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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-89 (विषय: बाज़ार)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-89 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय है 'बाज़ार;। तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-89
"विषय: 'बाज़ार'
अवधि : 30-08-2022  से 31-08-2022 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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स्वागतम

लघुकथा - माल (बाजार)
अमर बाबू चाय की चुस्की लेते हुए बेटे, बहू से बोले, "मुझे बंगलौर तुम्हारे पास आए कई दिन हो गए, बारिश की वजह से कहीं जा भी नहीं पाए"
बहू ने अख़बार पढ़ते हुए कहा, "आज मेरी छुट्टी है, घर का सामान भी लाना है, आप तैयार हो जाएं"
अमर बाबू बेटे, बहू के साथ टैक्सी में बाजार के लिए रवाना हो गए l रास्ते में किराना, डेरी, कपड़े की दुकानें आयीं मगर टैक्सी कहीं नहीं रुकी l
अमर बाबू ने बहू से कहा," दुकानें तो सारी निकल गईं"
बहू ने कहा, " आगे चल कर लेना है "
कुछ ही देर में जब सब्जी मंडी भी निकल गई तो अमर बाबू बोले, " बेटा सब्जी कहाँ से लेना है"
बेटे ने जवाब दिया, " आगे से लेना है"
अमर बाबू सोच में पड़ गए कि अचानक टैक्सी एक बड़े माल के सामने रुक गई
अमर बाबू जब अन्दर गए तो देख कर दंग रह गए
बेटे ने फिर कहा," पिता जी यहाँ एक जगह हर चीज़ उचित कीमत पर मिलती है, अगर भूक लगे तो खाने का रेस्टोरेंट भी है"
अमर बाबू मन ही मन सोचने लगे कि बाज़ार में जगह जगह धक्के खाने से अच्छा है किसी माल में जाकर ख़रीदारी करना l
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

आ. तसदीक जी,गोष्ठी का आगाज करने हेतु शुक्रिया।आज के बाजार की स्थिति का बढ़िया चित्रण किया है आपने।आज मॉल संस्कृति खूब फल -फूल रही है,क्योंकि उपभोक्ता की जरूरत की हर जिंस वहां उपलब्ध होती है।मनोरंजन की भी व्यवस्था होती है।

लघुकथा पसंद करने और आपकी इस हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया मनन साहिब 

आदाब। बहुत बढ़िया। हार्दिक बधाई जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब। वैसे यह रचना भ्रष्टाचार बाज़ार/मॉल पर भी संकेत कर रही है पूरी तरह उस पर भी केंद्रित रचना कही जा सकती है, ऐसा लगा।

लघुकथा पसंद करने और आपकी इस हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया जनाब शेख शहजाद साहिब 

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। अच्छी लघुकथा हुई है हार्दिक बधाई।

फलीभूत होती माॅल संस्कृति का बढ़िया चित्रण.. बहुत-बहुत बधाई, सर

आदाब, तस्दीक अहमद साहब! समसामयिक विषय ' बाजार' को लेकर आपने अच्छी लघुकथा कही! लघुकथा समारोह में निरन्तर आपकी प्रस्तुति प्रेरणा दायक होगी, ऐसा मेरा मानना है! 

ऑनलाइन खरीद

विक्रम बेताल को कंधे पर लादे हुए चल रहा है।उसके सारे सवालों के जवाब उसने दे दिए हैं। फलतः,बेताल को ढोना उसकी मजबूरी है।चलते -चलते विक्रम को एक तरकीब सूझी जिससे बेताल से पीछा छुड़ाया जा सके।उसने सोचा,क्यों न बेताल से इस शर्त पर कुछ सवाल पूछे जाएं कि यदि वह उन सवालों के सही उत्तर न दे पाएगा,तो उसे विक्रम के कंधे पर से उतर जाना होगा। यह सोचकर विक्रम मन -ही -मन खुश हुआ।
वह बोला,"बेताल भाई,एक बात कहूं?"
"कहो।"
"यही कि मैं तुमसे कुछ सवाल पूछूंगा,जैसे कि तुमने मुझसे पूछे।"
"फिर?"
"सही जवाब हुए,तो मेरे कंधे पर लदे रहना।"
"नहीं,तो? उतर जाऊं क्या??"
"हां।"
"पूछो।"
"तुम्हें ढोते -ढोते मेरे सारे कपड़े पुराने हो चले हैं।कुछ फट भी गए हैं।खरीदूं कैसे?तुम तो कहीं रुकने देते नहीं।"
"ऑनलाइन ले लो।चलते चलते डिलीवरी होगी।पेमेंट भी ऑनलाइन कर देना।"
"पसंद न आए तो?"
"तो रिटर्न मारो।"
"गर पसंद कर ही लेना चाहूं तब?"
"फिर सीओडी करो।कैश ऑन डिलीवरी।"
"मौलिक व अप्रकाशित"

आदाब। जवाब तो हैं न... हाज़िर जवाब। विषयांतर्गत उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई जनाब मनन कुमार सिंह साहिब।

आपका आभार आ.उस्मानी जी।

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"    प्रस्तुति की सराहना हेतु हृदय से आभार आदरणीय मिथिलेश जी. सादर "
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