For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

May 2011 Blog Posts (84)

दूध का क़र्ज़

दूध का क़र्ज़



गंगा नहा आए जमुना नहा आए -2

क़र्ज़ तेरे ढूध का माँ कोई चुका ना पाए-२

काशी जा आए,मथुरा जा आए-२

भूलते नहीं माँ तेरी ममता के साए-२

गंगा नहा आए ज----------------

(१) बिन तेर दुनियां में कोई ना मेरा-2

बिन तेर सूना माँ रैन बसेरा-2

नींद ना आए माँ अखियों में बिन तेरे-२

बिन तेरे लोरी माँ कोई सूना ना पाए-२

गंगा नहा आए ज---------------

(२)उंगली पकड़कर चलना सिखाया-२

हर दुःख ग़म से हमको बचाया-२

तू ही बचाए माँ हर इक मुसीबत… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on May 10, 2011 at 4:03pm — 2 Comments

औरत एक औरत भी है

औरत कभी मां है

कभी बहन, कभी बेटी

तो कभी पत्नी या प्रेयसी

इन सबसे अलग

औरत एक औरत भी है

 

अपने आप में मरती है

उफ! तक भी नहीं करती है और

पुरूष के अहं मो टूटने से

बचाए रखती है

 

वह जानती है

पुरूष एक बार टूट जाएगा तो

दुबारा जुड़ नहीं पाएगा

जबकि औरत?

 

औरत ने पाई है मिट्टी की प्रकृति

टूटते ही अपने आंसुओं से

गुथेगी खुद को, और जुड़ जाएगी

नई…

Continue

Added by rajendra kumar on May 10, 2011 at 1:42pm — 2 Comments

जताते क्यों हो

जताते क्यों हो


हमसे करते हो मुहब्बत तो जताते क्यों हो

दर्द-ए-दिल हमको ए-दोस्त  दिखाते क्यों हो
अपनें भी दिल में जख्मों की कमीं कोई नहीं
दास्ताँ दर्द की तुम मुझको सुनाते क्यों…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on May 10, 2011 at 11:44am — 3 Comments

मुक्तिका: तुम क्या जानो ---- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

तुम क्या जानो

संजीव 'सलिल'

*

तुम क्या जानो कितना सुख है दर्दों की पहुनाई में.

नाम हुआ करता आशिक का गली-गली रुसवाई में..

 

उषा और संझा की लाली अनायास ही साथ मिली.

कली कमल की खिली-अधखिली नैनों में, अंगड़ाई में..

 

चने चबाते थे लोहे के, किन्तु न अब वे दाँत रहे.

कहे बुढ़ापा किससे क्या-क्या कर गुजरा तरुणाई में..

 

सरस परस दोहों-गीतों का सुकूं जान को देता है.

चैन रूह को मिलते देखा गजलों में,…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on May 10, 2011 at 10:03am — 11 Comments

माँ ......

माँ , रहती हो हर पल मेरे साथ .....



जब निकलता हूँ घर से बाहर , चाहे मैं पलटकर देखूं ना देखूं

खड़ी रहती हो तुम दरवाज़े पर ही जब तक हो ना जाऊं ओझल गली के मोड़ पर ,

और फिर चलने लगती हो साथ मेरे दुआओं के रूप में .....



नींद ना आये जब मुझे तो गुज़ार देती हो सारी रात ,

थपकियाँ देते हुए मेरे माथे पर ,

और सो जाता हूँ मैं सुकून से .....



कभी जो आना-कानी करूँ खाने के नाम पे ,

तो यूं खिलाती हो अपने हाथों से ,

मानो भूख मेरी शांत होती हो और तृप्त… Continue

Added by Veerendra Jain on May 10, 2011 at 12:21am — 7 Comments

मेरे सपनों में अक्सर नेता जी आते हैं .

मेरे सपनों में अक्सर नेता जी आते हैं .

