रख्त -ऐ -सफ़र तक़दीर को कब मिले महोलत घबरानेसे
अबस कुँजश्क तर्स खाये है इक आफताब के बेबक्त डूब जाने से
कटरा-ब -कतरा-ओ-गिरया हाथ में लेकर दरया बनाता हूँ
जब आती है पुर्सिश गर्म सांसोकी खनक तेरे अफ़साने से
यह सबा ये फ़िज़ा-ओ-तहरतुष बुलाती है शायर-ऐ -फितरत को
फिर मिलाती है दिल-ओ-दीद-ओ-जान आशिया कोई बसाने को
गर वक़्त ज़ालिम है तो तक़दीरभी संग-ओ-दिल सनम है
ऐसे जंगजू-ओ-हालातमें कौन बचाये किसको तड़पानेसे से
बा-गर्दिशे …
ContinueAdded by Preeti Manekar on October 31, 2013 at 8:47pm — 3 Comments
साहित्य दीप ! शब्दों की ज्योति !!…
ContinueAdded by Abhinav Arun on October 31, 2013 at 8:30pm — 18 Comments
Added by Akhand Gahmari on October 31, 2013 at 8:00pm — 8 Comments
वक़्तका तकाज़ा है आज आई है शाबान-ऐ-हिज्राँ सिरहानेसे
वैसे दम-ब-दम को नहीं फुर्सत दर-ब-दर मुझे आज़मानेसे
कितने माजूर-ओ-बेखुद बने बद-चलन पैमाने झलकानेसे
सफा -ऐ -कल्ब क्या बनोगे इंसा सरसार दर्यामे नहाने से
उम्र -ऐ -खिज्र में गर फिर लिखे दास्तान -ऐ -शौक कोई
किस तर्ज़ -ऐ -तपाक मिले तोड़कर मसाफात अनजाने से
सर -गर्म -ऐ -जफ़ा किसको महोलत दी है यहाँ बेदिलीने
तक़दीर कैसे निगाह -बान रहे नज़र -ऐ -बाद बचाने से
फरते -मिहानपे …
ContinueAdded by Zid on October 31, 2013 at 6:20pm — 6 Comments
मधुमति,
मेरे पदचिन्हों को
पी लेता है
मेरा कल
और मेरे
प्राची पनघट पर
उग आते
निष्ठुर दलदल
ऐसे में किस स्वप्नत्रयी की
बात करूं मेरे मादल ?
वसुमति,
मेरे जिन रूपों को
जीता है
मेरा शतदल
उस प्रभास के
अरूण हास पर
मल जाता
कोई काजल
ऐसे में किस स्वप्नत्रयी की
बात करूं मेरे मादल ?
द्युमति,
मेरे तेज अर्क में
घुल…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 31, 2013 at 3:39pm — 14 Comments
Added by अनुपम ध्यानी on October 31, 2013 at 1:00am — 6 Comments
नील गगन हे ! सावधान |
साध ये ..सतरंगी कमान |
आया है... कौन काज ...
अनंग ले ...ये काम वान ||
शाख शजर के डेरा डाल |
मन करे..घायल बेहाल |
हरी हरियाली पाँखों बीच ..
ओढ़े बैठा सतरंगी शाल ||
मौसम ये भीगा-भीगा आया |
काले-काले...बदरा लाया |
वावली हुईं…
Added by Alka Gupta on October 30, 2013 at 11:03pm — 8 Comments
!!! भंवर में डूब गयी नाव !!!
