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बहुत पुराना खत हाथों में है लेकिन,खुशबू ताज़ी है अब तक संवादों की

बहुत पुराना खत हाथों में है

लेकिन,

खुशबू  ताज़ी है

अब तक संवादों की 

हल्दी के दागों में

आँचल की सिहरन  

माँ की उंगली के

पोरों का वो कंपन 

नाम लिखा है मेरा,

जब जब जहाँ वहाँ 

फ़ैल गयी है

स्याही महकी यादों की

चन्दन चन्दन बातें

घर चौबारे की

मेंहदी की साज़िश

से छूटे द्वारे की

अक्षर अक्षर गमक रहा

मौसम मौसम

शब्द शब्द  हैं गंध

नेह अनुवादों की 

सीली गलियों की

मिट्टी का सोंधापन

तन-मन से अब तक

लिपटा वो अपनापन

सुरभि शेष अब तक है

सूखे फूलों में

कुछ भूले कुछ याद

रह गए वादों की 

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Comment

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Comment by Chhaya Shukla on August 31, 2014 at 2:14pm

सीमा जी ,
बेहद प्यारा गीत है आपका 
खूब खूब सारी बधाइयां ! 

Comment by vijay nikore on January 28, 2013 at 1:46pm

अति सुन्दर भाव हैं, सीमा जी।

विजय निकोर

Comment by ram shiromani pathak on January 28, 2013 at 1:44pm

वाह वाह क्या रचना है ,शब्द नहीं है 

हार्दिक बधाई आपको सीमा जी

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