For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

July 2011 Blog Posts (106)

क्या इसी को मुहब्बत कहते है

क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं

जब हम बैचेन से रहते हैं

अक्सर कुछ कहने की चाह मे

सपनों मे खोये रहते हैं

क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं

 

उनकी एक झलक पाने के लिए

हम हर दिन राहों मे इंतजार करते हैं

न जाने क्यों हम कुछ कहने से डरते हैं

क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं

 

अक्सर वो सपनों में आती है

आँखें खोलूँ तो न जाने कहाँ चली जाती है

सिर्फ इन आँखों को उसकी ही सूरत भाती है

क्या इसी…

Continue

Added by Bishwajit yadav on July 26, 2011 at 10:30am — 6 Comments

संस्मरण (Reminiscence)

अभी कुछ दिनो पहले

बचपन के बीत जाने के बाद 
एक खेल खेला करते थे...
नाम छुपा कर अधरों पर
एक फूल संभाले हाथों   मे
बडी उम्मीद के साथ 
पंखुरियाँ तोड़ते हुए कहना,
'He loves me, he loves me not'
हारना  तो एक फूल और,
जीतते तो अनजाने ही 
रंग गुलनार!
तब कब समझा और कब जाना
के हर एक हासिल पर यूं  ही
सौ- सौ कुर्बानियाँ होंगी
बिखरे लम्हों…
Continue

Added by Aradhana on July 25, 2011 at 7:30pm — 16 Comments

उम्र के इस पड़ाव पर

.

उम्र के इस पड़ाव पर

खड़ा हूँ ये सोच कर

क्या खोया क्या पाया

समझूँ सबकुछ देख कर

वही पर हूँ

जहाँ पर था

उस समय भी

मैं ही था

आज भी हूँ

उस समय

मैं बालक था

लड़कपन और ठिठोली करता

आज भी हूँ

वही बालक

मगर अंतर हैं

तब वो पुत्र था

आज ये पिता है.





२.

मैं स्कूल नहीं जाऊँगा ,

जब ये शब्द मुझे याद आते हैं

कसम से

बहुत याद…

Continue

Added by Rash Bihari Ravi on July 25, 2011 at 7:30pm — 4 Comments

सृष्टि का सर्वाधिक बुद्धिमान प्राणी मनुष्य ,

सृष्टि का सर्वाधिक बुद्धिमान प्राणी मनुष्य ,

अपने भाग्य एवं भविष्य का निर्माता वो ,
अक्लमंदी के प्रदर्शन में प्रकृति के बिरोध करे ,
जिसे हम विकास कहते हैं वो विनाश का द्वार हैं ,
हम प्राकृतिक संपदाओं को जो नष्ट कर रहे हैं ,
धारा प्रदूषित होने से हम मृत्यु को वरण कर रहे हैं ,
हर कोई जाने-अनजाने में खुद को मारना चाहता हैं ,
नहीं तो धूम्रपान मद्यपान को वो वरण नही करता…
Continue

Added by Rash Bihari Ravi on July 25, 2011 at 7:00pm — 2 Comments

पहला प्यार

यूँ ज़िन्दगी में आया पहला प्यार

जैसे रेत की तपन में पड़ गई सावन की फुहार

 

तुमको देखा तो लगा की बस यहीं हैं

जिस पर करना हैं अपना सब कुछ निसार

 

घंटो छत पर कड़ी धुप में खड़े रहते थे हम

इस इंतज़ार में की बस एक बार हो जाये तेरा…

Continue

Added by Vasudha Nigam on July 25, 2011 at 3:37pm — 4 Comments

मुक्तिका संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:     - संजीव 'सलिल'


*
नैन
बैन.

नहीं
चैन.

कटी
रैन.

थके
डैन.

मिले
फैन.

शब्द
बैन.

चुभे
सैन.

*

16 december 2010

Added by sanjiv verma 'salil' on July 25, 2011 at 8:46am — 3 Comments

ग़ज़ल : लाश तेरी यादों की

लाश तेरी यादों की मैं न छोड़ पाता हूँ

रोज दफ़्न करता हूँ रोज खोद लाता हूँ



जो रकीब था कबसे बन गया खुदा मेरा

रोज सर कटाता हूँ रोज सर झुकाता हूँ…



Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 24, 2011 at 3:30pm — 3 Comments

बरखा बहार आयी

बरखा  बहार आयी :-

                                              याद तुम्हारी सतायेंगी
                                              जब बुँदे बरसेंगी सावनकी 
                                              आसूओंकी धारओंका 
                                              साथ निभाएंगी…
Continue

Added by Mohini Dhawade on July 24, 2011 at 3:18pm — No Comments

ग़ज़ल

             ग़ज़ल 



लगती है बाज़ार गुज़रते हैं आदमीं 

हर रोज़ बिकने खड़े होते हैं आदमीं 



उठते हैं हर सुबह जाने क्या सोचकर 

इस पेट के आगे पर झुकते  हैं आदमीं 



तपती दोपहरी में जब लगती है प्यास 

बुझे ए कैसे यही सोचते हैं आदमीं …



Continue

Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 24, 2011 at 9:47am — 2 Comments

मुक्तिका: जानकर भी... --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                              

जानकर भी...

संजीव 'सलिल'

*

रूठकर दिल को क्यों जलाते हो?

मुस्कुराते हो, खूब भाते हो..



एक झरना…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on July 24, 2011 at 9:00am — 1 Comment

घनाक्षरी सलिला : छत्तीसगढ़ी में अभिनव प्रयोग. संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी सलिला :

छत्तीसगढ़ी में अभिनव प्रयोग.