1212 1122 1212 22
उधार आज नहीं, कल नकद बताने से।
भंवर में डूब गयी नाव, भाव खाने से ।।
जवां-जवां है हंसीं है सुहाग रातों सी।
यहां गुलाब - चमेली महक जताने से।।
बड़े उदास सितारें जमीं पे टूट गिरे।
हंसी खिली कि चमेली मिली दीवाने से।।
कठोर रात सितारों पे फबितयां कसती।
हुजूर आप यहां, चांद डगमगाने से।।
शुभागमन है यहां भोर लालिमा जैसी।
सुगन्ध फैल गयी नम हवा बहाने…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 30, 2013 at 8:51pm — 12 Comments
आँखों देखी – 5 आकाश में आग की लपटें
भूमिका :
पिछले अध्याय (आँखों देखी – 4) में मैंने आपको बताया था कैसे एक तटस्थ डॉक्टर के कारण हम लोग किसी सम्भावित आपदा को टाल देने में सक्षम हुए थे. शीतकालीन अंटार्कटिका का रंग-रूप ही कुछ अकल्पनीय ढंग से अद्भुत होता है.…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on October 30, 2013 at 2:30pm — 28 Comments
मात्रा भार - 222 ,222 ,22
खोल शिखा फिर आन करें हम
आज गरल का पान करें हम।
ज्वालाओं के धनुष बना कर
लपटों का संधान करें हम।
अंगारों सा धधक रहा उस
यौवन पर अभिमान करें हम।
अँधियारा जब छा जाये तो
खुद को ही दिनमान करें हम।
समिधाओं से राख उड़ी है
आहुति का आह्वान करें हम।
अपना कौन पराया कितना
अब उनकी पहिचान करें हम।
कर कौन रहा कल…
ContinueAdded by dr lalit mohan pant on October 30, 2013 at 12:00am — 16 Comments
Added by Akhand Gahmari on October 29, 2013 at 9:29pm — 7 Comments
समाज की अति व्यस्तता में मगन हम आनंद का अनुभव करने के लिए विशेष अवसरों की खोज करतें हैं | त्यौहार उन विशेष अवसरों में से एक है | ये हमारे जीवन में नयापन लाते हैं, आनन्द और उल्लास पैदा करते हैं | हमारे त्योहारों में दीपावली का विशेष स्थान है | दीपावली का साधारण अर्थ दीपों की पंक्ति का उत्सव है और दीपक का प्रकाश ज्ञान और उल्लास का प्रतीक है | दीपावली कब और क्यों मनाया जाता है ये तो हम सभी जानते हैं | इसके बारे में अनेक सांस्कृतिक,ऐतिहासिक एवं धार्मिक परम्पराएं और कितनी कहानियां प्रचलित हैं ये…
ContinueAdded by Meena Pathak on October 29, 2013 at 8:30pm — 19 Comments
मिले तुम इत्तिफाक अच्छा था ।
हसरते दिल फिराक अच्छा था ।
मुझ से बोला कि प्यार है तुमसे ,
आपका वो मज़ाक अच्छा था ।
पाके खोया तुम्हे तो ये पाया ,
मै तनहा ही लाख अच्छा था ।
नज़रें फेरे जो तुमको देखा तो ,
लम्हा वो दर्द नाक अच्छा था ।
प्यार में मेरे हज़ारों कमियाँ ,
तेरा धोखा तो पाक अच्छा था ।
कस्मे वादे रहीं न रस्में वफ़ा ,
दिल दिल का तलाक अच्छा था ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज
Added by Neeraj Nishchal on October 29, 2013 at 6:30pm — 12 Comments
अंक 8 पढने हेतु यहाँ क्लिक करें…….
आदरणीय साहित्यप्रेमी सुधीजनों,
सादर वंदे !
