For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-94 सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

आदरणीय सदस्यगण 94वें तरही मुशायरे का संकलन प्रस्तुत है| बेबहर शेर कटे हुए हैं, जिन अल्फाज़ को गलत तरीके से बांधा गया है वो भी कटे हुए हैं और जिन मिसरों में कोई न कोई ऐब है वह इटैलिक हैं|

______________________________________________________________________________

Nilesh Shevgaonkar 


ख़फ़ा ख़फ़ा ही सही साथ चल तो सकती है
ऐ ज़िन्दगी तू ये तेवर बदल तो सकती है.
.
उठी हुई है जो रिश्ते में बर्फ़ की दीवार
अगर न टूट सके पर पिघल तो सकती है.
.
हुईं हैं बाँझ ये आहें असर नहीं करतीं
दुआ-गो रहिए; दुआ कोई फल तो सकती है.
.
ये ठीक है कि तेरा ज़ुल्म घट नहीं सकता
मगर ये जान मेरी है, निकल तो सकती है.
.
कहा है ख़ूब ये मिसरा फ़िराक़ ने सुनिए
“मिले न छाँव मगर धूप ढल तो सकती है.”
.
चराग़ कर दे अँधेरे में “नूर” को मौला
कि जिस को देख के दुनिया सँभल तो सकती है.

_________________________________________________________________________________

Samar kabeer 


गर आप चाहें तबीअत बहल तो सकती है
कोई मिलाप की सूरत निकल तो सकती है

इसी यक़ीन पे कोई अमल नहीं करते
नजूमी कहता है क़िस्मत बदल तो सकती है

बस इक निगाह-ए-करम आप इसपे गर कर दें
मरीज़-ए-इश्क़ की हालत सँभल तो सकती है

अभी तलक तो हमीं ढलते आये हैं लेकिन
हमारे साँचे में दुनिया भी ढल तो सकती है

अभी सुकून है लेकिन तुम्हारे कूचे में
कभी हवा-ए-बग़ावत भी चल तो सकती है

ये बात ख़ूब कही है 'फ़िराक़' साहिब ने
"मिले न छाँव मगर धूप ढल तो सकती है"

____________________________________________________________________________

anjali gupta


किसी भी दिल में मुहब्बत मचल तो सकती है
निग़ाह-ए-इश्क से शम्मा पिघल तो सकती है

ये माना हो न सकेगा कभी मिलन अपना
उफ़क़ तलक तू मगर साथ चल तो सकती है

लकीरों में कभी नाकामियां भी होती हैं
किसी मां की दुआ उनको बदल तो सकती है

न साथ आस का तू छोड़ना किसी भी पल
मिले न धूप मगर छाँव ढल तो सकती है

नहीं मुमकिन तू रात भर हो मेरे पहलू में
मेरे ख़यालों में ख़्वाहिश ये पल तो सकती है

यूं तो बैठे हैं फ़रिश्ते मेरे सिरहाने पर
अगरचे आ सकें वो मौत टल तो सकती है

किसी भी हाल में दिल की लगी नहीं बुझती
वो आग है ये जो पानी से जल तो सकती है

जो आशियां न बना उम्र भर तो क्या ग़म है
शज़र की छांव में भी शाम ढल तो सकती है

_______________________________________________________________________________

शिज्जु "शकूर"


है सख़्त बर्फ़ मगर ये पिघल तो सकती है
तहों से इसकी नदी भी निकल तो सकती है

ज़माने हो गए ख़ुर्शीद का किए दीदार
भले तवील सही रात ढल तो सकती है

बचा कहाँ कोई नफ़रत की आग से अब तक
इस आग में तेरी दुनिया भी जल तो सकती है

चमक सितारों की काफ़ी है रहनुमाई को
अँधेरों में भी कोई रह निकल तो सकती है

मैं मानता हूँ कि तेरे ख़िलाफ़ है इस वक़्त
मगर हवा ये तेरे हक में चल तो सकती है

जगह बहुत है तेरे इस जहान में, ऐ दोस्त!
यहीं कहीं मेरी इक जाँ भी पल तो सकती है

बस इन्तज़ार करो वक्त के बदलने का
“मिले न छांव मगर धूप ढल तो सकती है”