संजीव 'सलिल'

*

अँचरा मा भरे धान, टूरा गाँव का किसान, धरती मा फूँक प्राण, पसीना बहावथे.

बोबरा-फार बनाव, बासी-पसिया सुहाव, महुआ-अचार खाव, पंडवानी भावथे..

बारी-बिजुरी बनाय, उरदा के पीठी भाय, थोरको न ओतियाय, टूरी इठलावथे.

भारत के जय बोल, माटी मा करे किलोल, घोटुल मा रस घोल, मुटियारी भावथे..

*

नवी रीत बनन दे, नीक न्याब चलन दे, होसला ते बढ़न दे, कउवा काँव-काँव.

अगुवा के कोचिया, फगुवा के लोटिया, बिटिया…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on July 22, 2011 at 8:00am — 5 Comments

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

1. समारू - छग के जगदलपुर में एसीबी के शिकंजे में आए करोड़पति अफसर।

पहारू - देखते रहो, कुछ और धनपशु का अवतार आने वाले दिनों में होगा।





2. समारू - वारदात को अंजाम देने के बाद नक्सली पश्चाताप कर रहे हैं।

पहारू - उनकी घर वापसी ही पश्चाताप हो सकता है।





3. समारू - वोट के बदले नोट मामले में परत-दर-परत खुलासा हो रहा है

पहारू - अभी तो सूत्रधार का सींखचों के पीछे आना बाकी है।





4. समारू - छग के एसपीओ बेरोजगार नहीं होंगे।

पहारू - ऐसा होता… Continue

Added by rajkumar sahu on July 21, 2011 at 10:35pm — No Comments

गुरु जी की दो कवितायेँ ...

"एक"

वो ओजस्वी शब्द जो सब कुछ बदल दिया,

अंधे का पुत्र अंधा द्रोपदी जो बोल दिया ,
वही शब्द बन गए महाभारत की…
Continue

Added by Rash Bihari Ravi on July 21, 2011 at 6:00pm — 2 Comments

कृषि व औद्योगिक नीति, बढ़ेगा टकराव

छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है और व्यापक धान पैदावार के लिए अभी हाल ही में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने ‘छग सरकार’ को सम्मानित किया है। निश्चित ही यह कृषि क्षेत्र में देश में एक अलग पहचान बनाने वाले राज्य के लिए गौरव की बात है, मगर प्रदेश के कई जिलों में जिस तरह कृषि रकबा को तहस-नहस कर औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, वह कृषि प्रधान प्रदेश के किसानों के बेहतर भविष्य निर्माण करने वाला साबित नहीं हो सकता ? यही कारण है कि अधिकांश इलाकों में औद्योगीकरण के खिलाफ किसान मुखर हो गए हैं और… Continue

Added by rajkumar sahu on July 21, 2011 at 4:57pm — No Comments

"व्यथा"

                    "व्यथा" 
ज़िन्दगी के सफ़र में ऐसा क्या ये हुआ 
ये कदम थे रुके मेरे, वक़्त चलता रहा 
जाने रूठा है मुझसे मेरा आईना …
Continue

Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 21, 2011 at 1:46pm — 2 Comments

चल रहा आदमी

        "चल रहा आदमी"

वक़्त  के हासिए पर लटक रहा आदमी

कभी इधर, कभी उधर चल रहा आदमी
 
जाने क्या बात है उनके दिलों में 
 चेहरों पे नकाब ले चल रहा आदमी 
उठतीं हैं हिलोरें समुन्दर में…
Continue

Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 21, 2011 at 11:24am — 3 Comments

व्यंग्य - कृपापात्र आशीर्वाद का प्रतिफल

बड़ों के आशीर्वाद की अहमियत जमाने से है और जमाने तक रहेगा, क्योंकि बड़ों की कृपा बिना संभव ही नहीं कि आप फर्श से अर्श तक पहुंच पाएं। अधिकतर यह सुनने को मिलते रहता है कि फलां के आशीर्वाद से ही गगनचुंबी सफलता मिली और एक नई इबारत लिखने का अवसर मिला। मैं भी समझता हूं कि आशीर्वाद की भूमिका हर जगह है। इतना मान लीजिए कि आशीर्वाद है, तो आप हैं। इसके इतर बात करें तो एक आशीर्वाद का दस्तूर भी बरसों से चली आ रही है, वह है कृपापात्र आशीर्वाद। इसके बगैर तो आप एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकते, सफलता की बात सोचने के… Continue

Added by rajkumar sahu on July 20, 2011 at 9:23pm — No Comments

शोर-ए-दिल

वो मेरे पास, जाने क्यूँ, दबे-पाँव से आते हैं |

यही अंदाज़ हैं उनके, जो मेरा दिल, चुराते हैं ||



वो जब पहलू बदलते हैं, कभी बातों ही बातों में |

मुझे महसूस होता है, की वो कुछ कहना चाहते हैं ||



इरादा जब भी करता हूँ, मैं हाल-ए-दिल सुनाने का |…

Continue

Added by Shashi Mehra on July 20, 2011 at 8:30pm — 1 Comment

दीवाना बना कर चली गयी

कोई  आई  और  मुझे   दीवाना   बना   कर   चली   गयी  

साँसों   में    मेरी   घुल   गई  

आँखों  में  मेरी  घर  कर  गयी 

दिल  के  आंगन  में  आशियाँ    बना  के  बस  गयी | 



 

 

उसे   ढूँढूं   कहाँ  में   यूँ   गलियों  में …

Continue

Added by Rohit Dubey "योद्धा " on July 20, 2011 at 2:43pm — 2 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
22 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service