२१२२/२१२२/२१२/
मंज़िलों का जो पता दे जाएगा
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा दे जाएगा.
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और थोड़ा फ़ासला दे जाएगा
ज़िंदगी की गर दुआ दे जाएगा.
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दिल को सतरंगी छटा दे जाएगा
फिर धड़कने की अदा दे जाएगा.
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ग़म हमें अब और क्या दे जाएगा
बस नया इक तज्रिबा दे जाएगा.
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आएगा कोई पयम्बर फ़िर नया
फ़िर नया हम को ख़ुदा दे जाएगा.
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जब वो सोचेगा हमारे वास्ते
फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.
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“नूर” बरसेगा ख़ुदा का एक दिन
मुश्किलों…
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 28, 2015 at 10:54am — 31 Comments
सड़क के बीचो –बीच नन्ही सी कोपल को पैर तले आते देख मनीष सिहर गया था .क्या करने जा रहा था .तपती धरा ,गर्म हवा ,पथरीली जमीन पर पसरा पिघला डामर,अंगुल बराबर हैसियत पर टक्कर इनसब से.सीना ताने उस हरीतिमा की जिजीविषा ने उसे हिम्मत से लबरेज कर दिया कि वह मजबूती से घर में सबसे बोल सके कि गर्भ में बेटी है तो क्या वह उसे पोषित करेगा .जिबह के लिए जाती बकरी सम उसकी पत्नी खिल गयी और कभी जुबान नहीं खोलने वाले बेटे के जुर्रत पर माता पिता थम गए .नेपथ्य में नन्हा अंकुर एक बड़े से फलदार पादप में…
ContinueAdded by Rita Gupta on June 15, 2015 at 5:55pm — 21 Comments
पत्थर-दिल पूँजी
के दिल पर
मार हथौड़ा
टूटे पत्थर
कितनी सारी धरती पर
इसका जायज़ नाजायज़ कब्ज़ा
विषधर इसके नीचे पलते
किन्तु न उगने देता सब्ज़ा
अगर टूट जाता टुकड़ों में
बन जाते
मज़लूमों के घर
मौसम अच्छा हो कि बुरा हो
इस पर कोई फ़र्क न पड़ता
चोटी पर हो या खाई में
आसानी से नहीं उखड़ता
उखड़ गया तो
कितने ही मर जाते
इसकी ज़द में आकर
छूट मिली…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 13, 2015 at 4:15pm — 12 Comments
पुलक तरंग जान्हवी,
हरित ललित वसुंधरा,
गगन पवन उडा रहा है
मेघ केश भारती।
श्वेत वस्त्र सज्जितः
पवित्र शीतलम् भवः
गर्व पर्व उत्तरः
हिमगिरि मना रहा।
विराट भाल भारती
सुसज्जितम् चहुँ दिशि
हरष हरष विशालतम
सिंधु पग पखारता।
कोटि कोटि कोटिशः
नग प्रफ़्फ़ुलितम् भवः
नभ नग चन्द्र दिवाकरः
उतारते है आरती।
ओम के उद्घोष से
हो चहुँदिश शांति
हो पवित्रं मनुज मन सब।
और मिटे सब…
Added by Aditya Kumar on June 12, 2015 at 12:48pm — 19 Comments
Added by shashi bansal goyal on June 11, 2015 at 8:30am — 26 Comments
पाठ्य पुस्तक में अपनी कविता देखकर कविता बहुत खुश हुई।पर यह क्या,कवयित्री की जगह तो नाम किसी कामिनी देवी का था।उसने कामिनी देवी का पता नोट किया,पता करने पर पता चला कि कामिनी एक बहुत ही लब्ध-प्रतिष्ठ हिंदी साहित्यकार के खानदान से है,जो अब इस दुनिया में नहीं हैं।कविता कामिनी से मिलने पहुँच गयी,बोली-
'तुमसे ऐसी उम्मीद न थी ।तूने मेरी कविता अपने नाम से पाठ्य क्रम में शामिल करा लिया।'
- 'ऐसी उम्मीद तो तुमसे मुझे नहीं थी,तू मेरी कविता को अपनी कह रही।'
-'अच्छा,चोरी और सीनाजोरी?'…
Added by Manan Kumar singh on June 3, 2015 at 5:00pm — 14 Comments
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