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Seema agrawal's Blog (22)

नवगीत (सीमा अग्रवाल)

आवश्यकता नहीं ‘खबर’ अब

है मनोरंजन

 

ओढ़ चुनरिया गाँव गाँव

कूल्हे  मटकाती

चिंता चिंतन  झोंक  भाड़ में

मन  बहलाती

 

शर्त मगर

नाचेगी बैरन

बस तब तक ही

पैरों पर जब तक सिक्कों की 

है खन खन खन

 

कुशल  अदाकारों  के 

जैसी रंग  बदलती

मौसम  जैसा हो वैसे  ही

रोती  हँसती

 

धता बताती घोषित कर

कठहुज्जत जिसको

निमिष मात्रा मे ही

करती उसका…

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Added by seema agrawal on May 1, 2015 at 8:00pm — 9 Comments

नवगीत

कोहरे के कागज़ पर

किरणों के गीत लिखें

आओ ना मीत लिखें

सहमी सहमी कलियाँ

सहमी सहमी शाखें

सहमें पत्तों की हैं

सहमी सहमी आँखें

सिहराते झोंकों के

मुरझाए

मौसम पर

फूलों की रीत लिखें

आओ ना मीत लिखें 

रातों के ढर्रों में

नीयत है चोरों की

खीसें में दौलत है

सांझों की भोरों की

छलिया अँधियारो से

घबराए,

नीड़ों पर

जुगनू की जीत लिखें

आओ ना मीत…

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Added by seema agrawal on December 13, 2014 at 9:30pm — 14 Comments

खुशबू ............

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 29 में प्रस्तुत गीत का सस्वर गायन ..........सीमा …

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Added by seema agrawal on April 4, 2013 at 5:00pm — 8 Comments

मनहरण घनाक्षरी /होली

होली के शुभ कामनाओं और बधाई सहित 

रंग की उमंग में है या है भंग की....... तरंग,

मौसम की चाल में है लहरें...........गज़ब की…

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Added by seema agrawal on March 22, 2013 at 7:46pm — 11 Comments

जब उडाये लाल मौसम हो गया///गीत

बसंत के मौसम को समर्पित एक गीत 

अनछुए पल 

मुट्ठियों में घेर कर …

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Added by seema agrawal on February 19, 2013 at 12:30pm — 18 Comments

बहुत पुराना खत हाथों में है लेकिन,खुशबू ताज़ी है अब तक संवादों की

बहुत पुराना खत हाथों में है

लेकिन,

खुशबू  ताज़ी है

अब तक संवादों की 

हल्दी के दागों में

आँचल की सिहरन  

माँ की उंगली के

पोरों का वो कंपन 

नाम लिखा है मेरा,

जब जब जहाँ वहाँ 

फ़ैल गयी है

स्याही महकी यादों की

चन्दन चन्दन बातें

घर चौबारे की

मेंहदी की साज़िश

से छूटे द्वारे की

अक्षर अक्षर गमक रहा

मौसम मौसम

शब्द शब्द  हैं गंध

नेह…

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Added by seema agrawal on January 27, 2013 at 12:00pm — 3 Comments

नर्म से अहसास बन लें

हर तरफ हैं रंग कितने 

आओ चुन लें 

 

भाव के मोती बिछे हैं…

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Added by seema agrawal on January 9, 2013 at 7:32am — 12 Comments

आओ फिर से दिए जलाएं //

माननीय अटलबिहारी जी की एक रचना की प्रसिद्ध पंक्ति "आओ फिर से दिए जलाएं "से प्रेरित 

टूटे मन के खँडहर तन में 

सूने अंतर के आँगन में …

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Added by seema agrawal on December 31, 2012 at 12:30pm — 15 Comments

