For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बारिश का मौसम
काले काले मेघ
काली काली जुल्फों के सायों की मानिंद
टिप -टिप टिप- टिप
बूँदें गिरती है
भीगी भीगी जुल्फों से टूटे मोती से
भिगोती है तन
मेरी सानों को छूती
भिगोती है मन

तेज़ हवाएं
खुनक खुनक सी
जैसे आँचल से
करती हो पंखा

हर ओर हरियाली
सब्ज शबनमी
सेज सजी है
और घूंघट में सिमटी शर्माती सी
आफताबी किरण

लुका छुपी खेलती चांदनी
गले लगाती है
तन्हाई
आग लगाती है
जुदाई
यादों के खिलते खार
चाहत के मुरझाये गुल
दर्द भरी सलवटें
बिस्तर पर
सूनी सी करवटें

और ठंडी बूंदे
सुलगाती हैं शोले
जो दहकते हैं
गम की तपिश लिए

आँखें भी करती हैं
बरसात
रिमझिम रिमझिम
पाक गंगाजल सी
जिसमे दिखता है अक्स
सच का अक्स
जो आइना है
कल का , आज का
मेरा और सिर्फ मेरा
सब तो बदल गया
पर वो न बदला
बारिश का मौसम

............संदीप पटेल "दीप ..........

Views: 507

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Albela Khatri on June 25, 2012 at 1:06pm

jai ho !

achha laga

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 24, 2012 at 9:40am

शाब्दिक होने से बचा जा सकता था मुझे समझ आया है सर जी
भावों को  कम  शब्दों में ही समेटा  जा सकता था
सच कहा गुरुवर आपका आभारी हूँ
और प्रतिक्रियें नहीं दे पाने का क्षोभ रहता है गुरवर किन्तु अभी मैं क्षमा चाहता हूँ सभी मित्र जनों से गुरुजनों से अग्रजों से

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 23, 2012 at 9:10pm

संदीपजी, आपकी इस कविता में बहुत ही संभावनाएँ थीं.  काश आप शाब्दिक होने से बचे होते.  इस रचना पर ’अच्छा है’  मैं नहीं कहूँगा, कि, आप से अपेक्षा होती है.

परन्तु, सर्वप्रथम एक प्रश्न है आपसे. क्या आप पढ़ते हैं ? अन्य रचनाकारों की रचनाओं को ? या अन्य की टिप्पणियों को ? बहुत कुछ हल होने लगेगा. अनुभूत भावनाएँ शब्द चाहती हैं किन्तु, शाब्दिकता नहीं.  इसके प्रति संवेदनशीलता अन्यान्य रचनाओं को पढ़ने से बढ़ती है.  यदि आप अन्य की रचनाओं को पढ़ते हैं तो आप स्वयं  समझ सकते हैं कि मैं कहाँ इंगित कर रहा हूँ. 

दूसरी बात, यदि आप अन्य रचनाकारों की रचनाएँ पढ़ते हैं तो आपकी सम्यक और इंगित करती टिप्पणियों से मैं बहुत कम ही दो-चार हो पाया हूँ.

सधन्यवाद

Comment by AVINASH S BAGDE on June 23, 2012 at 8:12pm

सब तो बदल गया
पर वो न बदला
बारिश का मौसम...wah!...संदीप पटेल "दीप ...wah!

Comment by Yogi Saraswat on June 23, 2012 at 10:13am

आँखें भी करती हैं
बरसात
रिमझिम रिमझिम
पाक गंगाजल सी
जिसमे दिखता है अक्स
सच का अक्स
जो आइना है
कल का , आज का
मेरा और सिर्फ मेरा
सब तो बदल गया
पर वो न बदला
बारिश का मौसम

बहुत खूब , सुन्दर शब्द !

Comment by Rekha Joshi on June 22, 2012 at 9:39pm

Sandeep ji 

हर ओर हरियाली
सब्ज शबनमी
सेज सजी है
और घूंघट में सिमटी शर्माती सी
आफताबी किरण sundr shbd piroyen hae aapne ,badhai 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 22, 2012 at 3:58pm

हर ओर हरियाली
सब्ज शबनमी
सेज सजी है
और घूंघट में सिमटी शर्माती सी
आफताबी किरण 
बहुत खूब. बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2012 at 11:46am

रिमझिम फुहारों जैसे एहसास के शब्द बहुत सुन्दर मनभावन रचना 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 22, 2012 at 11:04am

रस भरी कविता......बधाई बंधुवर........

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा पंचक - राम नाम
"वाह  आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहों का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
दिनेश कुमार posted a blog post

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार ( गीत )

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार( सुधार और इस्लाह की गुज़ारिश के साथ, सुधिजनों के…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा पंचक - राम नाम

तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।बिना राम  के  नाम  के,  कुन्दन-हीरा  काँच।१।*तपते दुख की  धूप …See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, हार्दिक धन्यवाद  आभार आपका "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service