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भूख हो रोटी न हो तो आप हँसकर देखिये।।

2122 2122 2122 212

भूख हो रोटी न हो तो आप हँसकर देखिये।।
मुफलिसी कहते है किसको इक नज़र कर देखिये।।

आशियाँ उजड़ा है उनका और वे बेघर हुए।
उन परिंदों की लिये खुद को शज़र कर देखिये।।

क्यों भटकते हो भला इस तंग दुनियाँ में मनुष।
इक दफे बस आप अपने घर को घर कर देखिये।।

तोड़ता दिन रात पत्थर चंद सिक्को के लिए।
उसके जैसी बेबसी को भी सहन कर देखिये।।

ख़्वाब नींदों को चुरा सकता नहीं इस शर्त पर।
शब को'दीपक'आप भी इक दिन सहर कर देखिये।।

**********************************
-राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 11:12am

क्यों भटकते हो भला इस तंग दुनियाँ में मनुष।
इक दफे बस आप अपने घर को घर कर देखिये।।

आदरणीय रामशिरोमणि साहब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर 


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Comment by गिरिराज भंडारी on February 7, 2015 at 9:37am

आदरणीय राम भाई , बढिया गज़ल हुई है , सभी अश आर अच्छे लगे ! बधाई ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2015 at 11:49am

तोड़ता दिन रात पत्थर चंद सिक्को के लिए।
उसके जैसी बेबसी को भी सहन कर देखिये।।........बहुत सुंदर. मर्मस्पर्शी , बधाई आदरणीय राम भाई

Comment by somesh kumar on February 6, 2015 at 10:03am

आशियाँ उजड़ा है उनका और वे बेघर हुए।
उन परिंदों की लिये खुद को शज़र कर देखिये।।

बहुत सुंदर और गहनता पूर्ण शे'र ,दिली-मुबारकबाद 

Comment by Shyam Narain Verma on February 6, 2015 at 9:58am

बहुत खूब .... शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 6, 2015 at 6:35am
प्रयास अच्छा है, बधाई , आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी, सादर।
पुनश्चय: -- रोटियां बहुत हों और भूख न हो, खाई न जा सकें , खाने पर डॉक्टर के प्रतिबन्ध हों तो भी तकलीफ बहुत होती है।

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Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2015 at 3:30am

आदरणीय राम शिरोमणि जी बड़ी बह्र पर सुन्दर प्रयास हुआ है हार्दिक बधाई स्वीकारे. काफिया निर्धारण में त्रुटी लग रही है जिसकी ओर आदरणीया राजेश कुमारी जी ने भी इशारा किया है जैसे मतले का काफिया तथा रदीफ़ --- हँस कर देखिये और नज़र कर देखिये --- का सही निर्धारण नहीं हुआ है सादर 


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Comment by rajesh kumari on February 5, 2015 at 8:12pm

बहुत अच्छा प्रयास है राम् शिरोमणि जी 

आशियाँ उजड़ा है उनका और वे बेघर हुए।
उन परिंदों की लिये खुद को शज़र कर देखिये।।---उम्दा शेर 

आपके मतले में ईता दोष है गौर कीजिये ---हँस और नज हम काफिया कैसे ? कर देखिये रदीफ़ है 

तोड़ता दिन रात पत्थर चंद सिक्को के लिए।
उसके जैसी बेबसी को भी सहन कर देखिये।।-----सानी में सहन ??

यदि आपका काफिया अर भी है तो ये शेर खारिज हो जाता है 

Comment by ram shiromani pathak on February 5, 2015 at 7:11pm
हरि प्रकाश जी हार्दिक आभार आपका।।सादर
Comment by Hari Prakash Dubey on February 5, 2015 at 4:38pm

आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी बहुत सुन्दर रचना //भूख हो रोटी न हो तो आप हँसकर देखिये।।

मुफलिसी कहते है किसको इक नज़र कर देखिये।।//.....बधाई आपको !

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