For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब खुशी हो पास आये ग़म पड़े दिल तोड़ जाये |

२१२२ २१२२ २१२२ २१२२ - रमल मुसम्मन सालिम
ज़िंदगी     कैसे चले   जब साथ कोई छोड़ जाये | 
जब खुशी हो पास आये ग़म पड़े दिल तोड़ जाये | 
दूर का जब हो  सफर तब  आसरा  सब  ढूढ़ते हैं ,
दिल लगा अपना बना फिर आश  कोई तोड़  जाये |
दिन कटे   आराम    से  कोई    जहाँ में  चाहता है ,
घर   कहीं  कैसे चले  जब चेहरा ही    मोड़ जाये |
दो जनो    के  मेल  से चलती रहीं है  जिंदगी यों ,
सिलसिला शादी बना  जो इस जहाँ को जोड़ जाये  |
जब    हरा हो    झाड़ वर्मा फिर अनेकों फूल आते   , 
आश   कैसे फिर रहे  जड़ से कहीं  ही  तोड़ जाये |
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 538

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on May 28, 2015 at 11:37am

आदरणीय   ,    उत्साह वर्धन के लिये आपक आभार ।

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 27, 2015 at 9:12pm

बहर में हुआ प्रयास आशान्वित करता है, आदरणीय श्याम नारायण जी.. शुभेच्छाएँ

Comment by Shyam Narain Verma on May 22, 2015 at 11:08am

आदरणीय समर कबीर जी , सही राय देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार |
घर बार भी कैसे चले जब मुंह जग मोड़ जाये |
कैसा रहेगा |
सादर

Comment by Shyam Narain Verma on May 22, 2015 at 10:50am

आदरणीय समर कबीर जी , आदरणीया डा. प्राची सिंह जी , आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , आदरणीय केवल प्रसाद जी , आदरणीय सुनील जी , आदरणीय मदन मोहन सक्सेना जी रचना भाव पसंद करने के लिए आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद |
सादर

Comment by Madan Mohan saxena on May 21, 2015 at 3:27pm

दो जनो के मेल से चलती रहीं है जिंदगी यों ,
सिलसिला शादी बना जो इस जहाँ को जोड़ जाये |

अच्छी ग़ज़ल

Comment by shree suneel on May 21, 2015 at 2:33am
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, अच्छी ग़ज़ल हुई. बधाई आपको. अन्य टिप्पणियां महत्वपूर्ण हैं. सादर
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 20, 2015 at 10:45pm

आ0 श्याम नारायण  भाई जी,  गज़ल  विधा पर आपकी पहली रचना  पढ रहा हूं. बहुत सुंदर. दाद कुबूल करें. सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 20, 2015 at 8:43pm

आदरणीय श्याम नरेन् वर्मा जी बह्र में ग़ज़ल का सुन्दर प्रयास हुआ है दाद कुबूल फरमाएं. आदरणीय समर जी से सहमती व्यक्त करते हुए मिसरों से बह्र के दबाव को थोड़ा कम करने का निवेदन है 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 20, 2015 at 10:48am
ग़ज़ल कहने का सुन्दर प्रयास हुआ है आ० श्याम नारायण वर्मा जी
शुभकामनाएं स्वीकार करें
Comment by Samar kabeer on May 20, 2015 at 10:36am
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी ,आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई ,दाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

इस मिसरे की तरफ़ आपका
ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा,इस मिसरे में लय टूट रही है :-

"घर कहीं कैसे चले जब चेहरा ही मोड़ जाये"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service