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परिवर्तन वरदान या बोझ

परिवर्तन के नाम पर ,अलग -अलग है सोच 

किसी ने वरदान कहा ,इसे किसी ने बोझ ||

परिवर्तन वरदान है ,या कोई अभिशाप 

एक को बांटे खुशियाँ ,दूजे को संताप ||

विघटित करके देश के ,कई प्रांत बनवाय 

महा नगर विघटित हुए ,इक -इक शहर बसाय||

शहर- शहर विघटित हुए ,और बन गए ग्राम 

ग्रामों में गलियाँ बनी ,परिवर्तन से  धाम||

घर बाँट दीवार कहे ,परिवर्तन की खोज

बूढ़े मात -पिता कहें ,ये छाती पर सोज ||

जो नियम भगवान् रचे ,वो…

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Added by rajesh kumari on July 12, 2012 at 9:00pm — 27 Comments

अश्क हथेली पे

वो ख़्वाब उज़ागर क्यूँ  किये हमने 

सौ दर्द  ज़िगर को क्यूँ दिए हमने||

 जब करनी थी बातें कई हज़ार

वो लब  चुपके से क्यूँ सिये हमने||

ख़्वाब  बुनते रहे वो ही गलीचा 

 तलवे ये जख्मी क्यूँ किये हमने ||

 ता उम्र करते रहे  उन से  वफ़ा

ये जफ़ा के घूँट  क्यूँ पिए हमने ||

 दे के जहान  भर की दुआ उनको

मिटा दिए सुख के क्यूँ ठिये हमने  

 अश्क तो पलकों में ज़ब्त हो…

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Added by rajesh kumari on July 10, 2012 at 12:30pm — 22 Comments

रणभेरी

वो देखो सखी

फिर रक्ताभ हुआ  नील गगन 

बढ़ रही हिय की धड़कन

विदीर्ण हो रहा हैमेरा  मन  

बाँध  दो इन उखड़ी साँसों को ,

अपनी श्यामल अलकों से 

भींच लूँ कुछ भी ना देखूं

 मैं अपनी इन पलकों से  

झील के जल में भी देखो

लाल लहू की है  ललाई

कैसे तैर रही है देखो

म्रत्यु  दूत   की परछाई 

थाम लो मुझको बाहों में

जडवत हो रही हूँ मैं 

दे दो सहारा काँधे का

सुधबुध खो रही हूँ…

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Added by rajesh kumari on July 1, 2012 at 10:37am — 18 Comments

मूसलाधार

आग उगलते सूरज का रथ

दौड़ रहा था

अनवरत, अन्तरिक्ष पर

पीछे जन्म लेते

धूल के गुबार ने ढक

दिए सब वारि के सोते

कुम्भला गए दम घोंटू

गर्द में कोमल पौधों के पर

चिपक गए परिधान बदन से

हाँफते हुए ,पसीनों से लथपथ

उसके अश्वों के स्वेद सितारे

छितरा गए सागर की चुनरी पर

मिल गए खारे सागर की बूंदों से

जबरदस्त उबाल उठा

सागर के अंतर में

प्यासी धरा की आहें

कर बैठी आह्वान

मंथन से मुक्त होकर

उड़ चला वो वाष्पित आँचल…

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Added by rajesh kumari on June 26, 2012 at 2:30pm — 15 Comments

सिलेंडरों की रेल

निर्मल मन मैला बदन , नन्हे नन्हे हाथ 

रोटी का कैसे जतन,समझ ना पाए बात (1) 



तरसे एक -एक कौर को ,भूखे कई हजार 

गोदामों में सड़ रहे, गेहूं के आबार (2) 



शून्य में देखते नयन , पूछ रहे है बात 

प्रजा तंत्र के नाम पर,क्यूँ करते हो घात (3) 



सीना क्यूँ फटता नहीं, भूखे को बिसराय 

हलधर का अपमान कर,धान्य, जल में बहाय (4) 



शासन की सौगात हो, या किस्मत की हार 

निर्धन को तो झेलनी, ये जीवन की मार (5) 



रंक का चूल्हा…

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Added by rajesh kumari on June 23, 2012 at 1:00pm — 26 Comments

कह मुकरियाँ

नयन लाज से झुक- झुक जाएँ

दिल में प्रीत म्रदंग बजाये

मादक मेघ चुराए काजल

क्या सखी साजन ??

ना सखी बादल |



चुपके से दृग द्वार पे आयें

गुदगुदाती बयार साथ में लायें

प्रीत छुपाये दिल में अपने

क्या सखी साजन ??

ना सखी सपने |



चित्त कल्पना में डूबता जाए

मन मीत हाथों पे लकीरे बनाए

सतरंगों से सजाये सवेरा

क्या सखी साजन ??

