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ग़ज़ल-नूर- फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.

२१२२/२१२२/२१२/
मंज़िलों का जो पता दे जाएगा
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा दे जाएगा.
.
और थोड़ा फ़ासला दे जाएगा
ज़िंदगी की गर दुआ दे जाएगा.
.
दिल को सतरंगी छटा दे जाएगा
फिर धड़कने की अदा दे जाएगा.
.
ग़म हमें अब और क्या दे जाएगा
बस नया इक तज्रिबा दे जाएगा.
.
आएगा कोई पयम्बर फ़िर नया
फ़िर नया हम को ख़ुदा दे जाएगा.
.
जब वो सोचेगा हमारे वास्ते
फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.
.    
“नूर” बरसेगा ख़ुदा का एक दिन
मुश्किलों में रास्ता  दे जाएगा.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 1050

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2015 at 10:13pm

शुक्रिया आ. महिमा श्री जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2015 at 10:13pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2015 at 10:13pm

शुक्रिया आ. वीनस सर 

Comment by MAHIMA SHREE on July 12, 2015 at 5:15pm

मंज़िलों का जो पता दे जाएगा
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा दे जाएगा. 
.वाह...क्या खूब कहा ..बहुत बहुत बधाई आपको, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 2:02am

दाद कुबूल कीजिये हुज़ूर.. ! वाह !

Comment by वीनस केसरी on July 5, 2015 at 1:41am

वाह
शानदार ग़ज़ल के लिए ढेरो दाद

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2015 at 11:32am

आप सभी का तहे-दिल से शुक्रिया.. ऑफिस के work load के चलते समय नहीं दे पाया ..आशा है क्षमा करेंगे 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2015 at 11:31am

शुक्रिया आ. मोहन बेगोवाल जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2015 at 11:31am

शुक्रिया आ. जान गोरखपुरी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2015 at 11:31am

शुक्रिया आ. डॉ आशुतोष जी 

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