आज मैं चुप नहीं रहूंगी /कहानी

वो हडबडा कर उठ बैठी , तेज़ गति से चलतीं साँसें ,पसीने से भीगा माथा,थर-थर कांपता शरीर उसकी मनोदशा बयान कर रहे थे I वो बार-बार बचैनी से अपना हाथ देख रही थी I अकबका कर तेज़ी से उठी और बाथरूम की तरफ भागी I कई बार साबुन से हाथ धोया, उसकी धड़कने अभी भी तीव्र गति से चल रहीं थीं, शरीर अभी भी काँप रहा था I बेडरूम में वापस न जाकर ड्राइंग रूम में बिना…

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Added by seema agrawal on December 22, 2012 at 3:00pm — 13 Comments

विनम्र श्रद्धांजली/ पंडित रवि शंकर

पद्म विभूषण और भारत रत्न से सम्मानित पंडित रविशंकर का बुधवार सुबह अमेरिका के सेन डियागो में निधन हो गया।

विनम्र श्रद्धांजली संगीत जगत के उस चमकते सूर्य को.........

बिखरे सारे राग हैं ,सूना आज सितार

सन्नाटों में गीत है ,सूनी है झंकार

सूनी है झंकार,आँख शब्दों की है नम

खो कर 'रवि' आलोक ,स्तब्ध बैठी है सरगम

कौन किसे दे धीर ,विकल मानस हैं सारे

रोता है संगीत ,तार हैं बिखरे सारे

Added by seema agrawal on December 12, 2012 at 12:30pm — 10 Comments

समय// गीत

संगीत की विद्यार्थी हूँ ...संगीत से जुड़े कई शब्द मुझे जीवन के साथ चलते दिखते हैं | जो लोग  इन शब्दों के विशेषता से अनभिज्ञ हैं उनके लिए कुछ बताना चाहती हूँ  ..आशा करती हूँ इस सक्षिप्त व्याख्या से गीत समझने में आसानी होगी 

------किसी भी राग में षडज(स ) और  पंचम (प )स्वर अनिवार्य हैं जबकि रे,ग,म ,ध नी को वर्जित कर नए नए रागों की रचना की जाती 

........ वादी-संवादी राग के सबसे महत्त्वपूर्ण स्वर होते हैं 

-----विवादी स्वर…

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Added by seema agrawal on December 10, 2012 at 2:30pm — 9 Comments

सागर में गिर कर हर सरिता// गीत

सागर में गिर कर हर सरिता बस सागर ही हो जाती है 

लहरें बन व्याकुल हो हो फिर तटबंधों से टकराती है 



अस्तित्व स्वयं का तज बोलो 

किसने अब तक पाया है सुख …

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Added by seema agrawal on October 30, 2012 at 2:09pm — 18 Comments

प्रश्नवाची मन हुआ है

प्रश्नवाची 

मन हुआ है, हैं सुलगते अभिकथन 

क्या मुझे अधिकार है ये 

मैं दशानन को जलाऊँ ??



खींच कर 

रेखा अहम् की शक्त वर्तुल से घिरी हूँ 

आइना भी क्या करे जब मैं तिमिर की कोठरी हूँ 

दर्प की आपाद मस्तक स्याह चादर ओढ़ कर 

क्या मुझे अधिकार है

'दम्भी 'दशानन को बताऊँ ??



झूठ, माया-मोह 

ईर्ष्या के असुर नित रास करते 

स्वार्थ की चिंगारियों से प्रिय सभी रिश्ते सुलगते 

पुण्य पापों को बता कर सत्य पर भूरज…

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Added by seema agrawal on October 22, 2012 at 11:31am — 15 Comments

तीन मुक्तक ......//माँ

 

इस रक्त के संचार पे अधिकार तुम्हारा है 

श्वांसो के हरेक तार पे उपकार तुम्हारा  है
आँखों में चमकते हैं मुस्कान के जो मोती 
कुछ और नहीं माँ वो बस प्यार तुम्हारा है …
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Added by seema agrawal on October 5, 2012 at 3:00am — 15 Comments

कुंडलिया छंद

1....