ना सखी चितेरा |



रुत खामशी से अगन लगाए

जहां…
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Added by rajesh kumari on June 21, 2012 at 12:00pm — 20 Comments

आधुनिकता

कहाँ गई वो मेरे देश की खुशबु

जिसमे सराबोर  रहते थे

इंसानों के देश प्रेम के जज्बे ,

कहाँ गई वो माटी की सुगंध

जिससे जुडी रहती थी जिंदगी  

कहाँ गए वो आँगन 

जिनमे हर रोज जलते थे 

सांझे चूल्हे 

जहां बीच में रंगोली सजाई जाती थी 

जो परिचायक थी 

उस घर की एकता और सम्रद्धि की 

जिसमे खिल खिलाता था बचपन 

लगता है वक़्त की ही 

नजर लग गई…

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Added by rajesh kumari on June 20, 2012 at 11:43am — 18 Comments

बदनामियों की गठरी



//घुप्प अँधेरा, उफनता तूफ़ान, कर्कश हवाओं कि साँय-साँय, पागल चड चडाती दरख्तों की शाखाएं. किसी भी क्षण उसके सर पर आघात करने को उदद्यत, पर उसके कदम अनवरत गति से बढ़ते जा रहे हैं. काले स्याह मेघ कोप से उत्तेजित हो परस्पर टकरा टकरा कर दहाड़ रहे हैं, जिसकी आवाज ने उन दोनों की साँसों की आवाज को निगल लिया है. दामिनी थर्रा रही है गिडगिडा रही है, उसके चेहरे को देखने को व्यग्र शनै -शनै अपना प्रकाश फेंक रही है. पर उसका मुख घूंघट से ढका है, हाँ एक नन्ही सी जान एक कपडे में लिपटी हुई उसकी छाती…

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Added by rajesh kumari on June 5, 2012 at 2:30pm — 14 Comments

मौज कोई सागर के किनारों से मिली

मौज कोई सागर के किनारों से मिली  

 साँसे अपनी दिल के इशारों से मिली  

सोंधी सी महक बारिश का इल्म देती है 

गुलशन की खबर ऐसे बहारों से मिली 

आंधी ने नोच डाले हैं दरख्तों से पत्ते 

जुदाई की भनक आती बयारों से मिली 

चाँद खुश है रोशन करेगा बज्मे- जानाँ   

आस नभ में चमकते सितारों से मिली 

हरेक  लब उसे अकेले में गुनगुनायेंगे   

ऐसी कोई नज्म संगीतकारों से मिली 

पंहुच गई है परदेश में निशा की डोली 

खबर भोर में आते…

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Added by rajesh kumari on June 3, 2012 at 9:03pm — 27 Comments

खुशखबरी (कहानी)

हैलो हैलो !! हैलो  बेटा बोल !  माँ खुशखबरी है आपको पोता हुआ है, इतना कहकर रोहित ने फ़ोन  रख दिया | रेखा के पाँव तो ख़ुशी के मारे जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, उसी समय बहुत सारी मिठाई लाकर पूरी कालोनी में बाँट दी | फिर तैयार होकर हॉस्पिटल पंहुच गई और सारे कर्मचारियों को मिठाई बांटी, आयाओं को सौ- सौ के नोट भी दिए और फिर बहु के पास पोते को देखने पहुंची वहां पर डॉक्टर भी राउंड पर आई हुई थी देखते ही रेखा एक पूरा मिठाई का डिब्बा डॉक्टर की तरफ देते हुए बोली आप भी मेरे पोते के होने की मिठाई खाओ |…

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Added by rajesh kumari on June 1, 2012 at 10:30am — 23 Comments

द्वन्द

जैसे ही मैंने दरवाजा खोला …

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Added by rajesh kumari on May 30, 2012 at 9:30am — 22 Comments

तिश्नगी में

चश्मे  तो हमने राह में पाये हैं बेशुमार

तेरी ही तिश्नगी में  आये हैं बार- बार

  

 प्यार से बिठाया  और खुशियाँ लूट ली 

 धोखे यूँ जिंदगी में खाये हैं कई हजार

  

 सीमाएं मेरे दर्द की   वो नाप के गए 

 अश्क जब काँधे पे बहाये हैं ज़ार-ज़ार

 

 बता गमजदा दिल अब  कैसे ढकें बदन 

 खुशियों के पैरहन कर लाये हैं तार-तार

 

 वादियों में  बुलबुलें अब चहकती नहीं  

  जब दर्द…

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Added by rajesh kumari on May 25, 2012 at 3:00pm — 26 Comments

हाइकु (सिर मुंडाते ही,हास्य )

हाइकु (सिर मुंडाते ही,हास्य  )

