For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (शुक्र तेरा अदा नहीं होता)

2122-1212-22

शुक्र तेरा अदा नहीं होता

और वा'दा वफ़ा नहीं होता

तू न तौफ़ीक़ दे अगर मौला 

एक सज्दा अदा नहीं होता 

सिर्फ़ तौबा पे बख़्शने वाले 

कोई तुझ-सा बड़ा नहीं होता 

घर नहीं, है वो एक वीराना 

ज़िक्र जिस में तेरा नहीं होता 

सबके अहवाल जानता है तू

कुछ भी तुझ से छुपा नहीं होता 

तेरी रहमत के आसरे पर हूँ 

तू जो चाहे तो क्या नहीं होता

और बे-ज़र 'अमीर' क्या मांगे

ख़ाली बरतन मेरा नहीं होता 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 451

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 19, 2022 at 4:26am

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 14, 2022 at 8:07pm

आदरणीय दण्डपाणि नाहक़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

//मतला बेहतर हो सकता है और मक़्ता भी//

जनाब मक़्ता तो ठीक ही है, अलबत्ता मतले में गुंजाइश ज़रूर है, देखता हूँ। 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 14, 2022 at 4:24pm

आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

//मतला बेहतर हो सकता है।//

जनाब, मतले पर आदरणीय रवि भसीन जी से हुई चर्चा में ख़ाकसार के दृष्टिकोण के अनुरूप कोई सुधार आपके ज़ह्न में हो तो ज़रूर बताइएगा, आभारी रहूँगा... सादर।

Comment by Mahendra Kumar on October 13, 2022 at 7:40pm

आदरणीय अमीरुद्दीन जी, अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। मतला बेहतर हो सकता है। 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 7, 2022 at 6:42pm

//मक़्ता में 'मांगे' को 'माँगे' लिखना ज़्यादा मुनासिब होगा//

सहमत

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 7, 2022 at 6:14pm

मुहतरम रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है, ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

/और वा'दा वफ़ा नहीं होता/ दरअसल ये मिसरा मैंने यूँ रखा था-

'कोई वा'दा वफ़ा नहीं होता' मगर छान-बीन से ये मा'लूम हुआ कि हू-ब-हू यही मिसरा जनाब काज़िम रज़ा 'राही' के एक शे'र में शामिल है, जो यूँ है-

मुफ़्लिसी की वजह से ऐ 'राही'

'कोई वा'दा वफ़ा नहीं होता'... इस लिये बदलना पड़ा, मगर भाव वही है, 

आपकी तज्वीज़ भी बहतरीन है, मगर 'बस ये' से भाव बदल रहा है, इसलिए माज़रत ख़्वाह हूँ। 

वैसे...मतला स्वतंत्र होने के साथ-साथ दूसरे शे'र के साथ क़तअ-बन्द है। :-)) 

/और वा'दा वफ़ा नहीं होता/

/बस ये वा'दा वफ़ा नहीं होता/

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on October 7, 2022 at 1:47pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब, आदाब! इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर आप को ख़ूब सारी दाद और बधाई! अगर मतला के मिस्रा-ए-सानी को यूँ कहा जाए तो कैसा रहेगा?
/शुक्र तेरा अदा नहीं होता
और वा'दा वफ़ा नहीं होता/
बस ये वा'दा वफ़ा नहीं होता
सुझाव मात्र है, अगर पसंद ना आये तो कोई बात नहीं।
मक़्ता में 'मांगे' को 'माँगे' लिखना ज़्यादा मुनासिब होगा।
आपकी ग़ज़ल का दूसरा शे'र लाजवाब है। शुभकामनाएँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   देवों की है कर्म भूमि, भारत है धर्म भूमि, शिक्षा अपनी…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
Monday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
Monday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service