1222---1222---1222-1222 |
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मैं घर से दूर आया हूँ मगर कुछ ख़ास रखता हूँ। |
तुम्हारी याद की ताबिश हमेशा पास रखता हूँ। |
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कभी वट पूजती हो तुम, दिखा के चाँद को… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 31, 2015 at 2:03pm — 28 Comments
है खोया क्या किसे वो आज हर पल ढूँढ़ते हैं,
गगन में हैं हमारे पाँव भूतल ढूँढ़ते हैं ।
सभाओं में कोई चर्चा कोई मुद्दा नहीं है,
सभी नेपथ्य में बैठे हुए हल ढूँढते हैं ।
उन्हें होगा तज्रिबा भी कहाँ आगे सफर का,
वो सहरा में नदी, तालाब, दलदल ढूँढ़ते हैं ।
कहीं से खुल तो जाये कोठरी ये आओ देखें,
दरों पर खिडकियों पर कोई सांकल ढूँढ़ते हैं ।
यूँ भी बेकारियों का मसअला हो जायेगा हल,
जो अब तक खो दिया है…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on August 30, 2015 at 8:30am — 14 Comments
तुम गोलाई में तलाशते हो कोण
सीधी सरल रेखा को बदल देते हो
त्रिकोण में
हर बात में तुम तलाशते हो
अपना ही एक कोण
तुम्हें सुविधा होती है
एक कोण पकड़कर
अपनी बात कहने में
बिन कोण के तुम
भीड़ के भंवर में
उतरना नहीं चाहते
तुम्हें या तो तैरना नहीं आता
या तुम आलसी हो
स्वार्थी और सुविधा भोगी भी
तुम्हें सत्य और झूठ से भी मतलब नहीं है
इस इस देश में गढ़ डाले है
तुमने हजारो लाखों कोण
हर कोण से तुम दागते हो तीर
ह्रदय को…
Added by Neeraj Neer on August 29, 2015 at 11:14am — 12 Comments
चीर चट्टान के सीने को मिला करते थे
तब मुहब्बत में सनम लोग वफ़ा करते थे
काट देता था ज़माना भले ही पर नाजुक
होंसलों से नई परवाज़ भरा करते थे
दिल के ज़ज्बात कबूतर के परों पर लिखकर
प्यार का अपने वो इजहार किया करते थे
कैस फ़रहाद या राँझा कई दीवाने तब
नाम माशूक का तो खूँ से लिखा करते थे
एक हम थे जो जमाने की नजर से डरकर
जल्द खुर्शीद के ढलने की दुआ करते थे
आज वो रह गए केवल मेरा…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 23, 2015 at 10:00pm — 19 Comments
वो थी एक डायरी
गुलाबी जिल्द वाली
अन्दर के चिकने पन्ने
खुशनुमा छुअन लिए
मुकम्मल थी एकदम
कुछ खूबसूरत सा
लिखने के लिए I
सिल्क की साड़ियों की
तहों के बीच,
अल्मारी में सहेजा था उसे
उन मेहंदी लगे हाथों ने,
सेंट की खुशबू
और ज़री की चुभन
को करती रही थी वो जज़्ब,
हर दिन रहता था
बाहर आने का इंतज़ार
अपने चिकने पन्नों पर
प्यारा सा कुछ
लिखे जाने का इंतज़ार…
ContinueAdded by pratibha pande on August 20, 2015 at 5:00pm — 17 Comments
Added by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 19, 2015 at 3:53pm — 10 Comments
बन सौभाग्य सँवारे मुझको
सावन घिरे पुकारे मुझको
हाथ पकड़ झट कर ले बंदी
क्या सखि साजन?न सखि मेहंदी
उसने हाय! शृंगार निखारा
प्रेम रचा मन भाव उभारा
प्रेम राह पर गढ़ी बुलंदी
क्या सखि साजन? न सखि मेहंदी
अंग लगे तो मन खिल जाए
खुशबू साँसों को महकाए
प्यारी उसकी घेराबंदी
क्या सखि साजन? न सखि मेहंदी
उसमें महक दुआओं की है
उसमें चहक फिजाओं की है
हिमशीतल निर्झर कालिंदी
क्या…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on August 17, 2015 at 8:15am — 14 Comments
परिणति पीड़ा
रिश्ते के हर कदम पर, हर चौराहे पर
हर पल
भटकते कदम पर भी
मेरे उस पल की सच्चाई थी तुम
जिस-जिस पल वहीं कहीं पास थी तुम
जीवन-यथार्थ की कठिन सच्चाइयों के बीच भी
खुश था बहुत, बहुत खुश था मैं
पर अजीब थी ज़िन्दगी वह तुम्हारे संग
स्नेह की ममतामयी छाओं के पीछे भी मुझमें
था कोई अमंगल भ्रम
भीतरी परतों की सतहों में हो जैसे
अन-चुकाये कर्ज़ का कंधों पर भार
तुमसे कह न सका पर इतनी…
ContinueAdded by vijay nikore on August 16, 2015 at 5:30pm — 30 Comments
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