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Sushil Sarna's Blog (803)

दोहा मुक्तक .....

दोहा मुक्तक 

मन को जब मन में मिली , मन चाही पहचान ।
मन  में   जागे   प्यार   के, अनजाने    तूफान ।
मन  की  मोहक  कल्पना, मन के  सुन्दर तीर -
मन ही मन मुस्का रहे, मन  के  सब  अरमान ।
                      * * *
पागल  इच्छा  सो   गई,  स्वप्न  हुए  साकार ।
चातक  नैनों  को  मिला, तृष्णा  का  उपहार ।
शापित अभिलाषा हुई, मन को मिला न मीत -
क्षीण  बिम्ब  सब हो  गए, धधक  पड़े शृंगार ।

सुशील सरना / 22-4-23

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on April 22, 2023 at 2:54pm — 2 Comments

दोहा मुक्तक .....

दोहा मुक्तक 

नाम बदलने से कहाँ , खुलें भाग्य के द्वार ।

बिना  कर्म  संसार  में, कब  होता  उद्धार ।

जब तक चलती जिन्दगी, चले जीव संग्राम -

जीवन के हर मोड़ का, हार  जीत  शृंगार ।

                         ***

काहे  अपने  रूप  पर, करता  जीव गुमान ।

कहते   हैं   रहती  नहीं, उम्र  ढले  पहचान ।

बुझ कर भी बुझती नहीं, अरमानों की आँच -

मुट्ठी   भर    की   जिंदगी, तेरी  है   इंसान ।

सुशील सरना /

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on April 5, 2023 at 1:01pm — 2 Comments

ममता ......(लघुकथा )

ममता ....

"सुनिए,  मैं ये कह रही थी कि 5 दिन के बाद अपनी पोती नीलू का जन्म दिन है । नीलू पूरे चार साल की हो जाएगी" पार्वती ने लेटे-लेटे अपने  पति राघव से कहा।

"हाँ वो तो है ।" राघव ने जम्हाई लेते हुए कहा ।

"मैं ये सोच रही थी क्यों न हम  इस मौके पर हम  अपनी तरफ से ग्यारह हजार रुपये का चेक अपने आशीर्वाद के रूप में भेज दें क्योंकि शारीरिक व्याधियों की हम दिल्ली तो जा नहीं सकते ।" पार्वती ने कहा ।

"तेरा विचार सही है । मैं कल ही  बैंक में चेक डाल दूँगा ।…

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Added by Sushil Sarna on February 28, 2023 at 9:46pm — 4 Comments

मनमोहन छंद

मनमोहन छंद (प्रथम प्रयास )
8,6-पदान्त 111

कान्हा जी से, लगी लगन ।
पागल मन ये , हुआ मगन ।
मन में जागी, प्रीत  अगन ।
भूल गया मन , धरा गगन ।

***

मनमोहन   तू, बड़ा  चपल ।
तुझे   निहारें ,  नैन   सजल ।
हरदम  लगता , रूप  नवल ।
छलकें नैना , छल छल छल ।

सुशील सरना /

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on February 11, 2023 at 3:22pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक. . . .

साथ चलेंगी नेकियाँ, छूटेगा जब हाथ ।

बन्दे तेरे कर्म बस , होंगे   तेरे  साथ ।।

मिथ्या इस  संसार में,  अर्थहीन सम्बंध।

देह घरोंदा जीव का, साँसों का अनुबंध ।।

रह जाएगी जगत में, कर्मों की बस गंध ।

इस जग में है जिंदगी, दो पल का अनुबंध ।।

आभासी संसार के,  आभासी संबंध ।

मिट जाता जब सब यहाँ, रहती कर्म सुगंध ।।

जब तक साँसें देह में, चलें देह सम्बंध ।

शेष रहे संसार में, जीव कर्म  की …

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Added by Sushil Sarna on February 3, 2023 at 2:00pm — 4 Comments

दोहा मुक्तक .....

दोहा मुक्तक. . . .

