Added by Deepak Sharma Kuluvi on May 10, 2011 at 4:03pm — 2 Comments
औरत कभी मां है
कभी बहन, कभी बेटी
तो कभी पत्नी या प्रेयसी
इन सबसे अलग
औरत एक औरत भी है
अपने आप में मरती है
उफ! तक भी नहीं करती है और
पुरूष के अहं मो टूटने से
बचाए रखती है
वह जानती है
पुरूष एक बार टूट जाएगा तो
दुबारा जुड़ नहीं पाएगा
जबकि औरत?
औरत ने पाई है मिट्टी की प्रकृति
टूटते ही अपने आंसुओं से
गुथेगी खुद को, और जुड़ जाएगी
नई…
ContinueAdded by rajendra kumar on May 10, 2011 at 1:42pm — 2 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on May 10, 2011 at 11:44am — 3 Comments
मुक्तिका:
तुम क्या जानो
संजीव 'सलिल'
*
तुम क्या जानो कितना सुख है दर्दों की पहुनाई में.
नाम हुआ करता आशिक का गली-गली रुसवाई में..
उषा और संझा की लाली अनायास ही साथ मिली.
कली कमल की खिली-अधखिली नैनों में, अंगड़ाई में..
चने चबाते थे लोहे के, किन्तु न अब वे दाँत रहे.
कहे बुढ़ापा किससे क्या-क्या कर गुजरा तरुणाई में..
सरस परस दोहों-गीतों का सुकूं जान को देता है.
चैन रूह को मिलते देखा गजलों में,…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on May 10, 2011 at 10:03am — 11 Comments
Added by Veerendra Jain on May 10, 2011 at 12:21am — 7 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on May 9, 2011 at 12:30pm — 1 Comment
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 9, 2011 at 6:30am — 9 Comments
ऐ काश! मेरे भी माँ होती ।
जब-जब मेरी अखियाँ रोती ।
लापरवाहियां दुख देती।
सिर पे मेरे हाथ फिरोती।
ऐ काश मेरे भी माँ होती।
ममतामयी जवानी खोती।
सीने पर ज्यूं चले करोती।
अंखियां बरसे जैसे…
Added by nemichandpuniyachandan on May 8, 2011 at 11:30pm — 5 Comments
Added by Abhinav Arun on May 8, 2011 at 7:00pm — 9 Comments
Added by dr a kirtivardhan on May 8, 2011 at 5:30pm — 5 Comments
ये नहीं कहूँगी की याद आ गई, क्योंकि उनको तो कभी भूलती ही नहीं, हाँ उनकी कमी का फिर से एहसास हुआ जब हर ओर माँ के अनुपम स्वरूपों को देखा आज मदर्स डे पर |
सुबह सुबह मुझे भी मेरे बच्चों की ओर से प्यार भरी मुस्कानों के साथ स्वयं बनाया हुआ कार्ड और उपहार मिला :)
सुख और दुःख का अजीब संगम था वो पल..नहीं ..सिर्फ वो पल नहीं ..आज का दिन ही शायद, तब माँ के लिए कोई निर्धारित दिन नहीं था किन्तु माँ थीं मेरे पास..आज वो नहीं, हाँ सशरीर तो नहीं किन्तु उनकी दी शिक्षा, संस्कार और स्नेह सदा ही…
Added by Lata R.Ojha on May 8, 2011 at 3:30pm — 2 Comments
Added by Lata R.Ojha on May 7, 2011 at 11:30pm — 11 Comments
सबसे पावन, सबसे निर्मल, सबसे सच्चा मां का प्यार
सबसे अनोखा, सबसे न्यारा, सबसे प्यारा मां का प्यार ।
बच्चे को ख़ुश देख-देख के, मन ही मन हंसता रहता
जब संतान पे विपदा आए, तड़प ही उठता मां का प्यार ।
सुख की ठंडी छांव में शीतल पवन के जैसा लहराता…
Added by moin shamsi on May 7, 2011 at 5:00pm — 8 Comments
Added by rajkumar sahu on May 7, 2011 at 11:50am — No Comments
Added by Bhasker Agrawal on May 6, 2011 at 5:07pm — 2 Comments
मेरे आत्मीय बाबा नागार्जुन
[महेंद्रभटनागर]
बाबा नागार्जुन (मैथिली भाषा के कवि ‘यात्री’ / घर का नाम — वैद्यनाथ मिश्र) का जन्म सन् 1911; ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा (जून) के दिन बताया जाता है।…
ContinueAdded by MAHENDRA BHATNAGAR on May 6, 2011 at 10:30am — 2 Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 6, 2011 at 10:06am — No Comments
Added by rajni chhabra on May 4, 2011 at 3:00pm — 2 Comments
Added by देवDevकान्तKant पाण्डेयPandey on May 4, 2011 at 10:30am — 2 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on May 3, 2011 at 2:01pm — 5 Comments
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