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ब्राहम्ण
उषा अवस्थी
मान दिया होता यदि तुमने
ब्राम्हण को , सुविचारों को
सदगुण की तलवार काटती
निर्लज्जी व्यभिचारों को
उसको काया मत समझो ,
ज्ञान विज्ञान समन्वय है
द्वैत भाव से मुक्त, जितेन्द्रिय
सत्यप्रतिज्ञ , समुच्चय है
कर्म , वचन , मन से पावन
वह ब्रम्हपथी , समदर्शी है
नहीं जन्म से , सतत कर्म से
तेजस्वी , ब्रम्हर्षि है
मौलिक एवं अप्रकाशित
उषा अवस्थी
मन कैसे-कैसे घरौंदे बनाता है?
वे घर ,जो दिखते नहीं
मिलते हैं धूल में, टिकते नहीं
पर "मैं" कहाँ मानता है?
विचारों के कुरुक्षेत्र में,खाक़ छानता है
एक के पश्चात दूसरा,तत्पश्चात तीसरा
ख़्यालों का समुंदर लहराता है
अनवरत प्रवाह में
डूबता, उतराता है
जीवन और मौत के बीच
झूल - झूल जाता है
मन कैसे-कैसे घरौंदे बनाता है?
मौलिमन क…
ContinuePosted on February 4, 2023 at 7:14pm — 4 Comments
वसन्त
उषा अवस्थी
पतझड़ हुआ विराग का
खिले मिलन के फूल
प्रेम, त्याग, आनन्द की
चली पवन अनुकूल
चिन्ता, भय,और शोक का
मिटा शीत अवसाद
शान्ति, धैर्य, सन्तोष संग
प्रकटा प्रेम प्रसाद
सरस नेह सरसों खिली
अन्तर भरे उमंग
पीत वसन की ओढ़नी,
थिर सब हुईं तरंग
शिव शक्ती का यह मिलन,
अद्भुत, अगम, अनन्त
गति मति…
ContinuePosted on January 25, 2023 at 6:35pm — 5 Comments
उषा अवस्थी
सबकी अलग देनदारियां हैं
जीवन-नदिया में,
कर्म-नौका पर सवार
सुख-दुख से उत्पन्न
अपरिहार्य लहरें
सहने की मजबूरियां हैं
जब तरंगे "सम" पर आती हैं
पहुँचाती हैं सहजता से
इच्छित गन्तव्य तक
समस्त उलझनों के पार
कराती हैं, स्वयं से स्वयं का
"साक्षात्कार"
प्रकृति आईना दिखाने को सन्नद्ध है
नियमों से आबद्ध है
जो अपना धर्म
सदैव निभाती है
"मैं"…
ContinuePosted on January 21, 2023 at 6:57pm — 6 Comments
उषा अवस्थी
"नग्नता" सौन्दर्य का पर्याय
बनती जा रही है
फिल्म चलने का बड़ा आधार
बनती जा रही है
"तन मेरा मैं
जो भी चाहे सो करूँ"
की विषैली सोच का उन्माद
गहती जा रही है
आधुनिकता शब्द का
नव अर्थ गढ़
संक्रमण का बीज धरती पर
सतत बिखरा रही है
मार्ग मध्यम छोड़कर
है दिन-ब-दिन
अमर्यादित आचरण
विस्तार करती जा रही है
"नग्नता" सौन्दर्र का…
ContinuePosted on January 7, 2023 at 11:30am — 4 Comments
सुन्दर रचना केलिये हार्दिक अभिनंदन सुश्री उषा अवस्थिजी ।
ग़ज़ल सीखने एवं जानकारी के लिए.... |
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