दर्द   भरी   हैं   लोरियाँ, भूखे    बीते    रैन।

दृगजल  से  रहते  भरे, निर्धन  के  दो  नैन ।

हुआ कटोरा भीख का, सिक्कों का मुहताज -

दूर तलक मिलता नहीं,अब निर्धन को  चैन ।

                     *****

आँसू  शोभित  गाल  का, कौन यहाँ हमदर्द ।

सूखे  होठों  पर  जमी , निर्धनता  की   गर्द ।

पैर पेट  से  मिल  गए, थर - थर  काँपे  देह -

जीण-क्षीण सा आवरण, लगे पवन भी सर्द ।

सुशील सरना…

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Added by Sushil Sarna on January 30, 2023 at 3:37pm — 2 Comments

दोहा ग़ज़ल -चाय

दोहा ग़ज़ल- चाय

प्याली से हो चाय की ,जाड़े  का  सत्कार ।

फिर चुस्की से नेह का, बढ़े  प्रणय  संसार ।

नैन मिले  जब नैन से, स्वरित  हुआ  संदेश,

किया अधर अभिसार ने,जाड़े का  शृंगार  ।

रैन अलावों  में हुए , क्षीण  सभी  अनुबंध  ,

अन्धकार  की   कैद  में, हार  गए   इंकार ।

बढ़ी शीत होने लगा , मन में मिलन  प्रभात,

दम  तोड़ा  इंकार  ने, जीत  गए   स्वीकार ।

मौन चरम मुखरित हुए, चली  प्रेम की नाव ,

वाह्य  अगन …

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Added by Sushil Sarna on January 4, 2023 at 3:45pm — No Comments

भिखारी छंद

भिखारी छंद - 24 मात्रिक - 12 पर यति

पदांत-गा ला

जब -जब सर्दी आती ,कब वृद्धों को भाती ।

गिरे  आँख  से पानी ,खाँसी  बहुत  सताती ।

रोटी  गिर -गिर  जाती ,चाल संभल न पाती ।

लड़ते-लड़ते  आख़िर ,काया चुप  हो  जाती ।

                         * * *

     ठहर जरा दीवानी , तेरी  उम्र  सयानी ।

     आशिक़ नज़रें घूरें, तेरी मस्त  जवानी ।

     अक्सर मीठे धोखे ,इन  राहों  पर होते ।

      पड़ न जाए महंगी , थोड़ी सी नादानी ।

            सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on December 25, 2022 at 1:30pm — 8 Comments

दोहा त्रयी. . . मैं क्या जानूं

दोहा त्रयी :मैं क्या जानूं 

मैं क्या जानूं आज का, कल क्या होगा रूप ।
सुख की होगी छाँव या , दुख की  होगी  धूप ।।

मैं क्या जानूं भोर का, होगा  क्या  अंजाम।
दिन बीतेगा किस तरह , कैसी होगी शाम ।।

मैं  क्या  जानूं  जिन्दगी, क्या  खेलेगी  खेल ।
उड़ जाए कब तोड़ कर , पंछी तन की जेल ।।


सुशील सरना / 17-11-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on November 17, 2022 at 12:00pm — 6 Comments

बालदिवस पर चन्द दोहे ......

बालदिवस पर चन्द दोहे :. . . .

बाल दिवस का बचपना, क्या जाने अब अर्थ ।

अर्थ चक्र में पीसते, बचपन चन्द समर्थ ।।

बाल दिवस से बेखबर, भोलेपन से दूर ।

बना रहे कुछ भेड़िये , बच्चों को मजदूर ।।

भाषण में शिक्षा मिले, भाषण ही दे प्यार ।

बालदिवस पर बाँटते, नेता प्यार -दुलार ।।

फुटपाथों पर देखिए, बच्चों का संसार ।

दो रोटी की चाह में , झोली रहे पसार ।।

गाली की लोरी मिले, लातों के उपहार ।

इनका बचपन खा गया,  अर्थ लिप्त संसार ।।

बाल दिवस पर दीजिए,…

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Added by Sushil Sarna on November 14, 2022 at 3:30pm — 2 Comments