शीतल मीठे नर्म से ,शब्दों को दो पाँव 

सद्भावों की ईंट से ,रचो प्रीत के गाँव 

रचो प्रीत के गाँव, फसल खुशियों की बोना 

नेह सुधा से सिक्त, रहे हर मन का कोना 

कंचन शुचिता धार ,अहम् का तज कर पीतल 

हरो ताप-संताप ,सलिल बन निर्मल शीतल ..

2.........…

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Added by seema agrawal on October 4, 2012 at 2:30am — 4 Comments

शुभ्रांशु जी के हास्य लेखन से प्रेरित हो कर एक हास्य लिखने की कोशिश ...........

जब भी शुभ्रांशु जी के हास्य-व्यंग्य के लेख पढ़ती हूँ ...लगता है कितनी आसानी और सहजता से से वो सब कुछ लिख जाते हैं और हँसा भी देते हैं ......एक दिन अचानक ही लगा दरअसल वो आसानी से लिख नहीं जाते है बल्कि यह लिखना बहुत आसान है l  क्यों न मै भी कुछ  हास्य व्यंग टाइप की चीज़ लिखूँ .

कविता में तो बड़ी पेचीदगियां है ..... एक कविता लिखने में तो…

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Added by seema agrawal on September 26, 2012 at 5:00pm — 15 Comments

ये कहाँ हैं हम ?/गीत

खिलखिलाती सिसकियों का हर तरफ ही शोर है

भीड़ में तन्हाइयों की भीड़ चारों ओर है

ये कहाँ हैं हम ?

क्या यही थे हम ?

छू रहा मानव सफलता के चमकते नव शिखर

प्रकृत नियमों को विकृत करता ये कैसा है सफर

है सभी कुछ पर अधूरी,

हर निशा हर भोर है

ये कहाँ हैं हम ?

क्या यही थे हम ?

कितनी परतों में दबा है आज का ये आदमी

अब कहाँ किरदार सच्चे अनृत की है तह जमी

स्वार्थ आरी नेह बंधन,

कर रहीं कमज़ोर हैं

ये कहाँ हैं हम ?

क्या यही थे…

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Added by seema agrawal on September 19, 2012 at 11:00am — 12 Comments

गीत मे तू मीत मधुरिम नेह के आखर मिला

सौरभ जी से चर्चा के पश्चात जो परिवर्तन किये हैं उन्हें प्रस्तुत कर रही हूँ 

परिचर्चा के बिंदु सुरक्षित रह सके  इस हेतु  पूर्व की पंक्तियों को भी डिलीट नहीं किया है जिससे नयी पंक्तियाँ नीले text में हैं 

 

गीत मे तू मीत मधुरिम नेह के आखर मिला 

प्रीत के मुकुलित सुमन हो भाव मे भास्वर* मिला -----*सूर्य



हो सकल यह विश्व ही जिसके लिए परिवार सम 

नीर मे उसके नयन के स्नेह का सागर मिला …



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Added by seema agrawal on September 12, 2012 at 10:00am — 34 Comments

कोई फिर भगवान हुआ है

यह रचना उन (ढोंगी ) बाबाओं और गुरुओं के नाम जो अमरबेल से हर गली में  हर रोज उग रहे है .....





कोई फिर भगवान हुआ है
हर घर का दरबान हुआ है 

फैला कर झूठे विज्ञापन

गीता…
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Added by seema agrawal on September 6, 2012 at 10:21am — 11 Comments

तीन मुक्तक ......

मिट्टी को रंग के लाल-हरे रंग दे दिये

लिख-लिख किताबें सोंचने के ढंग दे दिए

देनी थीं वुसअतें तो खुले आसमान सी

धर्मो ने दायरे बड़े ही तंग दे दिए



चन्दन गुल या इत्र की खुशबू,जिसको होना है हो जाए 

घूमे जंगल-जंगल ,महके उपवन-उपवन धूम मचाए 

पर ,ख़ुलूस से बढ़ कर कोई गंध नहीं है इस दुनिया में 

जो बिखरे इस दर इठलाकर उस दर की देहरी महकाए



ईमान अब संदेह का पर्याय हो…

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Added by seema agrawal on August 24, 2012 at 11:00am — 11 Comments

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