_______________________________________________________________________________

Tasdiq Ahmed Khan


हवा में शमअ मुहब्बत की जल तो सकती है।
मगर ये बात ज़माने को खल तो सकती है ।

तुम्हारे आने से मुश्किल ये टल तो सकती है ।
खिजां बहार की रुत में बदल तो सकती है ।

यकीं ये सोच के दुनिया पे दोस्तों करना
कभी भी चाल ये महशर की चल तो सकती है ।

ख़याले यार से पाए न पाए क़ल्ब सुकूँ
मगर किसी की तबीअत बहल तो सकती है।

कठिन है राहे मुहब्बत तो कैसा घबराना
मिले न छांव मगर धूप ढल तो सकती है।

हुज़ूर तर्के तअ ल्लुक़ के बाद ग़ौर करें
मिलन की फिर कोई सूरत निकल तो सकती है।

जो ज़िंदगानी तेरी ठोकरों की है मारी
सहारा पा के तेरा वो संभल तो सकती है।

भंवर में छोड़ के मल्लाह ख़ुश न हो इतना
ख़ुदा के हुक्म से कश्ती उछल तो सकती है।

यक़ीन इस लिए अश्कों पे करके बैठा हूँ
हसीन संग की मूरत पिघल तो सकती है।

फ़लक पे बद्र, ख़यालों में वो,है शब गम की
इलाही ख़ैर तबीअत मचल तो सकती है।

ग़ुरूर कीजिये तस्दीक़ मत जवानी पर
ये सिर्फ़ चार ही दिन की है ढल तो सकती है।

________________________________________________________________________________

munish tanha


करे फकीर दुआ मौत टल तो सकती है

खुदा के नाम से किस्मत बदल तो सकती है

किया है चाँद ने वादा मैं छत पे आऊंगा

इसी भरोसे तवीयत बहल तो सकती है

नदी में बाढ़ है आई न रस्ता रोको

किनारे तोड़ के नदिया उछल तो सकती है

चला है छोड़ के घर बार सन्यासी

कभी – कभी कोई ख्वाहिश मचल तो सकती है

किसान भूख से मरता है देश में सोचो

निजाम देख के जनता उबल तो सकती है

किया है आज अदालत ने झूठ को नंगा

ये देख जहर सियासत उगल तो सकती है

तमाम उम्र गुजारी है सोच कर मैंने

मिले न छाँव मगर धूप ढल तो सकती है

तू दर्दे दिल की कहानी उसे सुना “तन्हा”

हुआ है प्यार उसे वो संभल तो सकती है

______________________________________________________________________________

Afroz 'sahr'


हवा ये तेरे मुख़ालिफ़ भी चल तो सकती है।

किसी भी वक्त ये सूरत बदल तो सकती है।।

तू इस वजूद पे नाज़ां है बे ख़बर कितना।

अ'जल वजूद ये तेरा निगल तो सकती है।।

हैं मुंतज़िर कई सय्याद कैंचियाँ लेकर।

उडा़न तेरी ज़माने को खल तो सकती है।।

फ़िराक़ आपने मिसरा ये ख़ूब कह डाला।

मिले न छांव मगर धूप ढल तो सकती है।।

ये और बात के चाहा नहीं कभी मैने।

दिखा दूँ आँख ये दुनिया दहल तो सकती है।।

गर आज भी कोई कुहकन जो ठान ले दिल में।

नहर पहाड़ से फिर वो निकल तो सकती है।।

_______________________________________________________________________________

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

बला हो जितनी बड़ी फिर भी टल तो सकती है,
हो आस जितनी भी हल्की वो पल तो सकती है।

बुरी हो कितनी भी किस्मत बदल तो सकती है,
कि लड़खड़ाके भी हालत सँभल तो सकती है।

अगर है तपती हुई राह-ए-जीस्त ग़म न करो,
*मिले न छाँव मगर धूप ढल तो सकती है*।

ये सोच पैर बढ़ाये न उनकी गलियों में,
उन्हें हमारी मुलाक़ात खल तो सकती है।

बढ़ा है इतना जियादह ये मर्ज-ए-इश्क़ अब तो,
मिले जो उनकी दुआ दिल से फल तो सकती है।

