For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA's Blog – June 2012 Archive (13)

तेरा मेरा साथ (गीत)

तू बादल है मैं मस्त पवन 

उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन 

गिरने न दूंगा धरा मध्य 

बाहों में ले उड़ जाऊँगा 

तू बादल है मैं मस्त पवन 

उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन 

.

मन के सूने आँगन में 

मस्त घटा बन छायी हो 

रीता था जीवन मेरा 

बहार बन के आयी हो 

जम के बरसो थमना नहीं 

प्यासा न रह जाए ये…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 26, 2012 at 10:14pm — 1 Comment

बदलते रिश्ते

नीम में लगती दीमक
रिश्तों में मिठास नहीं
डूब गयी आशा किरण
एक दूजे पे विश्वास नहीं
रिश्तों का प्रबल क्षरण
जुड़ने के आसार नहीं
घर घर छिड़ा अब रण
मीठा स्वप्न संसार नहीं
चन्दन लिपटत न भुजंग
शीतलता का वास नहीं
माता करती भ्रूण भंग
नारी के संस्कार नहीं
भूल गए करना सत्संग
जीवन से अब प्यार नहीं

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 20, 2012 at 5:30pm — 14 Comments

क्यों न नेता बन जाऊँ (हास्य-कविता)

जुम्मन अब्बू से बोला

दो पैसा बदलूँ चोला

निठल्लू जवान खाते गोला

सुधरो जल्दी तुमको बोला

पैसा न एक मेरे पास

कमाओ खुद छोडो आस

धंदा कोई न आता रास

बाजार करता न विश्वास

जेब कटी की सारी कमाई

पुलिस ले उडी भाई

युक्ती सुन्दर तुम्हे बताता

बन जा नेता का जमाता

अच्छी है ये तुम्हरी सीख

मांगनी पड़े अब न भीख

छुट भैया में बड़ा लोचा

करूँ धंधा कई बार सोचा

पनवाडी ने करा खाता बंद

सब बोले धंदा है मंद

माल मुफ्त अब…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 20, 2012 at 1:30pm — 8 Comments

जीवन पथ

ओ नन्ही परी मासूम कली  आ गोद  उठा लूं 
जीवन है रेत सा तो   क्या घरोंदे तो बना लूं 
फैला समुन्दर दूर तलक दूर तलक आकाश 
छाया अँधेरा घना बहुत जाने कब हो प्रकाश
बीत न जाये ये सुन्दर लम्हे सपने तो सजा लूं 
ओ नन्ही परी मासूम कली  आ…
Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 17, 2012 at 4:54pm — 12 Comments

हमारे प्यारे रहनुमा - बाबा जी

 गांधी टोपी  पहन  के भागे कुरता पैजामा सिलवाने  बाबा जी 

कितना प्यारा देश का  मौसम जनता को उल्लू बनाने  बाबा जी 

कर जोर  मांगते  भीख वोटन  की  पाकर जीत तन  जाते  बाबा जी 

चोर चोर मौसेरे भाई  बैठ  संग देश की लाज लुटाते   बाबा  जी 

मुन्नी संग कमर मटकाते जेल में राखी बंधवाते बाबा जी 

सर्वस्व…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 16, 2012 at 1:37pm — 2 Comments

बाल श्रम (लघु कथा)

कितने ही प्रतिष्ठित समाजसेवी संगठनों में उच्च पद-धारिका तथा सुविख्यात समाज सेविका निवेदिता आज भी बाल श्रम पर कई जगह ज़ोरदार भाषण देकर घर लौटीं. कई-कई कार्यक्रमों में भाग लेने के उपरान्त वह काफी थक चुकी थी. पर्स और फाइल को बेतरतीब मेज पर फेंकते हुए निढाल सोफे पर पसर गई.  झबरे बालों वाला प्यारा सा पप्पी तपाक से गोद में कूद आता है.

"रमिया ! पहले एक ग्लास पानी ला ... फिर एक गर्म गर्म चाय.........." 

दस-बारह बरस की रमिया भागती हुई पानी लिये सामने चुपचाप खड़ी हो जाती है.

