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रिवायतें तो सनम सब निभाई यारी की (८६ )

(1212 1122 1212 22 /112 )

रिवायतें तो सनम सब निभाई यारी की

तमाम तोड़ हदें हमने दुनिया-दारी की

**

करोगे बात किसी की गर इंतजारी की

जुड़ेगी इस से कहानी भी बेक़रारी की

**

जब आब सर से हमारे लगा गुज़रने तब

निराश होके सनम हमने दिलफ़िगारी की 

**

रक़ीब से जो मिले आप बे-हिज़ाब मिले

हमीं से सिर्फ़ लगातार पर्दे-दारी की

**

जूनून और गुमाँ में हुज़ूर भूल गए

क़सम भी कोई निभानी है राज़-दारी की

**

थी काफ़ी आतिश-ए-हिज्राँ हमें जलाने को

फ़िज़ूल आपने जुम्लों से शोला-बारी की 

**

ग़मों का आपने रुख़ इस तरफ सनम कर के

अजीब रस्म निभाई है ग़मगुसारी की 

**

सहल नहीं है हुक़ूमत वतन पे या दिल पर

 रही  सदा रहे-पुरख़ार ताज-दारी की

**

'तुरंत' चाहते हैं सब ख़ुशी मिले पैहम

तमन्ना कौन रखे ग़म से हमकिनारी की 

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 21, 2020 at 7:34am

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, आप की सराहना के लिए सादर आभार 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 21, 2020 at 6:55am

आ. भाई गिरधारी सिंह जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 19, 2020 at 2:49pm

आदरणीय  TEJ VEER SINGH जी ,  

आपने रचना को सराहा। आपके स्नेह के लिए अंतस्थल से आभारी हूँ। सादर नमन।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 19, 2020 at 10:51am

हार्दिक बधाई आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत "तुरंत" जी। बेहतरीन गज़ल।

रक़ीब से जो मिले आप बे-हिज़ाब मिले

हमीं से सिर्फ़ लगातार पर्दे-दारी की

Comment by TEJ VEER SINGH on April 19, 2020 at 10:17am

हार्दिक बधाई आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत "तुरंत" जी। बेहतरीन गज़ल।

रक़ीब से जो मिले आप बे-हिज़ाब मिले

हमीं से सिर्फ़ लगातार पर्दे-दारी की

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