीप"

Views: 620

Comment

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Comment by Albela Khatri on June 25, 2012 at 12:27pm

सम्मान्य संदीप कुमार पटेल जी,
बहुत सुन्दर रचना कही आपने..........
मन को भा गयी


गंगा की धारा है निर्मल
यमुना भी बहती है कल कल
पुस्तक में ऐसा था भारत
जय जय भारत जय जय भारत
__वाह वाह ...बधाई !

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 25, 2012 at 12:16am

नव नव गुंडे फिरते हैं अब
घोटाले ही करते हैं अब
चोरों की सत्ता है भारत
जय जय भारत जय जय भारत

आतंकी अब मौज मनाते
नक्शल वादी फ़ौज बनाते
दहशत की संज्ञा है भारत
जय जय भारत जय जय भारत

संदीप जी अब ऐसे हालात हो गए .........अपने प्यारे भारत के लिए ये सब सुनना पड़ता है इन कमीनों भ्रष्टाचारियों की खातिर ....क्या कभी ये अंधे जागेंगे ?

सुन्दर ...भ्रमर ५ 

 

Comment by आशीष यादव on June 24, 2012 at 1:25pm

संदीप सर, यह रचना बहुत अच्छी लगी। लिखा भी आपने जोश-ओ-उमंग से है।
शानदार रचना पर बधाई स्वीकारें।
आदरणीय सौरभ सर ने बहुत ही अच्छी जानकारी दी जो हम सबके लिये उपयोगी है। नमन है उन्हे भी।

Comment by Rekha Joshi on June 24, 2012 at 11:20am

संदीप जी ,

वीरों की जननी है भारत
संतों की धरनी है भारत
अब तो बस ठगनी है भारत 
जय जय भारत जय जय भारत , अच्छा प्रयास ,लिखते रहो |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 24, 2012 at 10:05am

//इस दोष को भी दूर करना अतिआवश्यक है या तो जनक रहने दें या माता
पूरी कविता एक परिपेक्ष में होनी चाहिए थी//

आपका आभार कि आपने मेरे इंगित को सही परिप्रेक्ष्य में लिया है, भाई संदीपजी.  कविता ही नहीं किसी भी रचना में किसी संज्ञा का स्वरूप बिना आवश्यकता के नहीं बदल जाता. उसके लिये भी रचनात्मक कारण होते हैं. अन्यथा, सतह पर दोष उभर आता है. विशेषकर लिंग सम्बन्धी बदलाव तो एकदम से संवेदनशील बदलाव हुआ करता है.

आप मंच पर अन्यान्य की रचना पर अपनी सार्थक समझ अवश्य साझा करें. यह स्वाध्याय की सबसे बड़ी कूँजी है, भाईजी.  अन्य रचनाकारों के सार्थक प्रयास को पढ़ना, हृदयंगम करना स्वयं की रचनाप्रक्रिया को ही सबल बनाता है.  आपसे बहुत अपेक्षाएँ हैं तथा इसी अपेक्षा ने मुझे आपसे मुखातिब किया है.

शुभेच्छाएँ.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 24, 2012 at 9:36am

ये हमारी बोली ही है की कहीं हम इसे जनक स्वीकारते हैं कहीं माता
इस दोष को भी दूर करना अतिआवश्यक है या तो जनक रहने दें या माता
पूरी कविता एक परिपेक्ष में होनी चाहिए थी
सादर नमन गुरुवर आपको

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 24, 2012 at 9:33am


कविता के दोषों के बचने के लिए पढना आवश्यक है ये बात भी आपने दुरुस्त कही है गुरुवर
अपना स्नेह और आशीर्वाद ऐसे ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 24, 2012 at 9:27am

आदरणीय गुरुवर सादर नमन
आपकी बात एकदम सही है
इस बात का ध्यान दिलाने के लिए आपका सादर आभारी हूँ
ये दोष भारत का नहीं उनके कपूतों का है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 23, 2012 at 10:28pm

१.  अब तो बस ठगनी है भारत
२.  चोरों की सत्ता है भारत
३.  दहशत की संज्ञा है भारत

???????????????????

यह अपराध भारत के हैं या भारत के कपूतों की बातें हो रही हैं?   पूत कपूत हों तो हों माता कुमाता नहीं होती, साहब, हमने तो यही सुना है.  फिर, पूत कपूत हो जायँ तो माता परेशान अवश्य होती है.  भारत माता तो दारुण कष्ट में है. फिर इस माता को दुत्कार भरे शब्द कहना कितना समीचीन है ?

दूसरे,

वीरों की जननी है भारत
संतों की धरनी है भारत...

यानि भारत के माता स्वरूप को स्वीकारा गया है इस रचना में.  फिर -

१. पुस्तक में ऐसा था भारत
२. षड्यंत्रों का प्यारा भारत
३. तांडव करता सारा भारत  .... 

अब क्या हुआ ?  भारत किस तरह की जननी है जो अचानक जनक हो गयी ? 

संदीपजी, रचना-कर्म भावुक शब्दों का जमावड़ा नहीं बल्कि तथ्यात्मकता और सतत प्रयास का सार्थक संप्रेषण है.

आप पढ़िये, अवश्य पढ़िये.  और उन पढ़े पर अपनी समझ के अनुसार मंतव्य साझा करें.  मात्र सुनाना अतुकांत बना देता है. 

किन्तु, यह अवश्य है कि आनेवाला समय आपका है.  आने वाले दिन आपके हैं.

शुभेच्छाएँ.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 23, 2012 at 4:43pm

मेरा भारत महान 

जाने सारा जहान

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