For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पर्पल डार्कनेस (लघुकथा)

"थू... थू... थू..."

सूरज, जो अब तक लगातार गुस्से से चुकन्दर को ऐसे खाये जा रहा था जैसे कि उससे उसकी कोई पुरानी दुश्मनी हो, ने उसे ग़ौर से देखा और फिर थूकते हुए अपने हाथों से दूर फेंक दिया। इसके बाद उसने आलमारी से एक पुरानी शर्ट निकाली, उसे पहना और फिर आईने के सामने खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद उसने शर्ट को उतारा और गुस्से से उसे ज़मीन पे फेंक दिया। फिर मेज से बोतल उठायी और पूरी शराब शर्ट के ऊपर उड़ेल दी। माचिस लगते ही एक अजीब-सा अँधेरा पूरे कमरे में फैलने लगा...

आज से दो साल पहले सूरज और मैं एक शादी में जा रहे थे जिसमें ट्विंकल को भी आना था। ट्विंकल उसकी रिलेटिव और बचपन की दोस्त है। जैसे ही हम लोग मैरिज हॉल के पास पहुँचे सूरज को कुछ याद आया। उसने मुझसे अपने घर की तरफ चलने के लिए कहा। घर पहुँच कर उसने एक नयी शर्ट निकाली और मुस्कुराते हुए कहा, "यह उसका फेवरेट कलर है..."।

ट्विंकल लखनऊ से अपनी मम्मी, सहेली प्रिया और उसके भाई राजेश के साथ आयी थी। शादी में पहुँच कर सूरज ने उनसे बात की, साथ में खाना खाया और फिर फ़ोटो भी खिंचवायी। उस दिन वो बहुत ख़ुश था।

"थू... थू... थू..."

अब तक वह अपनी और मेरी बो टाई को भी जलती हुई शर्ट के हवाले कर चुका था। पता नहीं क्यों पर चाहे ग्लास में पड़ी शराब हो, कमरे में फैलता धुआँ या उसे एकटक देखते कोने में बेसुध पड़े सूरज का चेहरा, सभी एक ही रंग से रंगे नज़र आ रहे हैं...

मैं खिड़की के पास लगी कुर्सी पे बैठा हूँ जहाँ एक मेज रखी है। मेज पे एक कार्ड है जिसमें एक तरफ लड़की तो दूसरी तरफ लड़के की फ़ोटो है। यह कार्ड है, हमारे होटल के मालिक के छोटे लड़के की शादी का। कार्ड में फूलों के बीच बहुत ही सुन्दर तरीके से लिखा है, 'ट्विंकल वेड्स राजेश'!

...और वो रंग है, कार्ड का, पर्पल!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 598

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on July 11, 2016 at 9:39am
बहुत-बहुत आभार आदरणीय आशुतोष जी!
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 11, 2016 at 8:53am
दिल वाकई कितना नाजुक होता है इसका सहज अंदाज आपकी इस रचना से हो रहा है इस सूंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई महेंद्र जी
Comment by Mahendra Kumar on July 8, 2016 at 9:24am
हौसलाफ़ज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया राहिला जी, सादर!
Comment by Rahila on July 7, 2016 at 11:04pm

बहुत अच्छा प्रयास आदरणीय महेंद्र जी!आपकी रचना से पहली बार रूबरू हुयी हूँ।बहुत बधाई इस कृति के लिये।सादर

Comment by Mahendra Kumar on July 7, 2016 at 9:52pm
लघुकथा पसंद करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया नीता कसर जी। पुरानी यादों के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ, सादर!
Comment by Mahendra Kumar on July 7, 2016 at 9:49pm
हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी, सादर!
Comment by Mahendra Kumar on July 7, 2016 at 9:47pm
आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, हौसलाफ़ज़ाई के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया। 'पे' की जगह 'पर' का सुझाव एकदम दुरुस्त है। यदि आप यह बता सकें कि अतिरिक्त विवरण कहाँ पे है तो मेरे लिए अच्छा रहेगा, सादर धन्यवाद!
Comment by Nita Kasar on July 7, 2016 at 2:22pm
रिश्ते के टूटने का दर्द बख़ूबी बखान किया है ।पर पुरानी यादों के दुख ने नाहक ही नुक़सान करवा दिया बधाई आपको कथा के लिये आद०महेंद्र कुमार जी ।
Comment by pratibha pande on July 6, 2016 at 7:16pm

पुरानी यादों  और हताशा से उपजे आक्रोश को कथा के शिल्प में  बाँधने का सुन्दर प्रयास किया है आपने महेंद्र कुमार जी ,बधाई व् शुभ कामनाएँ  

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 6, 2016 at 4:56pm
भावुकता, सदमा, निराशा, आवेश आदि भाव सम्प्रेषित करती बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय महेन्द्र कुमार जी। कहीं-कहीं अतिरिक्त विवरण है। 'पर' के स्थान पर 'पे'का उपयोग न किया जाए तो बेहतर है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"नारी बेटी का ब्याहगरीब पिता के लिएहोता है जीवन भर का स्वप्न देखा कई बार इसके लिएखेत बिकतेखलिहान…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"शुभ प्रभात, आदरणीय! नवरात्रः दोहे मातृ-शक्ति ही पूज्य है, शारदीय नवरात्र । नौ स्वरूप हैं देवि के,…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"स्वागतम"
12 hours ago
Mamta gupta joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
23 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA updated their profile
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Mamta gupta and Euphonic Amit are now friends
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"आ. भाई सत्यनारायण जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Wednesday
Dayaram Methani commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, गुरु की महिमा पर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने। समर सर…"
Tuesday
Dayaram Methani commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आदरणीय निलेश जी, आपकी पूरी ग़ज़ल तो मैं समझ नहीं सका पर मुखड़ा अर्थात मतला समझ में भी आया और…"
Tuesday
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Oct 5
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service