उनके आते ही मन में हलचल मच जाती हैं ,
और मैं उनको देखता हूँ ,
उन्हें सुनता हूँ
और उसके बाद ,
इस निर्णय पे…
Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 9, 2011 at 12:30pm — 1 Comment

पुछल्ले हो गये

जब से कॉलोनी मुहल्ले हो गये
लोग सब लगभग इकल्ले हो गये
 
दोस्ती हम ने इबादत मान ली 
बस कई इल्ज़ाम पल्ले हो गये
 
भोक्ता,कर्त्ता सुना भगवान है 
लोग महफ़िल के निठल्ले हो गये
 
ज़िक्र की पोशीदगी बढ़ने लगी 
बात में बातों के छल्ले  हो गये
 
बेअदब हो चाँद फिर मंज़ूर है
अब तो सब तारे पुछल्ले हो गये   

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 9, 2011 at 6:30am — 9 Comments

ऐ काश! मेरे भी माँ होती

ऐ काश! मेरे भी माँ होती ।

जब-जब मेरी अखियाँ रोती ।

लापरवाहियां दुख देती।

सिर पे मेरे हाथ फिरोती।

ऐ काश मेरे भी माँ होती।

 

ममतामयी जवानी खोती।

सीने पर ज्यूं चले करोती।

अंखियां बरसे जैसे…

Continue

Added by nemichandpuniyachandan on May 8, 2011 at 11:30pm — 5 Comments

लघु कविता :- माँ

माँ !

देखा तो होगा तुझे

पर चेहरा याद नहीं…

Continue

Added by Abhinav Arun on May 8, 2011 at 7:00pm — 9 Comments

आँख का पानी

आँख का पानी



होने लगा है कम अब आँख का पानी,

छलकता नहीं है अब आँख का पानी|



कम हो गया लिहाज,बुजुर्गों का जब से,

मरने लगा है अब आँख का पानी|



सिमटने लगे हैं जब से नदी,ताल,सरोवर

सूख गया है तब से आँख का पानी|



पर पीड़ा मे बहता था दरिया तूफानी

आता नहीं नजर कतरा ,आँख का पानी|



स्वार्थों कि चर्बी जब आँखों पर छाई

भूल गया बहना,आँख का पानी|



उड़ गई नींद माँ-बाप कि आजकल

उतरा है जब से बच्चों…

Continue

Added by dr a kirtivardhan on May 8, 2011 at 5:30pm — 5 Comments

मेरी माँ .

ये नहीं कहूँगी की याद आ गई, क्योंकि उनको तो कभी भूलती ही नहीं, हाँ उनकी कमी का फिर से एहसास हुआ जब हर ओर माँ के अनुपम स्वरूपों को देखा आज मदर्स डे पर |



सुबह सुबह मुझे भी मेरे बच्चों की ओर से प्यार भरी मुस्कानों के साथ स्वयं बनाया हुआ कार्ड और उपहार मिला :)

सुख और दुःख का अजीब संगम था वो पल..नहीं ..सिर्फ वो पल नहीं ..आज का दिन ही शायद, तब माँ के लिए कोई निर्धारित दिन नहीं था किन्तु माँ थीं मेरे पास..आज वो नहीं, हाँ सशरीर तो नहीं किन्तु उनकी दी शिक्षा, संस्कार और स्नेह सदा ही…

Continue

Added by Lata R.Ojha on May 8, 2011 at 3:30pm — 2 Comments

या हैं मौन...

आज एक ही ढर्रे पे चलना चाहता  है कौन?

सभी को है चाह परिवर्तन की, मुखर हो या मौन |



खोजते है कोई द्वार या रास्ता चाहे…
Continue

Added by Lata R.Ojha on May 7, 2011 at 11:30pm — 11 Comments

’मदर्स-डे’ स्पेशल (मां का प्यार)