सनम नकाब हटाना जरा न महफ़िल में,
झलक से सब की तबीअत मचल तो सकती है।

पड़ी क्यों शम'अ गरीबी की आँच सह यूँ ही,
अगर सकी न तू जल पर पिघल तो सकती है।

अवाम जाग रही है ओ लीडरों सुन लो,
चली न उसकी जो अब तक वो चल तो सकती है।

अमीरों कर्ज़ चुकाए बगैर खैर नहीं,
भरे बज़ार में पगड़ी उछल तो सकती है।

कोई सुने न सुने जुल्म पर न चुप बैठो,
'नमन' जो टीस है दिल में निकल तो सकती है।

______________________________________________________________________________

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'


किरण कहीं से कोई फिर निकल तो सकती है
जमी जो बर्फ दिलों में पिघल तो सकती है।१।

तमस बहुत है भले ही मगर तू कोशिश कर
मशाल एक से दूजी ये जल तो सकती है।२।

भले ही मैल भरा हो सदा से इस जानिब
पहल से यार सियासत बदल तो सकती है ।३।

नमी को सोच कि उम्मीद अब भी बाँकी जो
वहीं से एक नदी भी निकल तो सकती है।४।

कमी समझ की भले ही दिखा दो राह उसे
जवानी जोश में यारो उबल तो सकती है।५।

भले ही काम न हो देशहित का उनसे पर
अवाम उनके बयाँ से बहल तो सकती है।६।

मिलो न हँस के जमाना खराब है साहब
भले ही बात हो झूठी उछल तो सकती है।७।

भले ही दौड़ न पाये कभी वो किस्मत सी
मगर ये सच है कि तदबीर चल तो सकती है।८।

है तपती राह "मुसाफिर" न उस से घबराना
"मिले न छाँव मगर धूप ढल तो सकती है"।९।

________________________________________________________________________________

Manjeet kaur


भले ही बुझ गई ये शमअ ,जल तो सकती है
कि टूटे दिल में नई आस , पल तो सकती है

रही उम्मीद तेरे आने की सदा हमको
पड़ी जो बरफ की चादर ,पिघल तो सकती है

भरे हैं खार ही राहों ,चलो ये माना है
जुनूं हो दश्त में राहें , निकल तो सकती हैं

नहीं है दोष ये माझी ,है खेल बस किस्मत
हवा दे साथ सफीना , संभल तो सकती है

ये नाज़ो-नखरे कहें सब ही हुस्न की आदत
अदाएं देख तबीयत , मचल तो सकती है

न आस -प्यास लिए कोइ हम रहे चलते
'मिले न छाँव मगर धूप , ढल तो सकती है

ये धूप -छाँव का ही खेल ज़िंदगी यारो
हयात वक़्त के साँचे में , ढल तो सकती है

_______________________________________________________________________________

Mohan Begowal


मिरा यकीं तेरी दुनिया बदल तो सकती है ।
न जीत हो सके मंजिल निकल तो सकती है।

सुना गया जो कहानी हुई न पूरी थी,
हो याद साथ ख्यालों में ढल तो सकती है।

मैं शाम तक रहा बैठा तिरे ख्यालों में,
हाँ चाल अब कोई मेरी भी चल तो सकती है।

ऐ ! जिन्दगी यूँ मिरे साथ साथ चलते रहना,
अगर हो भटक ये आखर संभल तो सकती है।

नहीं मिला है ज़माना हमें कभी फिर क्या,
“मिले न छांव मगर धूप ढल तो सकती है”

