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कफनचोर

छोड़ा ही क्या है इसने?’

घर के पिछवाड़े तक की जमीन बेच दी।

भुवन के घर की यारी ऐसे ही फलती है।

भगेलू की भौजाई से रिश्ता था इसका।

मरने लगा तो बहन के घर इलाज कराने गया था।

शीला मरा पड़ा था और गाँव के मर्द-औरत यही सब बतिया रहे थे। अर्थी तैयार हुई।लाश उसपर रख दी गई।अब अर्थी उठने ही वाली थी कि सब लोग चौंक गए। ‘ठहरो। अर्थी नहीं उठेगी।भार्गव ज़ोर से चिल्लाया। साथ में उसका छोटा बेटा चम्पक भी था।

क्या हुआ?’ शीला के घरवालों ने पूछा।

देखो।चम्पक ने धवल कागज के एक पन्ने को हवा में लहराया। बोला, ‘दो लाख लिए थे इसने। तीन साल हो गए। तीस हजार लौटाए इसने। एक लाख सत्तर हजार बकाया है। दो, तब लाश उठाओ।

दो-तीन लोगों ने कागज का वह टुकड़ा झपटा। पढ़ने लगे, ‘तीस हजार ....पचास हजार........सत्तर हजार.....आदि ...वापस तीस हजार बस।तीस हजार रुपए वापसी की तारीख तीन साल पहले की थी। बाकी तारीखें साल-दो साल पहले की।

अब भार्गव और उसका बेटा सवालों के घेरे में थे। लोगों ने पूछा, ‘इसने पहले कर्ज लिए?’

हाँ।बाप-बेटा दोनों एकबारगी ही बोल गए।

बाद में रुपए तीस हजार इसने लौटा दिये?’

हाँ जी हाँ।भार्गव गुस्से में बोला।

तो तीस हजार की तारीख पहले की कैसे है, रे कमीने?’ एक साथ ढेर सारे लोग बोल पड़े। बाप-बेटे को काटो तो खून नहीं। मुँह छिपाकर भागे।

कफनचोर हैं स्सा.....ल्ले।यही आवाज गूँजी और शीला की अर्थी उठ गई।

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by Manan Kumar singh on November 10, 2022 at 9:26am

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय महेंद्र  जी। नमन। जहाँ तक तिथियों का सवाल है,वह मुहल्ले में सबको विदित है कि जब शीला के मरने कि खबर फैली ,तो आनन-फानन में बाप-बेटे ने एक नए पन्ने पर यह सब कुछ लिखा। देखने पर लोग छींटाकशी करने लगे कि तीन साल पहले लिखा हुआ कागज इतना ताजा कैसे? जरा भी मुड़ा तक नहीं है। तब उनलोगों ने जाकर उस पन्ने को मुड़ा-तुड़ा बनाया,गंदा किया और लेकर घूमने लगे। वे शीला के पड़ोसी हैं,कोई सेठ-साहूकार नहीं। 

Comment by Mahendra Kumar on November 7, 2022 at 8:40pm

आदरणीय मनन जी, लघुकथा के भाव अच्छे हैं जिस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है। लोगों के साथ ठगी करने वाले बहुत शातिर होते हैं। कर्ज़ देने की तिथि बाद में और लौटाने की तिथि वे पहले लिखेंगे, इतनी छोटी ग़लती असम्भव भले न सही पर अस्वाभाविक ज़रूर लगती है। उम्मीद है आप विचार करेंगे। 

Comment by Manan Kumar singh on November 1, 2022 at 8:34pm

आपका आभार आदरणीय।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2022 at 7:05pm

बढ़िया सामाजिक कटाक्ष किया है लघुकथा में आदरणीय... बधाई

Comment by Manan Kumar singh on October 27, 2022 at 8:43am

आपका आभार आ.लक्ष्मण भाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 27, 2022 at 6:40am

आ. भाई मनन जी , सादर अभिवादन। अच्छी लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई। 

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