सबसे पावन, सबसे निर्मल, सबसे सच्चा मां का प्यार

सबसे अनोखा, सबसे न्यारा, सबसे प्यारा मां का प्यार ।



बच्चे को ख़ुश देख-देख के, मन ही मन हंसता रहता

जब संतान पे विपदा आए, तड़प ही उठता मां का प्यार ।



सुख की ठंडी छांव में शीतल पवन के जैसा लहराता…

Continue

Added by moin shamsi on May 7, 2011 at 5:00pm — 8 Comments

व्यंग्य - मुफ्तखोरी की बीमारी

बीमारी की बात करते हैं तो हर व्यक्ति, कोई न कोई बीमारी से ग्रस्त नजर जरूर आता है। बीमारी की जकड़ से यह मिट्टी का शरीर भी दूर नहीं है। सोचने वाली बात यह है कि बीमारियों की तादाद, दिनों-दिन लोगों की जनसंख्या की तरह बढ़ती जा रही है। जिस तरह रोजाना देश की आबादी बढ़ती जा रही है और विकास के मामले में हम विश्व शक्ति बनें न बनें, मगर इतना जरूर है कि यही हाल रहा तो जनसंख्या की महाशक्ति अवश्य कहलाएंगे। जनसंख्या बढ़ने के साथ ही बीमारियां भी हमारे शरीर के जरूरी हिस्से होती जा रही हैं। जैसे अलग-अलग तरह से लोगों… Continue

Added by rajkumar sahu on May 7, 2011 at 11:50am — No Comments

खिड़की के उस तरफ

इक छोटा सा पंछी मेरे कमरे की खिड़की के बराबर से गुजरते तारों पे बैठा रहता है दिनभर

हर वक्त मौन सा रहता,

निहारता सामने के बागों को,

इमारतों पे सर पटकती किरणों को,

परदेसी पवन के झोकों को हरे वृक्षों से आलिंगन करते हुए ..



कभी कभी जो में खिडकी के पास आता हूँ उसे देखने, तो वो मेरी तरफ मुड़कर बैठ जाता है

लगता है जैसे अपनी शांत आखों से मेरे अशांत चित्त को देखकर कह रहा हो

के तुम भी हो कुछ मेरे जैसे वहाँ खिड़की के उस तरफ

फर्क है इतना के तुम हो अपने में ही उलझे… Continue

Added by Bhasker Agrawal on May 6, 2011 at 5:07pm — 2 Comments

मेरे आत्मीय बाबा नागार्जुन .....[महेंद्रभटनागर]

मेरे आत्मीय बाबा नागार्जुन 

[महेंद्रभटनागर]

बाबा नागार्जुन (मैथिली भाषा के कवि ‘यात्री’ / घर का नाम — वैद्यनाथ मिश्र) का जन्म सन् 1911; ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा (जून) के दिन बताया जाता है।…

Continue

Added by MAHENDRA BHATNAGAR on May 6, 2011 at 10:30am — 2 Comments

nishana dikhata hai

इक पल जीना इक पल मरना दिखता है 
मेरा गिरना और संभलना दिखता है
 
इक बूढ़े चेहरे को पढ़ना आये तो
हर झुर्री में एक जमाना दिखता है
 
जब कोई गुलशन की बातें करता है
मुझ को बस इक नया बहाना दिखता है
 
एक कहानी नानी की सुन जो सोता 
उसे ख्वाब में एक खज़ाना दिखता है
 
बिस्तर की सलवट को कितना ठीक करो 
जब चादर का रंग पुराना दिखता…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 6, 2011 at 10:06am — No Comments

वामन वृक्ष

वामन वृक्ष 
यूं तो वामन वृक्षों मैं भी
उगते हैं फल फूल और पत्ते 
पर उनमें लहलहाते वृक्षों से उपजे
फल फूलों की सहजता और सरसता कहाँ
कब हैं वो उन्हें  सा महकते
वक़्त से पहले
गर बेटी को ब्याहोगे
 उसका विकास रोक  कर
क्या खुद  सुकून पाओगे
सींचो उस नन्ही बेल को
अपने स्नेह की शीतल छाया से
पोषण दो उसे 
शिक्षा और संस्कार का
पूर्ण रुपें…
Continue

Added by rajni chhabra on May 4, 2011 at 3:00pm — 2 Comments

मुक्तिका: मैं --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

मैं
संजीव 'सलिल'
*
पुरा-पुरातन चिर नवीन मैं, अधुनातन हूँ सच मानो.
कहा-अनकहा, सुना-अनसुना, किस्सा हूँ यह भी जानो..



क्षणभंगुरता मेरा लक्षण, लेकिन चिर स्थाई हूँ.

निराकार साकार हुआ मैं वस्तु बिम्ब परछाईं हूँ.



परे पराजय-जय के हूँ मैं,…
Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on May 3, 2011 at 2:01pm — 5 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service