"ये…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 12:00pm — 20 Comments

छा गए नभ पे बादल (गीत)

छा गए नभ पे बादल

धरा पे हलचल हो गयी

बह चली शीतल पवन

आशाएं तरंगित हो गयी

बरसेगा धरती पे जल

किसान चलाएगा हल

डालेगा बीज खेतों में

स्वर्णिम होगा घर घर

बरखा बूँदें गिरने से

धरा तो गीली हो गयी

छा गए नभ पे बादल

धरा पे हलचल हो गयी

बह चला पानी धरती पर

अमूल्य है ये निर्मल जल

हो जाए कहीं बेकार नहीं

बना के मेड़ों पर बंद

जल निकास नाली हो गयी

छा गए नभ पे बादल

धरा पे हलचल हो…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 13, 2012 at 3:00pm — 11 Comments

मासूम कली (गीत)

पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ  

जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ

मासूम सी कली तू बगिया में खिली है 

थे कांटे वहाँ भी जिस घर में पली है 

चुन लूँ तेरे कांटे जीवन संवार लूँ

पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ

जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ



बचपन में तेरे माँ बाप यों सो गए 

खा गया था काल तुम थे रो…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 13, 2012 at 1:22pm — 8 Comments

था कभी जो गाँव अपना शहर पुराना लगता है ( गीत )

बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है

था कभी जो गाँव अपना शहर पुराना लगता है



मेड पर गिरते पड़ते छुप जाते थे खेतों में

नदी किनारे बनाते घरोंदे मिटाते थे रेतों में

बरसते पानी में छप छपाना अच्छा लगता है

बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है



कूकती कोयल अमरिया आसमा की अरुणाई

तप्त दुपहरिया पेड़ तले सालन रोटी खाई

माँ के हाथों घूंघट ओट मुस्कराना अच्छा लगता है

बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है



वो रहट की आवाजें वो गन्ने…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 12, 2012 at 5:00pm — 20 Comments

बाबा जी ओये बाबा जी गाओ सा रे गा मा जी

बाबा जी ओए बाबा जी गाओ सा रे गा मा जी ओए

पाकिस्तान बना समुन्दर चीन चलाये चप्पू जी

रामदेव का स्वदेशी अभियान बना रहा भारत महान

काला धन और भ्रष्टाचार देश की परम सुखी संतान

अन्ना को देश गांधी बोले हुंकार की उसके सिंहासन डोले

थे कभी अलग अलग दोनों अब अन्ना संग राम देव बोले

बाबा जी ओए बाबा जी गाओ सा रे गा मा जी



जनता में विश्वास जगा है जान गए किस किस ने ठगा है

राम देव को मिल गया ज्ञान क्या दगा है कौन सगा है

सोयी जनता चेत रही है बेईमानों को देख रही है…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 11, 2012 at 11:30am — 16 Comments

पानी



बैठा प्रभु मेरे समक्ष तिलक लगे निज आस

चन्दन मैं कैसे घिसूँ नहीं जो पानी पास

सात दीप और सात समुन्दर

सुन्दर कृति जल थल नभ पर

सात सुरों से संगीत बजता

पंचम पे पा सप्तम नी सजता

पंचम से गीत जब सजता

सप्तम बिना कंठ नहीं रुचता

पंचम सप्तम जब मिल जाते

गीत मनोहर सुन्दर भाते

जीवन का सुन्दर आधार

पंचम सप्तम का युगल संसार

तत्व समझते मुनिवर विज्ञानी

श्रष्टि जीवन शून्य बिन पानी

जल बिन जीवन मीन बिन पानी

पानी जीवन पर्याय बना है…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 11, 2012 at 10:00am — 6 Comments

दोषी कौन

ऋषि मुनियों की ये धरती

बहती ज्ञान की गंगा

योगी सिद्ध जन पूजे जाते

था मन निर्मल तन चंगा

कोई गाये लहराए कोई पूछे

बाबा रे बाबा तेरा रंग कैसा

दिव्य मुस्कान ले बाबा बोले

जिसमें मिला दो उस जैसा

काल बदला विचार बदला

आदमी का हाल बदला

अंधविश्वास आधुनिकीकरण की दौड़

बाबाओं ने भी चोला बदला

बिकता पानी बिकता खून

बिकती भूख गिरते भ्रूण

अस्मत बिकती कटते वन

सफ़ेद चोला काला मन

बिक रही जब हर चीज

बाबा फिर…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 7, 2012 at 9:30pm — 12 Comments

बेटी न होती

जीवन और मृत्यु
आत्मा परमात्मा
सत्य और असत्य
शाश्वत मूल्यों का सत्य
धूप और छाँव
साथ नहीं होती
गमछा संग धोती
बिना सीप मोती
बगैर दीप ज्योति
स्त्री स्त्री देख रोती
पोता हो या पोती
कैसे मिलता जीवन का
अनुपम सुन्दर उपहार
किसी घर में बेटी न होती

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 1, 2012 at 4:30pm — 22 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service