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गज़ल -15 (हस्ती ही मिट गई है तेरे इस ग़ुलाम की )

221-2121-1221-212

धज्जी उड़ी हुई है सभी इन्तज़ाम की
क़ानून की सिफ़त है बची सिर्फ नाम की//१

तुम थे हवा हवाई बचा के नज़र गए
मेरी तरफ़ से कब थी मनाही सलाम की।//२

दिल में जगा के टीस चले मुस्कुरा के तुम
अब दिल में धक लगी है तुम्हारे पयाम की//३

बौरा के जब बसन्ती हवा झूमती चले
कोयल सुनाए कूक तुम्हारे कलाम की//४

अब ज्ञान बाँटने का है ठेका उन्हें मिला
जो खा रहे हैं मुफ़्त में बिल्कुल हराम की/५

इक शाम जो थी गुज़री तुम्हारे दयार में
हर शाम याद आती है उस प्यारी शाम की//६

तेरा करम हुआ जो मुहब्बत की बज़्म में
हस्ती ही मिट गई है तेरे इस ग़ुलाम की।//७

-- क़मर जौनपुरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Samar kabeer on December 8, 2018 at 10:45am

मतले का ऊला मिसरा

दूसरे शैर का ऊला मिसरा

तीसरे शैर का सानी मिसरा

5वें का ऊला,छटे का सानी मिसरा ।

Comment by Dayaram Methani on December 7, 2018 at 11:15pm

आदरणीय कमर जौनपुरी जी बहुत अच्छी गज़ल हुई है। ये शेर तो लाजवाब है ---

अब ज्ञान बाँटने का है ठेका उन्हें मिला
जो खा रहे हैं मुफ़्त में बिल्कुल हराम की

 

सुंदर सृजन हेतु बधाई स्वीकार करें।

Comment by क़मर जौनपुरी on December 7, 2018 at 9:43pm

बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब और जनाब राज़ साहब हौसला आफ़ज़ाई के लिए।

उस्तादे मोहतरम थोड़ा इशारा भी कर देते की शिल्प कहाँ कमज़ोर है तो आइंदा ख़्याल रखना आसान होता। 

Comment by Samar kabeer on December 7, 2018 at 9:01pm

जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

शिल्प पर थोड़ा ध्यान देने की आवश्यकता है ।

Comment by राज़ नवादवी on December 7, 2018 at 7:45pm

अदार्नीय क़मर जौनपुरी साहब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें. सादर 

Comment by क़मर जौनपुरी on December 7, 2018 at 2:32pm

बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम तेजवीर सिंह जी हौसला आफ़ज़ाई के लिये।

Comment by TEJ VEER SINGH on December 7, 2018 at 10:58am

हार्दिक बधाई आदरणीय क़मर जौनपुरी जी।बेहतरीन गज़ल।

अब ज्ञान बाँटने का है ठेका उन्हें मिला
जो खा रहे हैं मुफ़्त में बिल्कुल हराम की/५

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