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सब से हसीन ख्वाब का मंजर सँभालकर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221/2121/1221/212
****
सब से हसीन ख्वाब  का मंजर सँभालकर
नयनों में उस के प्यार का गौहर सँभालकर।१।
*
उर्वर करेगा कोई  तो  फिर  से ये सोच बस
सदियों रखा है जिस्म का बंजर सँभालकर।२।
*
कीटों  के  प्रेत   नोच  के  हर  शब्द  ले  गये
रक्खा है खत का आज भी पैकर सँभालकर।३।
*
पुरखों से सीख पायी है इस से ही रखते हम
नफरत के  दौर  प्यार  के  तेवर  सँभालकर।४।
*
फूलों से उस को दूर ही रखना सनम सदा
जिस ने रखा है हाथ में पत्थर सँभालकर।५।
*
आयी बहार जब से  है  अपने भी गाँव में
यादों में रख दिया है ये पतझर सँभालकर।६।
*

(28-10-23)
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 30, 2023 at 10:54am

आदरणीय धामी जी...ग़ज़ल अच्छी लगी...सादर

Comment by SALIM RAZA REWA on November 7, 2023 at 8:23pm
भाई लक्ष्मण धामी जी,
ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़बूल करें,
आप इस मंच में बहुत पुराने क़लमकार है , नुक़्ते का हमेशा ख़्याल रखा करें, ग़ज़ल अच्छी है कुछ मशविरे हैं अगर पसंद आए .
,,,,,,,
सब से हसीन (ख़्वाब )का (मंज़र) सँभालकर

नयनों में उस के प्यार का गौहर सँभालकर।१।

*
उर्वर करेगा कोई  तो  फिर  से ये सोच बस (मिसरा बदलें)
सदियों रखा है जिस्म का बंजर सँभालकर।२।

*
कीटों  के  प्रेत   नोच  के  हर  शब्द  ले  गये

रक्खा है (ख़त को आज भी दिलबर )सँभालकर।३।

।४। शेर को और अच्छा कहें 

ऐसा कर लें
(फूलों को उनसे दूर ही रखना है लाज़मी)

जिस ने रखा है हाथ में पत्थर सँभालकर।५।

*
आयी बहार जब से  है  अपने भी गाँव में xx
यादों में रख दिया है ये पतझर x सँभालकर।६।
सही लफ़्ज़ है (पतझड़) ऐसा कर लें

(जब से बहार आई है अपने ही गाँव में
ख़ुशियों का रख लिया है ये ज़ेवर सँभालकर)
Comment by Sushil Sarna on November 5, 2023 at 8:23pm
वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही खूबसूरत बनी है । हार्दिक बधाई सर

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