For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - गुरप्रीत सिंह जम्मू

22-22-22-22-22-2

तुम कोई पैग़ाम कभी तो भिजवाओ।
वरना मेरे कबूतर वापिस दे जाओ।

जिसको तुमने अपने दिल से भुलाया है,
क्या ये वाजिब है खुद उसको याद आओ ?

मैने कहा जब,तुमने दिल को ज़ख़्म दिया,
वो बोले, कितना गहरा है, दिखलाओ।

जब से तुम बिछड़े हो, खुद से दूर हूं मैं,
प्लीज़ किसी दिन मुझ को मुझ से मिलवाओ।

आंखों में हैं ख्वाब भरे, पर नींद उड़ी,
गर ये प्यार नहीं तो क्या है, समझाओ।

'वो' कब के गुलशन से बाहर जा पहुंचे,
ऐ फूलो, कुछ होश करो, मुरझा जाओ।

तारों भरे आकाश से भी सुंदर कुछ है,
ऐसा करो तुम अपनी चुनरी लहराओ।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 635

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 4, 2021 at 2:48pm

जनाब गुरप्रीत सिंह जम्मू साहिब आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।  सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2021 at 9:25am

आ. भाई गुरप्रीत जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by सालिक गणवीर on November 22, 2021 at 7:18pm

भाई  Gurpreet Singh jammu  जी
सादर नमस्कार
बहुत उम्दः ग़ज़ल कही है आपने ,शैर दर शैर मुबारक़बाद क़ुबूल करें। कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं ,ध्यान दें. यथा हूँ ,आँखों ,पँहुचे। जहाँ तक मैं जानता हूँ ग़ज़ल में कॉमा या प्रश्नवाचक चिन्हों का इस्तेमाल नहीं होता। सादर।

Comment by Gurpreet Singh jammu on November 20, 2021 at 11:38am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नीलेश सर, आप जिस तरह हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते हैं ये उस का भी नतीजा है की थोड़ा बहुत बेहतर कहने लगा हूं।
आपने मतले में के बारे में बहुत शानदार सुझाव दिया है, *लौटाओ* बिलकुल परफेक्ट रहेगा सर जी। आपकी ग़ज़ल के लिए समझ बहुत ही लाजवाब है।
एक बात आपसे करनी है । मैं अभी कुछ अरसे के बाद obo पर आया और हाल फिलहाल की कुछ गजलें और उन पर हुई चर्चा पढ़ी। चर्चाएं होनी चाहिएं लेकिन जिस तरह कुछ चर्चाएं हुई हैं, जैसे आपकी और आदरणीय समर सर के बीच में हुई चर्चा में आपकी तरफ से जिस तरह आक्रामक लहज़े में बात रखी गई, वो अच्छा नहीं लगा, उसे पढ़कर मन दुखी हुआ। और फिर आपने इससे संबंधित कुछ गजलें भी पोस्ट की। हालांकि इन गजलों में आपने अपनी किसी मसले पर गजलियत बरकरार रखते हुए त्वरित गजल कहने की अद्भुत क्षमता के दर्शन करवाए।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 16, 2021 at 7:15pm

आ. गुरप्रीत जी 
आपकी ग़ज़ल का इंतज़ार यूँ ही नहीं रहता मुझे.. आप की ग़ज़ल बात करना जानती है ..यूँ तो हर शेर बेहतरीन हुआ है फिर भी मतले के लिए विशेष दाद लीजिये.. सानी में दे जाओ की जगह लौटाओ पर भी विचार कीजियेगा .
हासिल-ए- ग़ज़ल शेर .. 
जब से तुम बिछड़े हो, खुद से दूर हूं मैं,
प्लीज़ किसी दिन मुझ को मुझ से मिलवाओ।... ढेरों दाद और दुआएँ स्वीकार कीजिये इस अच्छे शे'र के होने पर..
आग्रह है कि पोस्ट्स की फ्रीक्वेंसी बढाइये ताकि मेरा इंतज़ार इतना लम्बा न हो 
बहुत बहुत बधाई 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 15, 2021 at 6:25pm

बहुत ही बढ़िया कहा आदरणीय गुरप्रीत जी...व्याकरणीय दृष्टि से तो मैं कुछ कह नहीं पाऊँगा... लेकिन भाव और कुछ अशआर की रवानगी बेहतरीन है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुण्डलिया * पानी-पानी  हो  गया, जब आयी बरसात। सूरज बादल में छिपा, दिवस हुआ है रात।। दिवस…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"रिमझिम-रिमझिम बारिशें, मधुर हुई सौगात।  टप - टप  बूंदें  आ  गिरी,  बादलों…"
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हम सपरिवार बिलासपुर जा रहे है रविवार रात्रि में लौटने की संभावना है।   "
18 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुंडलिया छंद +++++++++ आओ देखो मेघ को, जिसका ओर न छोर। स्वागत में बरसात के, जलचर करते शोर॥ जलचर…"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुंडलिया छंद *********** हरियाली का ताज धर, कर सोलह सिंगार। यौवन की दहलीज को, करती वर्षा पार। करती…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम्"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
Wednesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service