(1) 
सिर मुंडाया 
दुकान से निकले 
ओले बरसे 
(२)…
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Added by rajesh kumari on May 21, 2012 at 1:00pm — 27 Comments

जिंदगी रूठ के मुझसे कहीं खोई होगी

जिंदगी रूठ के मुझसे कहीं खोई होगी 

तकिये में मुंह छिपाकर रोई होगी 

जल गई थी जो अरमानों की फसल 

यंकी नहीं कि फिर से बोई होगी 

बढ़ गई होंगी जब दिल की बेताबियाँ 

टूटी मेरी तस्वीर फिर संजोई होगी

मैं जानता हूँ हाल इस वक़्त भी उसका  

शबनम ओढ़ के पलकों पे सोई होगी  

                 ***** 

Added by rajesh kumari on May 19, 2012 at 6:21pm — 25 Comments

चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम

              चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

जहां सुन्दर परियां रहती हों …

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Added by rajesh kumari on May 16, 2012 at 10:30am — 38 Comments

कुछ क्षणिकाएं ( ख़याल )

(1)

कई दिनों से 

सफ़ेद चादर के फंदे ने 

गला घोंट रखा था 

आज धूप से गले  मिलकर 

खुल के रोये चिनार

(2)

हाथी दांत की चूड़ियाँ

बाजार में देखी तो ख़याल आया 

कि कहीं कल इंसान 

की अस्थियों के लाकेट

तो नहीं आ जायेंगे बाजार में

(3) 

तेरी इस ग़ज़ल के कुछ शब्दों से 

लहू रिस रहा है 

लगता है कहीं से बहुत बड़ी 

चोट खाकर आये हैं 

तभी तो दर्द से बरखे 

यूँ फडफडा रहे…

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Added by rajesh kumari on May 14, 2012 at 10:49am — 23 Comments

हाँ मैं कमजोर हूँ माँ हूँ ना!!!

कितना जोश और ख़ुशी 

थी तुम्हारी आवाज में 

जब तुमने मुझे फोन पर बताया 

की माँ तुम्हारे दामाद ने 

आज पांच आतंकवादियों 

को मार गिराया 

तुम लगातार ख़ुशी से बता 

रही थी और मेरा मन 

कंहीं दूर किसी धुंधलके 

की तरफ खिंचता जा रहा था 

तुम्हारी आवाज दूर होती जा रही थी 

कुछ क्षण बाद वापस आती हूँ तो सोचती हूँ 

की तुम कितनी बहादुर हो 

बिलकुल अपने 

जांबाज पति की तरह 

मुझे गर्व है तुमपर 

मेरी…

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Added by rajesh kumari on May 12, 2012 at 12:47pm — 5 Comments

माँ तुम्हें कहाँ से लाऊं ???

वो छोटी सी पगडण्डी 
जिसकी नुकीली झाड़ियाँ 
अपने हाथों से काटकर 
बनाई थी तुमने मेरे चलने के लिए, 
आज वो कंक्रीट की सड़क बन गई है 
जो पौधा अपने आँगन 
में लगाया था तुमने, 
वो सघन दरख़्त बन गया है 
नई- नई कोंपले 
भी निकल आई हैं उसपर 
जो नन्हा दिया जलाया 
था तुमने मुझे रौशनी देने के लिए 
वो अब आफताब बन गया है 
तुम्हारे उस कच्ची माटी के…
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Added by rajesh kumari on May 10, 2012 at 1:45pm — 17 Comments

रंगों का राजा

खोल दिए पट श्यामल अभ्रपारों ने 

मुक्त का दिए वारि बंधन 

नहा गए उन्नत शिखर 

धुल गई बदन की मलिनता …

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Added by rajesh kumari on May 4, 2012 at 10:30am — 20 Comments

भक्षक (लघु कथा )

भक्षक (लघु कथा )

 साहब मेरी बेटी कहाँ है ?हरिया ने हाथ जोड़कर स्थानीय   थाने में बैठे दरोगा से गिड़ गिडाते हुए पूछा |अब होश आया तुझे दो दिन हो गये तेरी बेटी को नहर से निकाला था,हाँ आत्महत्या का प्रयास करने से पहले तेरे पास भी तो आई थी अपनी  ससुराल वालो के अत्याचार का दुखड़ा रोने करी थी क्या तूने उसकी  मदद ,अब आया बेटी वाला |आत्म हत्या भी जुर्म है केस चलेगा अभी लाकअप में बंद है कल आना वकील के साथ लिखत पढ़त करके छोड़ देंगे|पर साहब इन कोठरियों में तो दिखाई नहीं !!!उसकी बात पूरी होने से…

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Added by rajesh kumari on April 29, 2012 at 12:30pm — 16 Comments

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