For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Mahendra Kumar's Blog – June 2018 Archive (8)

कवि (अतुकान्त कविता)

संवेदनाओं की पथरीली चोटी पर बैठकर

अपने रिसते हुए घावों को देखता हुआ

ये कौन है

जो कभी कुत्ते की तरह

जीभ से उन्हें चाटता है

तो कभी मुट्ठी में नमक भर कर

उनमें उड़ेल देता है

और फिर एक तपस्वी की तरह

ध्यान लगाकर सुनता है

अपनी आहों और कराहों को?

पत्थरों को उठा कर

अपने लहू में डुबा कर

भावनाओं की लहरों पर बैठे हुए

कौन लिख रहा है उनसे

अपना मृत्यु लेख?

किसी फन्दे पर लटक कर

एक पल में शान्ति से गुज़र जाने की अपेक्षा…

Continue

Added by Mahendra Kumar on June 27, 2018 at 9:03am — 4 Comments

शहीद (लघुकथा)

संसद भवन के बाहर भूख हड़ताल पर बैठे हुए उन युवाओं को दो महीनों से अधिक का समय हो गया था पर न तो किसी अख़बार में इसकी कोई ख़बर थी और न ही न्यूज़ चैनल्स पर चर्चा। 

“इन बेरोज़गार लौंडों के पास अब कोई काम नहीं रह गया है।” बड़ी-बड़ी मूँछों वाले उस स्थानीय बुज़ुर्ग ने अपने पास खड़े अधेड़ से कहा। “कुछ नहीं मिला तो सरकार को ही बदनाम करने में लग गए।”

“कह क्या रहे हैं ये लोग?” अधेड़ ने जिज्ञासा व्यक्त की।

“कह रहे हैं कि जब देश की जनता भूखों मर रही है तो कोई…

Continue

Added by Mahendra Kumar on June 25, 2018 at 4:30pm — 9 Comments

मानव सभ्यता का इतिहास (लघुकथा)

“कितने हसीन थे वो दिन जब पूरे आसमान पर अकेले मेरा राज हुआ करता था।” अपनी पतंग को माँझे से बाँधते हुए छोटा सा वह लड़का अपने सुनहरे अतीत में खो गया। 

अपने मोहल्ले में तब वो अकेले ही पतंग उड़ाने वाला हुआ करता था। न तो उसे कोई रोकने वाला था और न ही टोकने वाला। वह पूरी तरह से स्वतंत्र था। उस वक़्त उसकी बस एक ही हसरत होती, “एक दिन अपनी पतंग चाँद तक ले जाऊँगा।”

मगर यह ज़्यादा दिन चला नहीं। धीरे-धीरे उसके मोहल्ले में दूसरे पतंगबाज़ भी आने लगे। उनके आते ही आसमान में…

Continue

Added by Mahendra Kumar on June 22, 2018 at 5:37pm — 8 Comments

बलि (लघुकथा)

“तुम चिन्ता मत करो। मैं तुम्हें कल ही उस नर्क से दूर ले जाऊँगा।”

आज से कई दिन पहले। “ये आदमी नहीं जानवर है।” पाखी ने अपने पिता से एक बार फिर कहा। “मुझसे रोज शराब पी के मारपीट करता है। वो भी बिना किसी बात के। बस आप मुझे यहाँ से ले जाइए।”

“शादी के बाद ससुराल ही लड़की का असली घर होता है बेटी। थोड़ा सहन करो। समय सब ठीक कर देगा।” और पिता ने एक बार फिर वही जवाब दिया।

“माँ, तुम तो मुझे समझो। या तुम भी पिता जी की तरह?” पर माँ भी समझने से ज़्यादा समझाने पर…

Continue

Added by Mahendra Kumar on June 20, 2018 at 6:14pm — 6 Comments

जलियांवाला बाग़ (लघुकथा)