भिखारी छंद

भिखारी छंद -

 24 मात्रिक - 12 पर यति - पदांत-गा ला

साजन    के   दीवाने , दो   नैना   मस्ताने ।

कभी  लगें  ये  अपने ,  कभी  लगें  बेगाने ।।

पागल दिल को भाते, उसके सपन  सुहाने ।

खामोशी  की   बातें, खामोशी   ही   जाने ।।

                   =×=×=×=

रैन काल के सपने , भोर  लगें  अनजाने ।

अवगुंठन में बनते  , प्यार भरे  अफसाने ।।

बिन बोले ही होतीं  , जाने क्या-क्या बातें ।

मन से कभी न जातीं  , आलिंगन की रातें ।।

सुशील सरना…

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Added by Sushil Sarna on November 8, 2022 at 4:54pm — 4 Comments

दुर्घटना. . . ( लघुकथा )

दुर्घटना ....(लघुकथा)

"निकल लो उस्ताद ।  बहुत भयंकर दुर्घटना हुई है । लगता है वो शायद मर गया है ।" कल्लू हेल्पर ने ड्राइवर रघु से कहा ।

रघु ने व्यू  मिरर से पीछे देखा तो दुर्घटना स्थल पर भीड़ दिखी । रघु ने ट्रक भगाने में भलाई समझी । रघु वहाँ से चला तो घर जा कर रुका।

"कल्लू ये घर पर भीड़ कैसी है ।" रघु ट्रक रोकते हुए बोला ।

भीड़ को चीरते हुए रघु जैसे ही अन्दर पहुंचा, तो देख कर सन्न रह गया । उसका 10 साल का इकलौता   बेटा रक्तरंजित  बीच आँगन में तड़प रहा…

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Added by Sushil Sarna on November 6, 2022 at 12:52pm — 2 Comments

दोहा त्रयी- सागर

दोहा त्रयी : सागर

सागर से बादल चला, लेकर खारा नीर ।
धरती को लौटा रहा, मृदु बूँदों का क्षीर ।।

जाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर ।
पीते -पीते हो गया , खारा उसका नीर ।।

लहरों से गीले सदा, रहते सागर तीर ।
बन कर कितने ही मिटे, यहाँ स्वप्न प्राचीर ।।

सुशील सरना / 31-10-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on October 31, 2022 at 12:51pm — 10 Comments

गीतिका

गीतिका
आधार छंद - चौपई (जयकरी छंद )-15 मात्रिक -पदात-गाल

साँसें   जीवन  का  शृंगार ।
बिना साँस सजती दीवार ।

कब जीवित का होता मान ,
चित्रों   को   पूजे   संसार ।

मिलता अपनों  से  आघात ,
इनका  प्यार   लगे   बेकार  ।

पल-पल  रिश्ते  बदलें  रूप ,
मतभेदों   से  पड़ी दरार ।

बड़ा अजब जग का दस्तूर ,
भरे   प्यार   में  ये   अंगार ।

सुशील सरना / 17-10-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on October 17, 2022 at 5:40pm — 10 Comments

दशहरा पर्व पर कुछ दोहे. . . .

दशहरा पर्व पर कुछ दोहे. . . .

सदियों से लंकेश का, जलता दम्भ  प्रतीक ।

मिटी नहीं पर आज तक, बैर भाव की लीक।।

सीता ढूँढे राम को, गली-गली में  आज ।

लूट रहे हर मोड़ पर, देखो रावण लाज ।।

 मन के रावण के लिए, बन जाओ तुम राम।

अंतस को पावन करो,हृदय बने श्री धाम।।

कहते हैं रावण बड़ा, जग में था विद्वान ।

पर नारी के मोह ने, छीनी उसकी जान ।।

माँ सीता का कर हरण, इठलाया  लंकेश ।

मिटा दिया फिर राम ने, लंकापति…

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Added by Sushil Sarna on October 5, 2022 at 1:00pm — 6 Comments

असली - नकली. . . .

असली -नकली . . . .