________________________________________________________________________________

Harash Mahajan

अगर दुआएँ मिलीं हार टल तो सकती है ।
ये राजनीति है किस्मत बदल तो सकती है ।

कहीं चलेगी अगर बात अब मुहब्बत की,
दबी जो दिल में है सूरत निकल तो सकती है ।

ज़ुदा हुआ जो मैं तुझसे बिखर ही जाऊँगा,
मगर बिछुड़ के भी तू दिल में पल तो सकती है।

हवा के  संग चले जो बशर जमाने की,
"मिले न छाँव मगर धूप ढल तो सकती है ।"

महक रहें हैं जो गुल अपनी रंगों-खुशबू पर,

किसी भी भँवरे की नीयत फिसल तो सकती है|

वतन से होगी अगर रहनुमाओं को उल्फ़त,
ये सच है हालते सरहद सँभल तो सकती है।

न पूछा हाल कभी उसने गैर की ख़ातिर,

वो साथ मेरे ज़नाज़े के चल तो सकती है ।

समझ के भी न रखी दूरी गर हसीनों से,
दिया जले न जले उँगली जल तो सकती है ।

_______________________________________________________________________________

Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" 


तुम्हारे हुस्न पे धड़कन मचल तो सकती है
कसम से ख़ुद ही ग़ज़ल में तू ढ़ल तो सकती है

बयार प्रीत की उस दर से चल तो सकती है
तुम्हारे घर से ही सूरत बदल तो सकती है

प्रथा विवाह की अपना ही अर्थ रखती है
तमाम रस्मों से रोजी भी चल तो सकती है?

भले नहीं हूँ मैं सूरज मग़र दिया तो हूँ
ये लौ हज़ारों दियों में भी जल तो सकती है

मिलो जो दिल से अगर जान इक दफ़ा फिर से
बनेगी बात कोई रह निकल तो सकती है

कदम रुकेंगे नहीं, चाँदनी तो बिखरेगी
मिले न छाँव मगर धूप ढल तो सकती है

____________________________________________________________________________

surender insan

किसी तरह की मुसीबत हो टल तो सकती है।
सँभलने की कोई सूरत निकल तो सकती है।।

तलाश करने पे इंसानियत नहीं मिलती।
मगर उमीद कोई साथ चल तो सकती है।।

ये मानता हूं नयी नस्ल है भटक जाती।
करे अगर कोई कोशिश सँभल तो सकती है।।

फ़िराक़ ने भी ये क्या खूब है कहा यारों।
"मिले न छाँव मगर धूप ढल तो सकती है"

सकूँ मुझे न मयस्सर हुआ कभी माना।
किसी भी रोज ये हालत बदल तो सकती है।।

________________________________________________________________________________

Naveen Mani Tripathi


बड़ी अजीब है ख्वाहिश मचल तो सकती है ।
तुम्हारे साथ कोई शाम ढल तो सकती है ।।

यकीन कर लूं जुबां पर मगर भरोसा क्या ।
जुबान दे के तू अब भी फिसल तो सकती है ।।

जरा सँभल के है चलना हमारी मजबूरी ।
तेेरी जफ़ा की बुझी आग जल तो सकती है ।।

उसे खबर है कि महबूब आज आया है ।
नकाब डाल के घर से निकल तो सकती है ।।

बला की आंधी है तुझको उड़ा न ले जाये ।
तेरे दयार की खुशियां निगल तो सकती है ।।

जो पास आओ तो रिश्तों में आये गर्माहट ।
जमी जो बर्फ है थोड़ी पिघल तो सकती है ।।

ये कोशिशें हैं तमन्ना रहे न अब बाकी ।
सुना हूँ हिज्र की तारीख़ टल तो सकती है ।।

अभी यकीन का दामन मैं छोड़ दूं कैसे ।
तेरे मिज़ाज़ की सूरत बदल तो सकती है ।।

वो लड़ चुकी है जमाने से जिंदगी के लिए ।
तुम्हारे वार से पहले सँभल तो सकती है ।।

_____________________________________________________________________________

किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हो तो अविलम्ब सूचित करें|

Views: 1732

Reply to This

Replies to This Discussion

बहुत बहुत मुबारक आदरणीय राणा साहब। बुलेट ट्रेन से भी तेज़। बधाई।

मुहतरम जनाब राना साहिब,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक -94 की कामयाब निज़ामत और त्वरित संकलन के लिए मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें ।

