For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कभी दुख में भी मुस्कराकर तो देखो -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२

कभी रिश्ते मन से निभाकर तो देखो
जो  रूठे  हुए  हैं  मनाकर  तो  देखो।१।
*
खुशी  दौड़कर  आप  आयेगी साथी
कभी दुख में भी मुस्कराकर तो देखो।२।
*
बदल लेगा रंगत जमाना भी अपनी
कभी झूठी हाँ हाँ मिलाकर तो देखो।३।
*
कभी  रंज  दुश्मन  नहीं  दे  सकेगा
स्वयं से स्वयं  को बचाकर तो देखो।४।
*
सदा  पुष्प  से  खिल  उठेंगे  ये रिश्ते
कि पाषाण मन को गलाकर तो देखो।५।
*
कोई पाँव तुमको न घायल मिलेगा
कभी शूल पथ से उठाकर तो देखो।६।
*
कहाँ घर तमस का ये मालूम होगा
किसी रात सूरज जगाकर तो देखो।७।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 576

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on March 25, 2021 at 7:27pm

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, बेहतरीन गज़ल ।

कोई पाँव तुमको न घायल मिलेगा
कभी शूल पथ से उठाकर तो देखो।६।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 25, 2021 at 1:41pm

आ. भाई समर जी, पुनः मार्गदर्शन के लिए आभार..

Comment by Samar kabeer on March 25, 2021 at 12:06pm

'कभी हाँ में हाँ भी मिलाकर तो देखो'

मिसरा अच्छा है,लेकिन ऊला में भी 'भी' शब्द है इसलिये मिसरा यूँ कहना उचित होगा:-

'कभी हाँ में हाँ तुम मिलाकर तो देखो'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 25, 2021 at 9:47am

आ. भाई समर जी सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व मार्गदर्शन के लिए आभार। इंगित मिसरे में बदलाव किया है देखिएगा

कभी हाँ में हाँ भी मिलाकर तो देखो'

Comment by Samar kabeer on March 25, 2021 at 8:11am

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।


'जो  रूठे  हुए  हैं  मनाकर  तो  देखो'

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-

'जो रूठे हैं उनको मनाकर तो देखो'

'कभी झूठी हाँ हाँ मिलाकर तो देखो'

मुहावरा 'हाँ में हाँ मिलाना' है,इस हिसाब से मिसरा बदलने का प्रयास करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 25, 2021 at 7:31am

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।
 

//'खुशी भी स्वयं दौड़ आयेगी साथी' 

//'कभी रंज दुश्मन नहीं दे सकेगा

स्वयं से स्वयं को बचाकर तो देखो।४।  इस में स्वयं से स्वयं को बचाने का तात्पर्य यह है कि अधिकांशतया मनुष्य खुद अपना दुश्मन होता है। अपने आचार व्यवहार के कारण। अतः यदि उसने स्वयं से दुश्मनी मिटा ली तो सब ठीक रहेगा।

//सदा पुष्प से खिल रहेंगे ये रिश्ते

कि पाषाण मन को गलाकर तो देखो।५। 
इस शे'र  सानी के शिल्प में मेरे हिसाब से कोई दोष नहीं है। आपके द्वारा सुझाया सुझाव अच्छा है पर उससे मन्तव्य बदल रहा है। सादर...

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 23, 2021 at 11:31pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। 

'खुशी दौड़कर आप आयेगी साथी'  इस मिसरे में 'आप' की जगह 'ख़ुद ही' शिल्प की दृष्टि से उचित होगा।

'कभी रंज दुश्मन नहीं दे सकेगा

स्वयं से स्वयं को बचाकर तो देखो।४।  इस शे'र मिसरों में रब्त नहीं है, ऊला यूँ कर सकते हैं -

'गले ग़ैर को भी लगाकर तो देखो'

'सदा पुष्प से खिल उठेंगे ये रिश्ते

कि पाषाण मन को गलाकर तो देखो।५।  इस शे'र के ऊला के शब्द विन्यास तथा सानी के शिल्प पर ग़ौर कीजियेगा।

ऊला में 'सदा' की जगह' अभी' करने से बात बन सकती है। सानी को यूँ कर सकते हैं - 

दिलों से सियाही हटा कर तो देखो।  सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service