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अमावस सी ज़िंदगी में

अचानक ही 
छिटक गयी चाँदनी 
एक बादल की ओट से 
निकलते हुए 
चाँद ने कहा 
क्यूँ मायूस हो ? 
मैं हूँ न ..
और यह कह 
मुस्कुरा दिया 
मैं खो गयी 
उस मुस्कान में 
उसकी स्निग्ध शीतलता ने 
जैसे दग्ध मन पर 
रख दिए 
बर्फ  के फाहे 
और 
पिघलता रहा 
बूँद बूँद 
जो हृदय 
पत्थर हो चला था ...

 

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Comment

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Comment by sangeeta swarup on August 8, 2011 at 3:17pm

आशीष जी और सुजीत जी , 

रचना पसंद करने के लिए आभार 

Comment by Sujeet Kumar on August 7, 2011 at 10:35am

saurabh pandey ji ne apke rachna ki bahothi sahi vishlesan ki hai...

sach men apki rachna padhne ke baad dil ko jaisi ek rahat miti hai aur man ko hausala milta hai

Comment by आशीष यादव on August 5, 2011 at 9:10pm

जलते हृदय को शांत करती रचना, और जीने का हौसला बढाती है|
धन्यवाद|

Comment by sangeeta swarup on July 29, 2011 at 10:07pm

वेद व्यथित जी  और रजनी जी 

बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by rajni khaitan on July 29, 2011 at 12:21pm

बहुत सुन्दर...दिल को छू गई

Comment by sangeeta swarup on July 28, 2011 at 6:21pm

सुनीता जी , 

मेरी रचना ने आपकी परेशानी का थोड़ा स अंश भी कम किया तो सार्थक हुई यह रचना ... आभार 

Comment by sangeeta swarup on July 28, 2011 at 6:20pm

सौरभ जी ,  

आपकी टिप्पणी ने हौसले में इज़ाफा किया ... आभार 

Comment by सुनीता शानू on July 28, 2011 at 5:11pm

आज मन बहुत परेशान सा था मगर आपकी ये कविता मुझमें एक उमंग सी जगा गई। बहुत अच्छा लगा पढ़कर।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 28, 2011 at 4:28pm

आस-निरास के द्वन्द्व और उसकी सार्थक अभिव्यक्ति से रचनाकार ने अपने प्रति पाठकों की उम्मीदें बढ़ा ली हैं. हार्दिक शुभकामनाएँ.

Comment by sangeeta swarup on July 28, 2011 at 3:31pm

विश्वजीत यादव जी , 

आपको रचना पसंद आई उसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

कृपया ध्यान दे...

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