बहुत समय बाद संकलन देख कर अच्छा लगा..
हरे-लाल का डर हमेशा बना रहता  था... अब भी रहता है... हालाँकि अब डांट लगाने न तिलकराज सर आते हैं, न वीनस जी और न सौरभ सर ..
ऐसा लगता है कि इन सब के न आने से मेरी ग़ज़ल सीखने की गति कम हो गयी है.. चर्चा के माध्यम से कई शेर सँवर जाते थे ..
आप को इस संकल के लिए बधाई ...  कुहकन के साथ नहर पर भी प्रश्नचिन्ह था शायद चर्चा में 
सादर 

आदरणीय राना जी,ओ० बी० ओ० लाइव तरही मुशायरा अंक -94 की कामयाब त्वरित संकलन के लिए मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें । पहली बार इस संकलन में मेरी सम्मिलित हुई इसलिए ख़ुशी महसूस हो रही है । मुशायरे

में आने से बहुत कुछ सीखने को मिला ।

सादर ।

जनाब राणा प्रताप सिंह जी आदाब,मुशायरा अंक-94 का त्वरित संकलन देख कर बहुत ख़ुशी हुई,इसके लिए बधाई स्वीकार करें ।

अफ़रोज़ साहिब की ग़ज़ल में 'नहर' शब्द को चिन्हित कीजिये ।

मंजीत कौर जी की ग़ज़ल में दूसरे शैर में 'बरफ़' शब्द  और तीसरे शैर में रदीफ़ बदल रही है,उसे चिन्हित कीजिये ।

नवीन मणि जी की ग़ज़ल में गिरह का मिसरा नहीं,उसे भी देखियेगा ।

पंकज कुमार मिश्रा के मतले में शुतरगुर्बा है, उसे भी चिन्हित कीजिये ।

मिरा यकीं तेरी दुनिया बदल तो सकती है ।
न जीत हो कोई मंजिल निकल तो सकती है।

सुना गया जो कहानी हुई न पूरी वह,
जो याद साथ ख्यालों में ढल तो सकती है।

मैं शाम तक रहा बैठा तिरे ख्यालों में,
हाँ चाल अब कोई मेरी भी चल तो सकती है।

न जिन्दगी यूँ हमारे से दूर तू रहना,
गई बिखर जो वो संभल तो सकती है।

नहीं मिला है ज़माना हमें कभी फिर क्या,
“मिले न छांव मगर धूप ढल तो सकती है”

'न ज़िन्दगी यूँ हमारे से दूर तू रहना

गई बिखर जो वो सँभल तो सकती है'

जनाब मोहन जी,ऊला मिसरे में व्याकरण सहीह नहीं है,और सानी मिसरा बह्र में नहीं है,इस शैर को यूँ कर सकते हैं :-

'ऐ ज़िन्दगी तू हमारे क़रीब ही रहना

कि लड़खड़ा के भी दुनिया सँभल तो सकती है'

आदरनीय समर जी, बहुत शुक्रिया 

आपकी मेहनत को तहेदिल से सलाम करता हूं । बहुत बहुत बधाई हो जी । संकलन में मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए बहुत बहुत आभार जी।

आदरणीय मुझे अभी नियम कायदे पता नहीं हैं। कृपया बताएं इन त्रुटियों का सुधार किस प्रकार किया जा सकता है और कब तक

अंजली गुप्ता जी,जो मिसरे आपके दोषपूर्ण हैं,उन्हें दुरुस्त करने के बाद यहाँ लिख दें और संचालक महोदय से उन्हें बदलने का निवेदन करें ।

जी शुक्रिया समर sir

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
23 hours ago
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बेहतरीन 👌 प्रस्तुति और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई सर "
yesterday
Dayaram Methani commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday
Sushil Sarna posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Nov 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service