‘‘फ़ायर!’’ जनरल के कहते ही सैकड़ों बन्दूकें गरजने लगीं। उस जंगल में आदिवासी चारों तरफ़ से घिर चुके थे। उनकी लाशें ऐसे गिर रही थीं जैसे ताश के पत्ते। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या जवान, कोई भी ऐसा नहीं नहीं था जो बच सका हो। कुछ ने पेड़ों के पीछे छिपने की कोशिश की तो कुछ ने पोखर के अन्दर मगर बचा कोई भी नहीं। देखते ही देखते हरा-भरा जंगल लाल हो गया।

‘‘आगे बढ़ो!’’ जनरल ने आदेश दिया। सेना लाशों के बीच से होते हुए जंगल के भीतर बढ़ने लगी। वहाँ कोई भी ज़िन्दा नज़र नहीं आ रहा था सिवाय उस छोटी सी…

Continue

Added by Mahendra Kumar on June 13, 2018 at 12:00pm — 13 Comments

नजीब (लघुकथा)

और प्रधानमंत्री जी गायब हो गये। ‘‘क्या? प्रधानमंत्री जी गायब हो गये? यह कैसे हो सकता है?’’ हर किसी के जे़हन में यही सवाल था।

उस दिन जब रसोई में प्रधानमंत्री जी बच्चों के लिए पापड़ तल रहे थे तो पापड़ तलते-तलते न जाने कहाँ अचानक गायब हो गये। जैसे ही यह ख़बर न्यूज़ चैनल्स पर फ़्लैश हुई तो सारा देश सकते में आ गया।

‘‘हम लोग जी जान से लगे हैं और बहुत जल्द ही प्रधानमंत्री जी का पता लगा लेंगे। आप लोग निश्चिन्त रहिए।’’ जाँच समिति के प्रमुख ने देश को आश्वस्त करते हुए…

Continue

Added by Mahendra Kumar on June 11, 2018 at 6:30pm — 4 Comments

बाज़ार (लघुकथा)

‘‘बिटिया की उम्र निकली जा रही है, तुम उसकी कहीं शादी क्यों नहीं करते?’’ हर कोई उससे यही सवाल करता। कल तो सुपरवाइजर ने भी टोक दिया, ‘‘कलेक्टर ढूँढ रहे हो क्या?’’

मिल में काम करने वाले उस मजदूर का सपना कोई कलेक्टर नहीं बस एक अच्छा सा लड़का था जिसे वह अपनी बेटी के लिए ढूँढ रहा था। बीमारी से बीवी के गुज़र जाने के बाद बस एक बेटी ही थी जो उसका सबकुछ थी। बीते सालों में उसने रात-दिन एक कर के कई रिश्ते देखे मगर बात कहीं बनी नहीं। आज भी वह एक ऐसी ही जगह से निराश हो कर लौटा था। ‘‘बेटी!’’…

Continue

Added by Mahendra Kumar on June 7, 2018 at 5:30pm — 16 Comments

एलियंस /लघुकथा

पहाड़ की चोटी पर बैठा हुआ वह युवक अभी भी एंटीने से जूझ रहा था।

आज से कई साल पहले जब गाँव का सबसे ज़्यादा पढ़ा-लिखा युवक शहर से पहली बार टीवी लेकर आया था तो सब लोग बेहद ख़ुश थे। नारियल, अगरबत्ती और फूल-माला से स्वागत किया था सबने उसका। मगर जल्द ही, ‘‘ये टीवी ख़राब है क्या? इसमें हमारी ख़बर तो आती ही नहीं।’’ बुज़ुर्ग की बात से उस युवक के साथ-साथ बाकी गाँव वालों का भी माथा ठनका। ‘‘अरे हाँ! इसमें तो सिर्फ़ शहरों की ही ख़बरें आती हैं, गाँव का तो कहीं कोई नाम ही नहीं।’’ सबने तय किया कि शहर…

Continue

Added by Mahendra Kumar on June 2, 2018 at 6:00pm — 6 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service