सोच समझ कर पुष्प पर, अलि होना आसक्त ।

नकली इस मकरंद पर  , प्रेम न करना व्यक्त ।।

गुलदानों में आजकल, सजते नकली फूल ।

सच्चाई के तोड़ते, नकली फूल उसूल ।।

गुलशन सूने से लगें, भौंरे लगें उदास ।

नकली फूलों से भला, कब बुझती है प्यास ।।

मरीचिका सी जिन्दगी, यहाँ प्यास ही प्यास ।

पतझड़ के परिधान में, मुस्काता मधुमास ।।

अब कागज के फूल से, गुलशन है गुलज़ार ।

नकली फूलों का नहीं, मुरझाता संसार…

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Added by Sushil Sarna on October 2, 2022 at 10:01pm — 6 Comments

श्राद्ध पक्ष के कुछ दोहे. . . .

श्राद्ध पक्ष के कुछ दोहे. . . . .

घर- घर पूजे श्राद्ध में, पितरों को संतान ।

श्रद्धा पूरित भाव से, उनको दे सम्मान ।।

श्राद्ध सनातन रीत है, श्राद्ध पितर सम्मान ।

सच्चे मन से मानिए, श्राद्ध शास्त्र विधान ।।

श्राद्ध पक्ष में पूजती, पुरखों को सन्तान ।

श्रद्धा से तर्पण करें, उनका कर के ध्यान ।।

श्राद्ध पक्ष विचरण करें , पितर धरा के पास।

आकर दें आशीष वो , ऐसा है विश्वास ।।

जीते जी माँ बाप का, सदा करो सम्मान ।

जा…

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Added by Sushil Sarna on September 19, 2022 at 5:20pm — 6 Comments

पाँच दोहे ......

पाँच  दोहे. . .

कल में कल की कल्पना, कल में कल की प्यास ।

कल में साँसें ले रहा, जीवन का विश्वास ।।

तिमिर लोक में प्रेम का, अद्भुत है इतिहास ।

सुर्ख साँझ के साथ ही, बढ़े मिलन की प्यास ।।

सब जानें ये जिन्दगी , केवल है आभास ।

फिर भी क्यों आभास का, जीव करे विश्वास ।।

हर लकीर पर है लिखा, जीवन का संघर्ष ।

तकलीफों के जलजले, डूबा जिसमें हर्ष ।।

हर तम का संसार में, होता एक प्रभात ।

सुख की छोटी सी किरण…

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Added by Sushil Sarna on September 17, 2022 at 8:30pm — 4 Comments

हिन्दी दिवस पर कुछ दोहे. . . .

हिन्दी दिवस पर कुछ दोहे :

हिन्दी  अपने देश में, माँगे अपना मान ।

अंग्रेजी के ग्रहण से, धूमिल इसकी शान ।।

अंग्रेजी को देश में, इतना क्यों सम्मान ।

हिन्दी का अपमान तो, भारत का अपमान ।।

हिन्दी हिन्दुस्तान के, माथे का सरताज ।

हिन्दी तो है हिन्द के , जन-जन की आवाज ।।

हिन्दी से अच्छा नहीं, करना यूँ परहेज ।

अंग्रेजी के तेज को, हिन्द करे निस्तेज ।।

कण -कण में अब हिन्द के , हिन्दी गूँजे आज ।

नहीं चलेगा…

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Added by Sushil Sarna on September 14, 2022 at 8:37pm — 6 Comments

दोहा मुक्तक -मुफलिसी ......

दोहा मुक्तक-मुफलिसी ..........

चौखट  पर   ईमान  की,  झूठे   पहरेदार ।
भूख, प्यास, आहें भरे, रुदन  करे  शृंगार ।
नीर बहाए मुफलिसी,  जग न समझा पीर -
फुटपाथों पर भूख का, सजा हुआ बाजार ।
                      * * * * *
मौसम की हैं झिड़कियाँ, तानों का  उपहार ।
मुफलिस की हर भोर का , क्षुधा करे शृंगार ।
क्या आँसू क्या कहकहे, सब के सब है मौन -
दो  रोटी  के  वास्ते, तन  बिकता  सौ  बार ।

सुशील सरना / 4-9-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on September 4, 2022 at 2:51pm — 4 Comments

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