मौन रहता सच सदा ही, आवाज झूठ ही करता है
कर्म दिखाता सच का चेहरा, झूठ भ्रम को पैदा करता है ||
प्रमाण देता झूठ सदा ही, खूब खोखले दावे करता है
परवाह ना सच को किसी बात की, वो तो हौंसले की उड़ान को भरता है ||
तकलीफ होती झूठ को हरदम, ना खुशी बर्दास्त ही करता है
आग लगाता कहीं ना कहीं, जब भी शोर वो करता है ||
सच सागर सी शक्ति का मालिक, सदा मर्यादा धारण करता है
गमगीन रहता तह हृदय से, नए मुकाम वो हासिल करता है ||
झूठ तो जलता अपनी आग में, सच शांति की आंहे भरता है
विनर्मता रहती वाणी में सच की, हृदय में सीधा उतरता है ||
कुछ अर्थ होता उसकी बात में, ना शोर-शराबा करता है
झूठ कहता अभिमान से, सच कभी ना डरता है ||
झुकना पड़ता झूठ को सदा ही जब सच सामना करता है
तर्क-वितर्क में सम्मान को खोता, आंखे भी नीची करता है ||
सच का दामन कभी ना छोड़ो, पैदा मकसद जीने का करता है
गले लगाता उसी को लेकिन, जो सरल मार्ग पर चलता है ||
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
जनाब फूल सिंह जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
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