2122—1122—1122—22
रूठ मत जाना कभी दीन दयाला मुझसे
रखना रघुनाथ हमेशा यही नाता मुझसे
हर मनोरथ हुआ है सिद्ध कृपा से तेरी
तू न होता तो हर इक काम बिगड़ता मुझसे
नाव तुमने लगा दी पार वगरना रघुवर
इस भँवर में था बड़ी दूर किनारा मुझसे
जैसे शबरी से अहिल्या से निभाया राघव
भक्तवत्सल सदा यूँ प्रेम निभाना मुझसे
एक विश्वास तुम्हारा है मुझे रघुनंदन
दूर जाना न कोई करके बहाना मुझसे
जानकी नाथ…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 28, 2015 at 11:16pm — 9 Comments
“ माँ! तुम्हे भैया के फ्लेट से आये हुए, यहाँ मेरे पास दो महीने हो गये है. उनका फ्लेट काफी बड़ा भी है, कुछ महीने वहाँ रह आओ. आखिर! उन्हें आपकी कमी भी तो महसूस होती होगी “
अचानक अपने कमरे में से निकलकर छोटे बेटे के इन उदारता भरे शब्दों को सुनकर, माँ को दो माह पहले बड़े बेटे की उदारता याद आ गई. आँखों में नमी लेकर अपने कपड़ो का बेग जमाते हुये उसे मन में दोनों बेटों के फ्लेट, अपनी कोख से बहुत ही छोटे लग रहे थे..
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on March 27, 2015 at 10:52am — 42 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on March 24, 2015 at 9:56pm — 25 Comments
(यहाँ प्रति दोहे में वृत्यानुप्रास है किन्तु सम्पुर्ण रचना में छेकानुप्रास है अंतर यह है की वृत्यानुप्रास में एक ही वर्ण की पुनरावृत्ति होती है जबकि छेका में अनेक वर्णों की )
गा-गाकर गौरव गिरा गरिमामय गन्धर्व
गीर्वाण गुरु, गीतिमय , गान-ज्ञान गुण गर्व I
भक्त भगवती भारती भूरि भावमय भव्य
भावशवलता, भ्रान्तिता भ्रमित भनिति भवितव्य I
वीणापाणि वरानना वरे विदुष विद्वान
वाणी-वाणी वत्सला वर्ण-वर्ण वरदान I
शुभ्र…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 24, 2015 at 11:00am — 31 Comments
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