ओपन बुक्स ऑनलाइन यानि ओबीओ के साहित्य-सेवा जीवन के सफलतापूर्वक तीन वर्ष पूर्ण कर लेने के उपलक्ष्य में उत्तराखण्ड के हल्द्वानी स्थित एमआइईटी-कुमाऊँ के परिसर में दिनांक 15 जून 2013 को ओबीओ प्रबन्धन समिति द्वारा "ओ…
ContinueAdded by Admin on October 29, 2013 at 3:30pm — 6 Comments
1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2
लबों से आज गायब हो गई मुस्कान है
अजब सी अब परेशानी लिए इन्सान है /
कभी तो दिन भी बदलेंगे ,मिलेगा चैन तब
दुखों का अंत होगा तब यही अनुमान है /
गिले शिकवे यूँ अब हावी हुए रिश्तों पे हैं
लगा अब दांव पर परिवार का सम्मान है /
किसे अपना कहें किसको पराया हम कहें
यहाँ हर चेहरे की अब छुपी पहचान है /
रचे हैं साजिशें गहरी मगर अब सोचते
जफ़ा पाकर खुदी का डोलता ईमान है…
Added by Sarita Bhatia on October 29, 2013 at 1:45pm — 18 Comments
जलाऊं दीपक कैसे
कुल बीते दिन चार ,चमन का खोया माली
रोते पुहुप हजार ,कहाँ कैसी दीवाली
व्यथित उत्तराखंड ,तबाही कैसे भूले
आँसू मिश्रित आग ,जलेंगे कैसे चूल्हे
बिना तेल के दीप ,जलेगी कैसे बाती…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 29, 2013 at 1:00pm — 28 Comments
जाने कितने कर्ण जन्मते यहाँ गली फुटपाथों पर।
या गंदी बस्ती के भीतर या कुन्ती के जज्बातों पर॥
कुन्ती इन्हें नहीं अपनाती न ही राधा मिलती है।
इसीलिये इनके मन में विद्रोह अग्नि जलती है॥
द्रोण गुरु से डांट मिली और परशुराम का श्राप मिला।
जाति- पांति और भेदभाव का जीवन में है सूर्य खिला॥
सभ्य समाज में कर्ण यहाँ जब- जब ठुकराये जाते हैं।
दुर्योधन के गले सहर्ष तब- तब ये लगाये जाते हैं।
इनके भीतर का सूर्य किन्तु इन्हें व्यथित करता रहता।
भीतर ही भीतर इनकी…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 29, 2013 at 11:00am — 8 Comments
कभी औरों से टकराते कभी खुद से खफा होते ।
न आते ज़िन्दगी में तुम तो मौसम ए खिजां होते ।
मोहब्बत की पनाहों में हुये हालात ऐसे हैं ,
न खामोशी से छुपते हैं न लफ़्ज़ों से बयाँ होते ।
दिले नादाँ को समझायें ज़रा सी बात कैसे हम ,
प्यार के हादसे अक्सर दिलों के दरमियाँ होते ।
प्यार कहने की ख्वाहिश में सिमट जाता है अपना दिल,
खुदा तेरी तरह होते जो हम भी बेज़ुबाँ होते ।
खुदी का घर मिटाये बिन सुकूँ का दर नही मिलता…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on October 29, 2013 at 6:30am — 19 Comments
दीप हमने सजाये घर-द्वार हैं
फिर भी संचित अँधेरा होता रहा
मन अयोध्या बना व्याकुल सा सदा
तन ये लंका हुआ बस छलता रहा
राम को तो सदा ही वनवास है
मंथरा की कुटिलता जीती जहाँ
भाव दशरथ दिखे बस लाचार से
खेल आसक्ति ऐसी खेले यहाँ
लोभ धर रूप कितने सम्मुख खड़ा
दंभ रावण के जैसा बढ़ता रहा
धुंध यूँ वासना की छाने लगी
मन में भ्रम इक पला, सीता को ठगा
नेह के बंध बिखरे, कमजोर हैं
सब्र शबरी का…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on October 28, 2013 at 9:30pm — 26 Comments
१-सुकून
सुनों
आज के बाद तंग नहीं करूँगा
चला जाऊँगा
बस एक बार क्षण-भर
आओ बैठो मेरे पास
तुम्हारे आने से
जिंदा हो उठता हूँ
२-अकेला
दुख के सन्नाटे से
लड़ रहा हूँ
तभी तो
आज फिर अकेला हूँ
३-मंत्री भूखानंदजी
करोड़ों का माल गटक गए
सुना है आज फिर
भूख हड़ताल पे बैठे है
४-साथ
मै तो ग़मों का रेगिस्तान था
वो तो तुम्हारे आने से सादाब हो…
Added by ram shiromani pathak on October 28, 2013 at 8:00pm — 24 Comments
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