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जब से कॉलोनी मुहल्ले हो गये
लोग सब लगभग इकल्ले हो गये
 
दोस्ती हम ने इबादत मान ली 
बस कई इल्ज़ाम पल्ले हो गये
 
भोक्ता,कर्त्ता सुना भगवान है 
लोग महफ़िल के निठल्ले हो गये
 
ज़िक्र की पोशीदगी बढ़ने लगी 
बात में बातों के छल्ले  हो गये
 
बेअदब हो चाँद फिर मंज़ूर है
अब तो सब तारे पुछल्ले हो गये   

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Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 13, 2011 at 10:58am
vandana ji atyant abhaar
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 13, 2011 at 10:57am
dheeraj ji thanx
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 13, 2011 at 10:56am
sanjay ji shukriya
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 13, 2011 at 10:56am
baagi ji aap hamesha hausala badhate hai aap ka atyant abhaar
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 13, 2011 at 10:54am
arun ji abhaari hun aap ki zarranawazi ka
Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on May 10, 2011 at 2:00pm
बहुत ही अच्छी रचना शर्मा जी
Comment by Dheeraj on May 10, 2011 at 12:49pm
वाह वाह क्या अनुपम ढंग से बेहतरीन शब्दों का उपयोग किया है आज की आधुनिकता को दर्शाने में ....... सुन्दर रचना शर्मा जी

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 10, 2011 at 11:41am

अश्वनी जी, अपेक्षाकृत कठिन काफिया को लेकर जिस खूबसूरती से आपने इस ग़ज़ल को प्रस्तुत किया है वह काबिले गौर और काबिले तारीफ़ है, 

दाद स्वीकार कीजिये इस खुबसूरत ग़ज़ल पर |

Comment by Abhinav Arun on May 9, 2011 at 11:17am

बहुत खूब आधुनीक जीवन की विडंबनाओं की खूब साफगोई से अभिव्यक्ति -

जब से कॉलोनी मुहल्ले हो गये
लोग सब लगभग इकल्ले हो गये
शेर में इकल्ले का जवाब नहीं बधाई |

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