For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल

1222 1222 1222 122

करेगा दम्भ का यह काल भी अवसान किंचित ।

करें मत आप सत्ता का कहीं अभिमान किंचित ।।

क्षुधा की अग्नि से जलते उदर की वेदना का ।

कदाचित ले रहा होता कोई संज्ञान किंचित ।।

जलधि के उर में देखो अनगिनत ज्वाला मुखी हैं।

असम्भव है अभी से ज्वार का अनुमान किंचित।।

प्रत्यञ्चा पर है घातक तीर शायद मृत्यु का अब ।

मनुजता पर महामारी का ये संधान किंचित ।।

चयन पर आज जनता की यही स्तब्धता है ।

प्रकट कैसे अहं का आप में प्रतिमान किंचित ।।

बिकी हैं राष्ट्र की सम्पत्तियाँ और स्मिता भी ।

चुनावों तक रहेगा देश को यह ध्यान किंचित ।।

प्रकृति के मर्म के उपहास का परिणाम ही है ।

प्रलय करने चला है युद्ध का सम्मान किंचित ।।

शवों पर काल का यह ताण्डव तुम रोक लेते ।

हृदय में सृष्टि का होता कहीं स्थान किंचित ।।

विवशता की परिधि का टूटना है सत्य अंतिम ।

यहाँ करता है मानव प्रति दिवस विषपान किंचित ।। -

नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अ प्रकाशित

शब्दार्थ - किंचित -(विशेषण )थोड़ा, कुछ, क्षणिक, किंचित- (क्रिया विशेषण ) अल्प मात्रा में ,बहुत कम

Views: 561

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on May 9, 2020 at 12:15pm
आ0 डॉ छोटे लाल सिंह साहब तहेदिल से शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on May 9, 2020 at 12:14pm
आ0 लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर साहब हार्दिक आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on May 9, 2020 at 12:13pm
आ0 सूबे सिंह सुजान साहब विशेष आभार।
Comment by Naveen Mani Tripathi on May 9, 2020 at 12:12pm
आ0 समर कबीर साहब सप्रेम नमन के साथ आभार ।
Comment by सूबे सिंह सुजान on May 6, 2020 at 5:17am

नवीन जी,शुद्ध हिन्दी में ग़ज़ल और वह भी महामारी पर कही गई है बहुत सुंदर रचना बन पड़ी है ।बहुत बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 4, 2020 at 1:31pm

आ. भाई नवीन जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on May 4, 2020 at 11:44am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 3, 2020 at 8:14pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई हो 

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 3, 2020 at 7:32pm

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी यथार्थ के धरातल पर बहुत ही अच्छी गज़ल लगी ,बहुत बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
3 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
22 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service