2122 2122 2122 212
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है जिधर मेरी नज़र उसकी नज़र जाने तो दो
कायनात ए इश्क़ को हर सू बिखर जाने तो दो
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क्या हमें हासिल हुआ इस ज़िन्दगी से दोस्तो
सब बताएंगे मगर जाँ से गुज़र जाने तो दो
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हम अदालत में करेंगे पैरवी हर झूठ की
शर्म आँखों की ज़रा सी और मर जाने तो दो
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तर्के निस्बत का भी मातम तुम मना लेना मगर
ताज दिल का टूट कर पहले बिखर जाने तो दो
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आँख से बहता समंदर बाँध कर रखना ज़रा
कतरा कतरा ज़िन्दगी को तुम बिखर जाने तो दो
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ए हवाओ तुम गिराना शौक से दिल का महल
पहले उसको बेवफ़ाई पर उतर जाने तो दो
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रूह को आजाद करना जिस्म से "निर्मल' मगर
जाँ ब लब इन ख़्वाहिशों को पूरा मर जाने तो दो
जाँ ब लब : मृत प्राय
मौलिक व अप्रकाशित
रचना निर्मल
Comment
आ. रचना बहन, सादर अभिवादन । सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय नीलेश शेवगांवकर जी नमस्कार। आदरणीय बेहद शुक्रिया।
आदरणीय समर कबीर सर् आदाब।सर् ग़ज़ल तक आने तथा हौसला बढ़ाने के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ।
बेहद शुक्रिय:
आ. रचना जी,
उम्दा ग़ज़ल हुई है. बधाई
सादर
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