For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Vasudha Nigam
  • Female
  • Kanpur, UP
  • India
Share on Facebook MySpace

Vasudha Nigam's Friends

  • Tushar Raj Rastogi
  • aman kumar
  • पीयूष द्विवेदी भारत
  • Ranveer Pratap Singh
  • अरुन 'अनन्त'
  • Rekha Joshi
  • डॉ. सूर्या बाली "सूरज"
  • Dr.Prachi Singh
  • लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
  • CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU'
  • विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी
  • राज़ नवादवी
  • aashukavi neeraj awasthi
  • Smrit Mishra
  • Atendra Kumar Singh "Ravi"

Vasudha Nigam's Groups

 

Vasudha Nigam's Page

Profile Information

Gender
Female
City State
Hyderabad
Native Place
Kanpur
Profession
HS
About me
Simple nd Down to earth

Vasudha Nigam's Blog

घुट-घुट के जीना सीख लिया

रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया,

औरों को खुशियाँ देने को, छुप-छुप के रोना सीख लिया।

 

ताने उलाहने सुन कर हम बने रहे हर बार अंजान,

वो यूं ही सताते रहे हमे समझा न कभी हमे इंसान।

मेरी आंखो के सागर का बूंद-बूंद तक लूट लिया और,

रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया।

 

मेरे मन की गहराई मे अब उलझनों का घेरा हैं

हर रात बीते रुसवाई मे, बेबस हर सवेरा है।

मौसम की कड़ी तपन मे घावों को सीना सीख लिया…

Continue

Posted on September 3, 2013 at 9:51pm — 17 Comments

मोहब्बतों की दुनिया

मत लुटना मीठी मुसकानों पर,

ये जिस्मों की एक बनावट हैं,

कंकरीले-पथरीले रास्तों का हैं सफर,

ऊपर फूलों की बस सजावट हैं,…

Continue

Posted on September 27, 2012 at 1:30pm — 1 Comment

शायरी

रिहा कर खूबसूरत दिखने की चाह की कैद से मुझे,

ए आईने मेरी सादगी को ज़मानत दे दे।  

...................

हम समता करना सीख गए सुख और दुख के हर रंग में,…

Continue

Posted on July 27, 2012 at 11:30am — 12 Comments

माँ की व्यथा (लघुकथा)

एक अलसाई सी सुबह थी, सब काम निबटा कर बस बैठी ही थी मैं मौसम का मिजाज लेने। कुछ अजीब मौसम था आज का, हल्की हल्की बारिश थी जैसे आसमान रो रहा हो हमेशा की तरह आज न जाने क्यो मन खुश नहीं था बारिश को देखकर, तभी मोबाइल की घंटी बजी, दीदी का फोन था ‘माँ नहीं रही’। सुनकर कलेजा मुह को आने को था दिल धक्क, धड़कने रुकने को बेचैन, कभी कभी हम ज़ीने को कितने मजबूर हो जाते है जबकि ज़ीने की सब इच्छाएँ मर जाती है। मेरी माँ मेरी दोस्त मेरी गुरु एक पल में मेरे कितने ही रिश्ते खतम हो गए और मैं ज़िंदा उसके बगैर…

Continue

Posted on July 17, 2012 at 3:30pm — 12 Comments

Comment Wall (13 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 9:40am on September 24, 2012, कुमार गौरव अजीतेन्दु said…

आदरणीया वसुधा जी.....कहानी को पसंद करने के लिये आपका हार्दिक आभार.........

At 6:42am on September 22, 2012, कुमार गौरव अजीतेन्दु said…

आदरणीया वसुधा जी.....कहानी को सराहने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद........

At 10:10am on July 31, 2012, Deepak Sharma Kuluvi said…
वसुधा निगम जी 
बहुत सुन्दर नाम.....

मित्रता के लिए शुक्रिया कुछ हमसे सीखिए कुछ हमें सीखिए....जो दुनियाँ के काम आए

दीपक कुल्लुवी
09350078399
At 11:08am on July 30, 2012, Deepak Sharma Kuluvi said…

sundar rachnayen..............

kuluvi

At 2:22pm on July 28, 2012, लक्ष्मण रामानुज लडीवाला said…

मुझे आपके साथ दोस्ती करने में हर्ष हो रहा है,

स्वागत है आपका आदरणीय वसुधा निगम जी 

At 8:23pm on July 27, 2012, Rekha Joshi said…

आपके संरक्षण मे खुद को सुरक्षित महसूस करती हूँ मै,

यूं ही पूरा जीवन मुझे सुरक्षित महसूस, पापा कराओगे न।,पापा की प्यारी वसुधा जी आपका स्वागत है ,बेहद खुबसुरत रचना ,बधाई 

 

At 3:38pm on July 19, 2012, अरुन 'अनन्त' said…

वसुधा जी मेरी रचना पसंद करने के लिए शुक्रिया.

At 10:19am on May 25, 2012, डॉ. सूर्या बाली "सूरज" said…

अच्छी रचना लगी वसुधा जी। आपको बहुत बहुत बधाई !

At 10:06am on July 9, 2011,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
At 5:59pm on June 29, 2011, Santosh Kumar Thakur said…
very nice
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..दूध…"
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
Monday
Shabla Arora updated their profile
Monday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"वाह, साधु-साधु ऐसी मुखर परिचर्चा वर्षों बाद किसी आयोजन में संभव हो पायी है, आदरणीय. ऐसी परिचर्चाएँ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service