साथियों !
हमारे संज्ञान में लाया गया है कि कुछ सदस्यों को ओ बी ओ लोगिन ( sign in ) करने में समस्या होती है | इस सम्बन्ध में कहना है कि ....
प्रथम बार sign up कर जब आप ओ बी ओ सदस्यता ग्रहण कर लेते है तो उसके बाद आपको केवल sign in करनी होती है ध्यान रखे sign up नहीं, sign up सिर्फ एक बार सदस्यता ग्रहण करने हेतु प्रयोग किया जाता है |
sign in करने हेतु दो डाटा कि आवश्यकता होती है ...
१- आपका इ-मेल आई डी, जिसका प्रयोग आप सदस्यता ग्रहण करने में प्रयोग…
ContinueAdded by Admin on July 31, 2011 at 9:00pm — 5 Comments
Added by sangeeta swarup on July 27, 2011 at 4:00pm — 16 Comments
हज़रत निज़ामुद्दीन-बैंगलोर राजधानी ऐक्स्प्रेस में दो रातों तक कुछ नन्हे-मुन्ने कॉकरोचों से दो-दो हाथ करते हुए 30 अक्टूबर की सुबह जब हम बैंगलोर सिटी जंक्शन पहुंचे तो दिन निकल चुका था । ट्रेन रुकने से पहले ही हमें उन क़ुलियों ने घेर लिया जो चलती ट्रेन में ही अन्दर आ गये थे । सामान उठाकर ले चलने से लेकर होटल दिलाने, लोकल साइट-सीइंग और मैसूर-ऊटी तक का टूर कराने के ऑफ़र्ज़ की बरसात होने लगी । मगर हम तो काफ़ी जानकारी पहले से ही इकट्ठा करके पूरी तैयारी से आये थे, इसलिये क़ुली साहिबान की दाल नहीं…
ContinueAdded by moin shamsi on July 26, 2011 at 1:34pm — 15 Comments
घनाक्षरी सलिला :
छत्तीसगढ़ी में अभिनव प्रयोग.
संजीव 'सलिल'
*
अँचरा मा भरे धान, टूरा गाँव का किसान, धरती मा फूँक प्राण, पसीना बहावथे.
बोबरा-फार बनाव, बासी-पसिया सुहाव, महुआ-अचार खाव, पंडवानी भावथे..
बारी-बिजुरी बनाय, उरदा के पीठी भाय, थोरको न ओतियाय, टूरी इठलावथे.
भारत के जय बोल, माटी मा करे किलोल, घोटुल मा रस घोल, मुटियारी भावथे..
*
नवी रीत बनन दे, नीक न्याब चलन दे, होसला ते बढ़न दे, कउवा काँव-काँव.
अगुवा के कोचिया, फगुवा के लोटिया, बिटिया…
Added by sanjiv verma 'salil' on July 22, 2011 at 8:00am — 5 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on July 20, 2011 at 7:10am — 5 Comments
ज़ेहन मे दीवार जो सबने उठा ली है,
रातें भी नही रोशन, शहर भी काली है |
मालिक ने अता की है, एक ज़िंदगी फूलों सी,
काँटों से बनी माला क्यूँ कंठ मे डाली है |
कैसी ये तरक्की है , कैसी ये खुशहाली है,
पैसे से जेब भारी, दिल प्यार से खाली है |
दर्द फ़क़त अपना ही दर्द सा लगता है,
औरों के दर्द-ओ-गम से आँख चुरा ली है |
किस-किस को सुनाएँगे अफ़साना-ए-हयात अब,
बेहतर है खामोशी, जो लब पे सज़ा ली है |
Added by Prabha Khanna on July 18, 2011 at 7:00pm — 11 Comments
(दहेज़ के लिए पत्नी को जलाने,हत्या करने जैसी घटनाएँ आज भी हमारे समाज में घट रही हैं. हम कैसे मान लें हम पहले से अधिक शिक्षित और सभ्य हो चुके हैं. मानसरोवर --4 इसी अमानुषिक कृत्य पर आधारित है.
Added by satish mapatpuri on July 17, 2011 at 6:30pm — 2 Comments
इस दुनिया के निर्माता ने, सृष्टि के भाग्य विधाता ने.
मारुति-कृशानु के संगम से, भूमि -वारि और गगन से.
एक पुतला का निर्माण किया.
मानव का नाम उचार दिया.
मांस -चर्म के इस तन में,नर -नारी के सुन्दर मन में.
एक समता का संचार किया, तन लाल रुधिर का धार दिया .
सबको समान दी सूर्य -सोम.
सबको समान दी भूमि -ब्योम.
सबको चमड़े की काया दी. सबको सृष्टि की छाया…
ContinueAdded by satish mapatpuri on July 11, 2011 at 12:30am — 9 Comments
Added by Er. Ambarish Srivastava on July 7, 2011 at 2:00am — 8 Comments
एक दिन ,
भावनाओ की पोटली बांध
निकल पड़ी घर से ,
सोचा,
समुद्र की गहराईयों में दफ़न कर दूंगी इन्हें ..
कमबख्तों की वजह से ..
हमेशा कमजोर पड़ जाती हूँ ..
फेक भी आई उन्हें ..
दूर , बहुत दूर
पर ये लहरें भी 'न' .--
कहाँ मेरा कहा मानती हैं ..
हर लहर ....
उसे उठा कर किनारे पर पटक जाती ,
और वो दुष्ट पोटली ..
दौड़ती भागती मेरे ही …
ContinueAdded by Anita Maurya on July 4, 2011 at 3:46pm — 15 Comments
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