2122 2122 2122 212
भूख हो रोटी न हो तो आप हँसकर देखिये।।
मुफलिसी कहते है किसको इक नज़र कर देखिये।।
आशियाँ उजड़ा है उनका और वे बेघर हुए।
उन परिंदों की लिये खुद को शज़र कर देखिये।।
क्यों भटकते हो भला इस तंग दुनियाँ में मनुष।
इक दफे बस आप अपने घर को घर कर देखिये।।
तोड़ता दिन रात पत्थर चंद सिक्को के लिए।
उसके जैसी बेबसी को भी सहन कर देखिये।।
ख़्वाब नींदों को चुरा सकता नहीं इस शर्त पर।
शब को'दीपक'आप भी इक दिन सहर कर…
Added by ram shiromani pathak on February 5, 2015 at 3:00pm — 10 Comments
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