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सार छंद - अनुभूति

सार छंद  : अनुभूति

छन्न पकैया छन्न पकैया, कैसी प्रीत निभायी ,
दिल ने तुझको  समझा अपना , तू निकला हरजाई।

छन्न पकैया छन्न पकैया, सपनों में जब आना ,
किसी और के सपनों मे फिर ,भूले से मत जाना ।

छन्न पकैया छन्न पकैया, कैसा ये युग आया ।
रिश्तों का कोई मोल नहीं, अच्छी लगती माया ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, कैसा कलियुग आया ।
सास बनाये रोटी सब्जी, बहू सजाए काया ।।


सुशील सरना / 12-4-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on May 3, 2022 at 12:05pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2022 at 8:49pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सार छंद पर अच्छी प्रस्तुति हुई, हार्दिक बधाई।

Comment by Sushil Sarna on April 23, 2022 at 11:55am
आदरणीय बृजेश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 22, 2022 at 8:16pm

सार छंद में बढ़िया रचना है आदरणीय...

Comment by Sushil Sarna on April 21, 2022 at 9:54pm
आदरणीय समर कबीर जी, आदाब, सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा और सार्थक सुझाव का दिल से आभारी है ।सहमत एवं संशोधित ।
Comment by Samar kabeer on April 18, 2022 at 3:16pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, सार छंद पर अच्छी प्रस्तुति हुई, बधाई स्वीकार करें ।

'दिल ने तुमको समझा अपना , तू निकला हरजाई'

इस पंक्ति में 'तुमको' की जगह "तुझको" करना उचित होगा,देखें ।

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