बन सौभाग्य सँवारे मुझको
सावन घिरे पुकारे मुझको
हाथ पकड़ झट कर ले बंदी
क्या सखि साजन?न सखि मेहंदी
उसने हाय! शृंगार निखारा
प्रेम रचा मन भाव उभारा
प्रेम राह पर गढ़ी बुलंदी
क्या सखि साजन? न सखि मेहंदी
अंग लगे तो मन खिल जाए
खुशबू साँसों को महकाए
प्यारी उसकी घेराबंदी
क्या सखि साजन? न सखि मेहंदी
उसमें महक दुआओं की है
उसमें चहक फिजाओं की है
हिमशीतल निर्झर कालिंदी
क्या सखि साजन? न सखि मेहंदी
दुआ खिली ज्यों रेशम रेशम
सावन लाया मनहर संगम
रेशा रेशा चिंदी चिंदी
क्या सखि साजन? न सखि मेहंदी
सिहरन से भर उठता तन-मन
प्रेम करे जब गुंजन नर्तन
गढ़े लकीरें जैसे विधिना
क्या सखि साजन? न न हिना
रंग सहेजे प्यार उकेरे
सपनों के संसार उकेरे
चूमूँ मैं दिन रात सहेली
क्या सखि साजन? नहीं हथेली
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय Dr.Prachi Singh जी कह-मुकरियों की परिभाषा से मैं जियादा परिचित तो नहीं हूँ....लेकिन आपके भावों को पढ़ कर दिल से दाद निकले बगैर न रह सकी | कितना लुत्फ़ आता है इन्हें पढने में | इसमें भी रदीफ़ "क्या सखि साजन? न सखि मेहंदी" कितना लयात्मकता से उच्चारण होता है | दिल को लुभा गया ...एक सुंदर महक ! ढेरों दाद आपकी इस सुंदर पेशकश पर | साभार !!
मेहंदी पर रचित कहकारियों को सराह स्वीकार करने के लिए सभी सुधि पाठक वृन्दों का हृदयतल से आभार.
सादर.
मेहदी पर एक साथ इतनी मुकरिया आप्की कारर्यित्री प्रतिभा का प्रमाण हैं. सादर आदरणीया .
आदरणीया प्राची जी , मेहन्दी को कितने और कैसे कैसे बयान किया है आपने , पढ कर दंग हूँ । इन महकती कह्मुकरियों के लिये दिली बधाइयाँ ।
रंग सहेजे प्यार उकेरे
सपनों के संसार उकेरे
चूमूँ मैं दिन रात सहेली
क्या सखि साजन? नहीं हथेली ...अनुपम प्रस्तुति आदरणीया डा. प्राची जी!
सुगंध से भरी ,ठन्डे एहसास से भरी ,बहुत सुन्दर रचना बधाई आपको आ० प्राची जी
प्रस्तुत कह मुकरियों में मेहंदी की महक को महसूस कर अभिव्यक्ति सराहने के लिए आदरणीय नरेंद्र चौहान जी , नीरज मिश्रा जी , लक्ष्मण धामी जी , विजय जी , आ० मिथिलेश जी , आ० राजेश जी ..आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद
सुन्दर हिना की तरह ही महकती कह्मुकारियाँ ...बहुत- बहुत बधाई प्रिय प्राची जी
अति सुन्दर ! सभी कह-मुकरियाँ पढ़ कर आनन्द आया, पर विशेषकर..
//बन सौभाग्य सँवारे मुझको
सावन घिरे पुकारे मुझको
हाथ पकड़ झट कर ले बंदी
क्या सखि साजन?न सखि मेहंदी//
हार्दिक बधाई, आदरणीया ।
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