For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-98

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 98 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब दाग़ देहलवी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं "

2122 1122 1122 112/22

फाइलातुन   फइलातुन    फइलातुन    फइलुन/फेलुन

(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ )

रदीफ़ :-भी नहीं 
काफिया :- आते (जाते, सताते, भुलाते, मिलाते आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 अगस्त दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 अगस्त दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 अगस्त दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 8355

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आद0 अजय गुप्ता जी सादर अभिवादन। तरही ग़ज़ल पर बेहतरीन प्रयास का मुजाहरा किया आपने। बधाई स्वीकार कीजिये। आद0 समर साहब की बातों का संज्ञान लीजिये।

शुक्रिया सुरेंद्र सिंह जी

जनाब अजय साहिब ग़ज़ल का बहतरीन प्रयास किया आपने बहुत बहुत मुबारकबाद ।

शुक्रिया मिर्ज़ा साब

आप हमको तो कोई बात बताते भी नहीं

और हम हैं जो कोई राज़ छुपाते भी नहीं

 

आप आते भी नहीं हमको बुलाते भी नहीं

दिल में शिकवा है मगर हमको बताते भी नहीं

 

हम पे इल्ज़ाम लगाते हैं के नाकारा हो

वो जो मेहनत से किसी रोज़ कमाते भी नहीं

 

ख़ून होता है सरेराह यहाँ पर सच का

लोग डरते भी नहीं जुर्म छुपाते भी नहीं

 

हम गरीबों पे सितम और भला क्या होगा

कत्ल करते हैं मेरा ज़ुर्म बताते भी नहीं

 

वो जो एहसास को मुरदार बना बैठे हैं

उनको जज़्बात कभी दिल के सुनाते भी नहीं 

 

आपको, आपकी हो सैर मुबारक साहब

हम गरीबों को हँसीं ख्वाब सुहाते भी नहीं

 

आतिशे गम में जला करते हैं रोजाना हम

जिस्म ज़ख़्मी है मगर चोट दिखाते भी नहीं

 

उनकी इस चाल को समझें भी तो कैसे यारों

"साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं "

 

फांसले बीच के हों कम भी तो कैसे नादिर   

वो मेरी सुनते नहीं अपनी सुनाते भी नहीं

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

नादिर भाई बहुत मख़सूस ग़ज़ल।

ख़ून होता है सरेराह यहाँ पर सच का

लोग डरते भी नहीं जुर्म छुपाते भी नहीं// इस ने तो मन मोह लिया

जिस्म जख्मी है मगर चोट.....बहुत खूब लाजवाब ग़ज़ल हुई  । जनाब नादिर साहब बधाई ।

जनाब नादिर ख़ान साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,लेकिन ग़ज़ल जल्दबाज़ी में कही लगती है,बहरहाल बधाई स्वीकार करें ।

'

आप हमको तो कोई बात बताते भी नहीं

और हम हैं जो कोई राज़ छुपाते भी नहीं'

इस मतले के सानी मिसरे में रदीफ़ 'भी नहीं' की जगह "ही नहीं" हो रही है,देखियेगा ।

'

ख़ून होता है सरेराह यहाँ पर सच का

लोग डरते भी नहीं जुर्म छुपाते भी नहीं'

इस शैर का सानी मिसरा यूँ होना चाहिए :-

'लोग बेडर हैं यहाँ जुर्म छुपाते भी नहीं'

'

हम गरीबों पे सितम और भला क्या होगा

कत्ल करते हैं मेरा ज़ुर्म बताते भी नहीं'

इस शैर में शुतरगुर्बा है, सानी मिसरे में 'मेरा' को "मगर" कर लें ऐब निकल जायेगा ।

'

वो जो एहसास को मुरदार बना बैठे हैं

उनको जज़्बात कभी दिल के सुनाते भी नहीं '

इस शैर में 'सुनाते' को " लुभाते" करना उचित होगा ।

 '

आपको, आपकी हो सैर मुबारक साहब

हम गरीबों को हँसीं ख्वाब सुहाते भी नहीं'

इस शैर के ऊला में 'सैर' से सानी के "ख़्वाब" का क्या रब्त? ऊला मिसरा बदलें ।

'

आतिशे गम में जला करते हैं रोजाना हम

जिस्म ज़ख़्मी है मगर चोट दिखाते भी नहीं'

इस शैर के ऊला में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,और सानी में 'ज़ख़्म' और 'चोट' के फ़र्क़ को समझें ।

फांसले बीच के हों कम भी तो कैसे नादिर'

इस मिसरे में 'फांसले' को "फ़ासले" कर लें ।

बाक़ी शुभ शुभ ।

बहुत शुक्रिया आपका  जनाब समर साहब आपने सही कहा 2 दिन पहले ही लौटा हूँ आज  फिर जाना है .... अल्लाह हाफिज़

जनाब नादिर साहिब, ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास किया है आपने, मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l मुहतरम समर साहिब के मशवरे पर ग़ौर कीजियेगा I 

वाह्ह्ह्ह नादिर साहब बहुत बढिया ग़ज़ल कही है समर साहब के मशविरे स्वागत योग्य हैं 

आपको, आपकी हो सैर मुबारक साहब---इसमें सैर की जगह ऐश कर  सकते हैं ---आपको आपकी ये ऐश मुबारक साहब 

हम गरीबों को हँसीं ख्वाब सुहाते भी नहीं

बहुत बहुत दाद कुबूलें 

आदरणीय नादिर खान साहब बेहतरीन गजल के लिए बहुत बहुत बधाई

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय नीलेश भाई जी सादर नमस्कार जी। अहा! क्या कहने भाई जी बेहद शानदार और जानदार ग़ज़ल हुई है। अभी…"
56 minutes ago
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो"
6 hours ago
Aazi Tamaam commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"अच्छी रचना हुई आदरणीय बधाई हो"
6 hours ago
Aazi Tamaam commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो 3 बोझ भारी तले को सुधार की आवश्यकता है"
6 hours ago
Aazi Tamaam commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय इस बह्र पर हार्दिक बधाई"
6 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
6 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत शुक्रिया आदरणीय भंडारी जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
6 hours ago
surender insan commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई जी  छन्न पकैया (सारछंद) में आपने शानदार और सार्थक रचना की है। बहुत बहुत बधाई…"
7 hours ago
surender insan commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब। बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करे जी।"
7 hours ago
surender insan commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सौरभ जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल पर आने के लिए और अपना कीमती वक़्त देने के लिए आपका बहुत बहुत…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service