ग़ज़ल (पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि)
देके सर हम हो गए दुनिया से रुखसत दोस्तो l
तुम को करनी है वतन की अब हिफाज़त दोस्तो l
बाँध कर बैठो कफ़न अपने सरों पर हर घड़ी
सामने ना जाने कब आ जाए आफ़त दोस्तो l
उन दरिंदों का मिटा दें दुनिया से नामो निशां
मुल्क में फैला रहे हैं जो भी दहशत दोस्तो l
उसको मत देना मुआफ़ी मौत देना है उसे
जिसने पुलवामा में की है नीच हरकत दोस्तो l
हम को उनकी ईंट का पत्थर से देना…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on February 18, 2019 at 7:01pm — 12 Comments
२२१/२१२१/१२२/१२१२
जब से वफा जहाँन में मेरी छली गयी
आँखों में डूबने की वो आदत चली गयी।१।
नफरत को लोग शान से सर पर बिठा रहे
हर बार मुँह पे प्यार के कालिख मली गयी।२।
अब है चमन ये राख तो करते मलाल क्यों
जब हम कहा करे थे तो सुध क्यों न ली गयी।३।
रातों के दीप भोर को देते सभी बुझा
देखी जो गत भलाई की आदत भली गयी।४।
माली को सिर्फ शूल से सुनते दुलार ढब
जिससे चमन से रुठ के हर एक कली…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 4, 2019 at 12:05pm — 6 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
अपनी गरज़ से आप भी मिलते रहे मुझे
ग़म है कि फिर भी आशना कहते रहे मुझे //१
दिल की किताब आपने सच में पढ़ी कहाँ
पन्नों की तर्ह सिर्फ़ पलटते रहे मुझे //२
मिस्ले ग़ुबारे दूदे तमन्ना मैं मिट गया
बुझती हुई शमा' सा वो तकते रहे मुझे //३
सौते ग़ज़ल से मेरी निकलती थी यूँ फ़ुगाँ
महफ़िल में सब ख़मोशी से सुनते रहे मुझे…
Added by राज़ नवादवी on February 4, 2019 at 10:13am — 6 Comments
अरकान-1222 1222 122
किनारा हूँ तेरा तू इक नदी है
बसी तुझ में ही मेरी ज़िंदगी है।।
हमारे गाँव की यह बानगी है
पड़ोसी मुर्तुज़ा का राम जी है।।
ख़यालों का अजब है हाल यारो
गमों के साथ ही रहती ख़ुशी है।।
घटा गम की डराए तो न डरना
अँधेरे में ही दिखती चाँदनी है।।
मुकम्मल कौन है दुनिया में यारो
यहाँ हर शख़्स में कोई कमी है।।
बनाता है महल वो दूसरों का
मगर खुद की टपकती झोपड़ी…
Added by नाथ सोनांचली on February 4, 2019 at 7:00am — 9 Comments
ग़ज़ल (मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर)
(फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ लु न)
मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर l
कीजिए गा हुस्न वालों से मुहब्बत देख कर l
मुझको आसारे मुसीबत का गुमां होने लगा
यक बयक उनका करम उनकी इनायत देख कर l
कुछ भी हो सकता है महफ़िल में संभल कर बैठिए
आ रहा हूँ उनकी आँखों में क़यामत देख कर l
देखता है कौन इज्ज़त और सीरत आज कल
जोड़ते हैं लोग रिश्ते सिर्फ़ दौलत देख…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 3, 2019 at 7:43pm — 8 Comments
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